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कल यानि 1 अप्रैल से नया वित्‍त वर्ष शुरू हो रहा है। पिछले साल के नियम केवल आज तक ही मान्‍य होंगे। यहां ऐसी कई सेवाएं हैं, जिनके लिए आपको नए साल में अधिक कीमत चुकानी होगी और नए नियमों के मुताबिक आपको कई शर्तों को पूरा न करने पर जुर्माना भी देना पड़ेगा। आइए नीचे जानते हैं नए वित्‍त वर्ष में क्‍या-क्‍या होने जा रहा है नया।


हेल्‍थ और व्‍हीकल इंश्‍योरेंस के लिए चुकानी होगी ज्‍यादा कीमत


नए वित्‍त वर्ष की शुरुआत के साथ ही हेल्‍थ और मोटर इंश्‍योरेंस महंगा होने जा रहा है। आईआरडीएआई ने सामान्‍य बीमा कंपनियों को बीमा एजेंटों को उच्‍च कमीशन देने की मंजूरी दे दी है और वाहनों के थर्ड पार्टी प्रीमियम को बढ़ाने को भी हरी झंडी मिल गई है। थर्ड पार्टी इंश्‍योरेंस, जो कि सभी वाहनों के लिए अनिवार्य है, वाहन के आकार के अनुरूप 40 से 50 प्रतिशत महंगा होगा। हालांकि 1000 सीसी से कम इंजन वाली प्राइवेट कार और 75 सीसी से कम क्षमता वाली मोटरसाइकिल के थर्ड पार्टी इंश्‍योरेंस प्रीमियम में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी।


नगद लेनदेन की सीमा 2 लाख


सरकार ने नगद लेनदेन की सीमा 3 से घटाकर 2 लाख रुपए कर दी है। इससे अधिक के लेनदेन पर 100 प्रतिशत जुर्माना लगाया जाएगा।


फ्री ट्रांजैक्शन लिमिट 3 होगी

देश के सबसे बड़े बैंक SBI ने एक अप्रैल से होम ब्रांच पर हर महीने तीन फ्री कैश ट्रांजैक्शन की सीमा तय की है। नए नियम के मुताबिक, अगर आप महीने में 3 से ज्यादा ट्रांजैक्शन करते हैं तो आपको प्रति ट्रांजैक्शन 50 रुपए चुकाने होंगे। एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक मार्च में ही कैश ट्रांजैक्‍शन चार्ज वसूलना शुरू कर चुके हैं।


एसबीआई में होगा 6 बैंकों का विलय

एक अप्रैल से एसबीआई का स्वरूप भी बदलने जा रहा है। उसमें उसके 6 सहयोगी बैंकों का विलय होगा। विलय होने वाले बैंकों के कस्टमर एक अप्रैल से एसबीआई के कस्टमर होंगे।


बचत खातें में न्‍यूनतम जमा न रखने पर लगेगा जुर्माना

एसबीआई समेत देश के कई बैंक मिनिमम बैलेंस नहीं रखने पर 1 अप्रैल से जुर्माना वसूलेंगे। मेट्रो शहरों में एसबीआई अकाउंट होल्डर्स को मिनिमम 5,000 रुपए बैलेंस रखना होगा। वहीं, अर्बन एरिया में यह लिमिट 3,000, सेमी-अर्बन एरिया में 2,000 रुपए रहेगी।


मेल-एक्सप्रेस के किराए में कर सकेंगे राजधानी-शताब्दी में सफर


भारतीय रेलवे एक अप्रैल से ‘विकल्प’ योजना लॉन्च करने जा रही है। विकल्प स्कीम के तहत मेल या एक्‍सप्रेस ट्रेन के वेटिंग टिकट  यात्री उसी रूट पर उपलब्‍ध दूसरी ट्रेन में आरक्षित बर्थ हासिल कर सकते हैं। इसके लिए उन्‍हें कोई अतिरिक्‍त शुल्‍क भी नहीं देना होगा।


इनकम टैक्‍स रिटर्न के लिए आएगा नया फॉर्म, ई-फाइलिंग होगी शुरू

एक अप्रैल से इनकम टैक्स रिटर्न भरना और आसान हो जाएगा। इसके लिए एक नया व सरल फॉर्म आएगा। व्यक्तिगत करदाताओं के लिए फॉर्म में सूचना के लिए पहले से कम खाने होंगे। इसके अलावा अब रिटर्न फाइल करने में देरी पर आपको जुर्माना भी देना होगा। रिटर्न फाइल करने की अंतिम तिथि 31 जुलाई है। 2017-18 के लिए रिटर्न फाइल करने में देरी होने और 31 दिसंबर 2018 तक जमा करने पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगेगा। इसके बाद फाइल करने पर जुर्माने की राशि बढ़कर 10,000 रुपए होगी। पांच लाख रुपए वार्षिक आय वाले छोटे करदाताओं के लिए जुर्माने की अधिकतम राशि केवल 1,000 रुपए होगी।



सोर्स:ख़बर-इंडिया-tv
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28 फरवरी को विज्ञान दिवस मनाया जाता है. डॉक्टर सी.वी. रमन ने 28 फरवरी 1928 को ही फ़िज़िक्स की मशहूर खोज की थी. इस खोज के कारण वो विज्ञान का नोबेल जीतने वाले पहले एशियाई और अश्वेत वैज्ञानिक बने और उनकी खोज को रमन इफ़ेक्ट का नाम दिया गया. रमन को नाइटहुड की उपाधि भी दी गई. इसलिए वो सर सी.वी. रमन हो गए. रमन की खोज ने दुनिया को बताया कि आसमान नीला क्यों दिखता है.




तो आज समझते हैं कि सारे रंग हमें मिलकर कैसे बेवकूफ बनाते हैं. क्यों दिन का नीला आसमान सुबह और शाम को लाल हो जाता है? क्यों लड़कियां कलर मैचिंग में आदमियों से ज़्यादा टाइम लगाती हैं? और क्यों भगवान कृष्ण की तस्वीरें नीली बनाई जाती हैं? यकीन मानिए रंगों के इस पूरे खेल को समझने के बाद आप दुनिया को अलग रंग में देखने लगेंगे.


ये सारे रंग मिलकर हमें बेवकूफ बना रहे हैं



आपके सामने रखा वो सेब किस रंग का है?

 लाल दिख रहा है न, वो चाहे जिस रंग का हो मगर लाल नहीं है. ठीक ऐसे ही फेसबुक की जो पट्टी नीली दिख रही है वो चाहे जिस रंग की हो मगर नीली नहीं है. कह सकते हैं कि दुनिया में जो जैसा दिखता है बस वैसा नहीं होता. दरअसल प्रकाश का कोई रंग नहीं होता वो सात रंगों के कॉम्बिनेशन से बना होता है. ये रंगहीन प्रकाश किसी भी चीज़ पर पड़ता है तो वो चीज़ इस के सारे रंगों को अपने अंदर समेट लेती है. जो रंग नहीं समेट पाती वही पलट कर वापस निकल जाता है और हमें दिखाई देता है.


सेब पर लाइट पड़ी. सेब ने सारे रंगों को रोक लिया मगर लाल को नहीं रोक पाया. अब हमें वापस रिफ्लेक्ट होता लाल रंग दिखेगा और हम कहेंगे सेब लाल है. जबकि लाल तो वो रंग है जो सेब में नहीं है.


तो सेब का रंग क्या है? इसका जवाब निश्चित रूप से कोई भी नहीं दे सकता है. बस ये कहा जा सकता है कि वो बस लाल नहीं है.



क्यों कृष्ण का रंग नीला दिखाया जाता है



”सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात.” मतलब सांवले रंग के कृष्ण  पीले कपड़े पहने हुए हैं. शास्त्रों और साहित्य में कृष्ण का रंग हर जगह सांवला दिखाया जाता है. इसे समझने के लिए भारतीय दर्शन और श्री अनूप जलोटा जी की मदद लेते हैं, जिन्होनें बड़ा बेसिक सवाल पूछा कि राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला?

तो भारतीय दर्शन कहता है-

कृष्ण कौन हैं?
-जो अपने पास आने हर प्राणी को अपने अंदर समेट ले?
राधा कौन हैं?
-जिसने कृष्ण के प्रेम में संसार के हर सुख को छोड़ दिया. यहां तक कि कृष्ण को भी.


विज्ञान कहता है-



जो हर रंग को अपने अंदर समेट ले वो काला यानि कृष्ण. जिसने हर रंग को लौटा दिया वो गोरा यानी सफेद.


अब बात तस्वीरों में कृष्ण के नीले होने की. एक बहुत बड़े भारतीय पेंटर हुए हैं  राजा रवि वर्मा (जिन पर ‘रंगरसिया’ फिल्म बनी है). रवि वर्मा ने यूरोपियन शैली की पेंटिंग्स को भारतीय पौराणिक कहानियों के साथ मिलाकर पेंटिंग्स बनाईं. यूरोपियन पेंटिंग्स में तो हर किसी का रंग गोरा ही होता था. रवि वर्मा ने सांवले रंग के लिए नीले का प्रयोग किया. इन पेंटिंग्स ने देश भर में धूम मचा दी. जगह-जगह कैलेंडर और पोस्टर पर ये तस्वीरें छापी गईं और देखते-देखते ही हमारे दिमाग में कृष्ण का रंग नीला हो गया.


और हां हमारी स्किन का काला और गोरा होना रंगों के रिफ्लैक्शन पर डिपेंड नहीं करता. वो चमड़ी में मिलेनिन के कम ज़्यादा होने के कारण होता है.


फिर आसमां है नीला क्यों?



धरती से सूरज तक किरणों को आने में कुल 8 मिनट का समय लगता है. इसमें एक्स-रे, गामा, अल्ट्रावॉयलेट, माइक्रोवेव जैसी तमाम किरणें होती हैं. इनमें से ज़्यादातर धरती के वातावरण से टकराकर रुक जाती हैं. सिर्फ सफेद प्रकाश ही धरती तक पहुंच जाता है. अब इस सफेद प्रकाश में होते हैं वही तीन रंग. मगर आसमान नीला ही दिखाई देता है. रमन को इस खयाल ने परेशान किया और फिर उन्होंने इस का जवाब ढूंढ निकाला.


नीला रंग सबसे ज़्यादा भन्नाया रहता है



एक भीड़ भरी सड़क पर अगर आप धीरे से दाएं-बाएं करते हुए जाएंगे तो घर तक पहुंच जाएंगे. ऐसा ही करता है लाल रंग. लाल रंग की किरणों की फ्रीक्वेंसी सबसे कम होती है. मतलब ये किरणें सबसे धीरे और रास्ते में आने वाले धूल वगैहर से बचते हुए चलती हैं. इसी वजह से दूर तक जाती हैं. खतरे का निशान लाल इसीलिए बनाया जाता है.


 

नीले रंग की फ्रीक्वेंसी ज़्यादा होती है मतलब, भीड़ भरी सड़क पर तेज़ी से बढ़ता हुआ बंदा. रास्ते में आने वाली हर चीज़ से टकराता है और फूटकर फैल जाता है. तो बंधु, नीला रंग हमारे आसमान में मौजूद धूल वगैरह से टकराकर सबसे ज़्यादा बिखरता है और हमें दिखता है.



फिर सुबह और शाम को सूरज लाल क्यों?



सुबह और शाम को सूरज कुछ देर लाल दिखता है. फोटोग्राफर्स और कवियों के लिए नेचर ने ये व्यवस्था कर रखी है. दरअसल सुबह और शाम के इन समयों पर धरती के उस हिस्सों और सूरज की दूरी सबसे ज़्यादा होती है. अब आपको ये तो याद ही होगा कि लाल रंग सबसे दूर तक जाता है. तो सुबह-शाम कुछ देर तक इतनी दूरी होती है कि लाल रंग ही हम तक पहुंच पाता है.

औरतों को आदमियों से ज़्यादा रंग दिखते हैं



“तुम्हें तो सब एक जैसा ही दिखता है” ये बहस तो दुनिया के लगभग हर कपल में हुई होगी. आगे कभी इस तरह की बहस हो तो बता देना कि औरतें आदमियों से ज़्यादा रंग पहचान सकती हैं, ये हम नहीं कहते विज्ञान कहता है. नैश्ननल जिओग्राफिक्स की एक रिपोर्ट कहती है कि विकास के क्रम में शिकार पर गए पुरुषों को जल्दी-जल्दी और दूर भागती चीज़ों को देखना पड़ता था. धीरे-धीरे उनकी आंखें (या कहें दिमाग) इसके लिए सेट हो गईं. तो वह रंगों के बारीक फर्क में नहीं पड़ती हैं. सो इट्स साइंस बेबी.

एक आदमी और औरत के रंगों को देखने में फर्क. सोर्स- पिनट्रेस्ट

क्या हो अगर रंग ही न दिखाई दें



फेसबुक की हर थीम नीले रंग की होती है. क्योंकि मार्क ज़करबर्ग कलर ब्लाइ्ंड हैं. कलर ब्लाइंडनेस का मतलब वो बीमारी जिसमें आदमी को लाल और हरा रंग नहीं दिखता है. ये समस्या उससे कहीं बड़ी है जितनी सुनने में लगती है. आपको जो रंग बैगनी दिखाई देगा वो कलर ब्लाइंड आदमी को नीला दिखाई देगा. क्योंकि बैंगनी लाल और नीले के कॉम्बिनेशन से बनता है और कलर ब्लाइंड आदमी लाल नहीं देख सकता.

एक आम आदमी और कलर ब्लाइंड की नज़रों में फर्क. सोर्स- इज़ो.कॉम

यही है रंगबिरंगी दुनिया का किस्सा और रंगों का लल्लनटॉप विज्ञान.



सोर्स:लल्लनटॉप
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पत्थरबाज ने कबूल किया कि हिज्बुल मुजाहिद्दीन के उग्रवादी बुरहान वानी की मौत के बाद हुए हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान भी उसने पत्थरबाजी की थी।



एक निजी टीवी चैनल ने खुफिया स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया है कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय नौजवानों को पत्थरबाजी करने के लिए पैसे दिए जाते हैं। इन पत्थरबाजों ने खुफिया कैमरों के सामने स्वीकार किया कि वो नियमित तौर पर पत्थरबाजी करते रहे हैं। एक पत्थरबाज कैमरे के सामने कह रहा था कि वो साल 2008 से ही पत्थरबाज कर रहा है। पत्थरबाज फारूख अहमद लोन ने बताया कि उसे इस काम के लिए 500 से पांच हजार रुपये तक मिलते हैं। पत्थरबाज ने कबूल किया कि हिज्बुल मुजाहिद्दीन के उग्रवादी बुरहान वानी की मौत के बाद हुए हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान भी उसने पत्थरबाजी की थी।


जाकिर हमद भट नामक एक अन्य पत्थरबाज ने भी टीवी चैनल आज  तक के खुफिया कैमरे के सामने कबूल किया कि उन्हें पुलिस और भारतीय सेना पर पत्थर फेंकने के लिए पैसे, जूते और कपड़े भी दिए जाते हैं। फारूख ने बताया कि उसे उसका एक दोस्त आसिफ पैसा देता था लेकिन उसे ये पता नहीं था कि उसके दोस्त को किससे पैसा मिलता था। फारूख ने बताया कि उसके द्वारा फेंके गए पत्थरों से जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान और भारतीय सुरक्षा बल घायल हो चुके हैं।


फारूख ने बताया कि उन्हें विरोध प्रदर्शन करने और पत्थरबाजी के आदेश मिलते हैं। पकड़े जाने पर वो पुलिस के सामने पैसे मिलने की बात कबूल नहीं करते। पत्थरबाज पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए घर से फरार हो जाते हैं। बुधवार (29 मार्च) को ही जम्मू-कश्मीर पुलिस ने दावा किया कि राज्य में होने वाले पत्थरबाजी को पाकिस्तान स्थित व्हाट्सऐप ग्रुप से इसके निर्देश मिलते हैं। पुलिस के अनुसार पत्थरबाजों को व्हाट्सऐप से भारतीय सुरक्षा बलों की स्थिति बतायी जाती है।


कश्‍मीर पुलिस के एक अधिकारी ने सीएनएन-न्‍यूज 18 को बताया कि जब सुरक्षा बलों और उग्रवादियों के बीच मुठभेड़ शुरू होती है तो पाकिस्तानी ग्रुप नौजवानों को वहां जाने के लिए कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद्य ने चैनल से कहा कि यह एक तथ्‍य है कि सोशल मीडिया का इस्‍तेमाल देश के दुश्‍मनों द्वारा किया जा रहा है।  मंगलवार (28 मार्च) को कश्मीर के बडगाम में एक मुठभेड़ के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों पर पत्‍थरबाजी की गई। सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में तीन नागरिक मारे गए। कश्‍मीरी युवकों और सुरक्षा बलों के बीच इस मुठभेड़ में सीआरपीफ के 63 जवान घायल हुए।



सोर्स:जनसत्ता
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कभी दूसरों की टट्टी साफ़ कर के देखिए, ऐसा लगता है




किसी तथाकथित ‘ऊंची’ जाति के हिंदू परिवार में पैदा होना, जिसके पास खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने की सुविधा हो, ये अपने आप में एक प्रिविलेज है. इस बात को बताना नहीं पड़ेगा कि आप शिक्षित हैं, स्कूल से लेकर कॉलेज तक अच्छा करते आए हैं. अच्छा नहीं तो कम से कम औसत. नौकरी पा चुके हैं. काबिलियत नहीं तो कम से कम इतना तो आपके पिताजी का रुतबा है ही कि कहीं आप सिफारिश लगवा सकें.


फिर भी आप अक्सर परेशान हो जाते हैं. जीवन का मतलब खोजने लगते हैं. लगता है लाइफ में अच्छा नहीं कर रहे तो और पाना चाहते हैं. घर में काम भर के बर्तन हों तो सोफ़ा चाहते हैं. सोफा हो तो टीवी, टीवी हो तो गाड़ी. आपको ये नहीं सोचना पड़ता कि अगली खुराक में क्या खाएंगे.


आपका अगर पूरा बैंक अकाउंट खाली भी हो जाता है, तो उधार मिल जाता है. कितने भी बुरे दिन आ जाएं, कभी आपकी इज्ज़त नहीं जाती. दोस्त कभी ये नहीं कहते कि मेरे घर में सोफे पर क्यों बैठे हो, जमीन पर बैठो.


क्योंकि आप ऊंची जात के हैं. आप भले ही किसी झाड़ू-पोंछा करने वाले दलित से गरीब हो जाएं, लोग आपका अपमान नहीं करेंगे. ये आप की जाति का असर है. आपने इसे चुना नहीं है, पाया है. इसी तरह अगर आप दलित हैं, तो भी आपने उसे चुना नहीं, पाया है.

 


Members of the Dalit community stick slogans on their chests during an International Human Rights rally in Kathmandu December 10, 2009. The signs read, “Where are the human rights of untouchables?”, “One-fourth of the country’s untouchables are ignored, do not lie to the world” and “Implement universal human rights or else declare the country untouchable” (L-R). The people known as the Dalits are traditionally regarded as the lowest caste in the Hindu social community. REUTERS/Navesh Chitrakar


फर्क सिर्फ इतना है कि ऊंची जाति वालों को विरासत में सम्मान मिलता है और नीची जाति वालों को अपमान.


हम अक्सर कहते हैं कि अब जातिवाद कहां रह गया है. हम कहते हैं कि शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में हर तरह के लोग एक दूसरे के साथ ट्रेवल कर रहे होते हैं. कोई किसी की जाति पूछता है क्या. हम अक्सर ये भी कहते हैं कि आरक्षण की क्या जरूरत है. कि आरक्षण से केवल कुछ जातियों को वो फायदा मिलता है जिसके वो हक़दार नहीं हैं, कुछ लोग ये भी कहते हैं कि अगर आरक्षण न होता, मेरा सिलेक्शन हो गया होता.


जब हम कहते हैं कि अब लोग खुली सोच के हैं, दलितों से भेदभाव नहीं होता, हम शायद अपने गांवों, घरों को भूल जाते हैं. जहां आज भी बाथरूम साफ़ करने वालों को पैसे हाथ में नहीं पकड़ाए जाते. अलग रख दिए जाते हैं, जिसके आपकी गैरमौजूदगी में वो उसे खुद उठा लें. जहां नौकरों के कप और बर्तन अलग कर दिए जाते हैं. जहां मजदूरों के लिए चाय तो बनती है, मगर उन्हें दी डिस्पोजेबल कप में जाती है.


फिर आप ये कहते हैं कि वो लोग गंदे होते हैं न. असल में हमारे जिस मल-मूत्र को वो साफ़ कर रहे होते हैं, वो हमारे ही शरीर से निकला होता है. जब हमारे बच्चे कपड़ों में टट्टी कर देते हैं, हम उन्हें गंदा कहकर उनसे दूर नहीं भागते. मगर मल साफ़ करने वालों के प्रति हमारे अंदर एक अजीब सी घिन भरी होती है. वही मल, जो हम उन्हें देते हैं, जो हमारे घरों की नालियों से उन तक पहुंचता है.


कभी मल साफ़ करने वालों के जीवन का एक मिनट भी जिया है?


एक लड़के ने ऐसा किया. सीवर के पानी में उतर गया. सीवर साफ़ करने वालों से बात की.



ये समदीश भाटिया हैं. इन्होंने ‘चेज’ के लिए एक डाक्यूमेंट्री बनाई है. डाक्यूमेंट्री का नाम है ‘डीप शिट’. अंग्रेजी में ये दो शब्द हम अक्सर यूज करते हैं. कभी किसी मुसीबत में होते हैं, कहते हैं, ‘आई एम इन डीप शिट.’ शिट मतलब मल या गंदगी. इस अंग्रेजी वाक्य में ‘शिट’ किसी की मुश्किलों का रूपक है. मगर ये डाक्यूमेंट्री देखकर आप जानेंगे कि असल में ‘डीप शिट’ यानी मल के दलदल में धंसे होने का क्या मतलब होता है.

 


‘हम इसे संडास नहीं बोलते. संडास बोलने में बुरा लगता है. इसे हम देसी घी के परांठे बोलते हैं.’

‘मैं ये काम नहीं करूंगा तो मालूम बम्बई का क्या होइंगा? लाखों, करोड़ों लोग बीमार पड़ेगा.’

-राजू, 54, सीवेज वर्कर


ये काम किसे पसंद आता है, मगर करना पड़ता है… गर्लफ्रेंड को नहीं पता ये काम करता हूं. बताने में शर्म आती है.

-सुमित, 19, सीवेज वर्कर



Source: Chase

‘रोज रात को दारू पीता हूं, ताकि दिनभर जो देखता हूं उसे भूल जाऊं.’

-राजू, 54, सीवेज वर्कर


‘हम हाईवे बनाना चाहते हैं तो बन जाते हैं न? सिक्स लेन, एट लेन, बारह लेन रोड बना लेते हैं. उसका पैसा होता है. नालियां बनाने का पैसा नहीं होता क्या? इसका एक ही मतलब है. आप बनाना ही नहीं चाहते.’

-बेजवाडा विल्सन, फाउंडर, सफाई कर्मचारी आंदोलन


‘हर दलित सफाई कर्मचारी नहीं है. लेकिन हर सफाई कर्मचारी दलित है. हमारी पिछली तीन पीढियां सफाई कर्मचारी रही हैं. पिताजी हर शाम काम करने बाद जब घर आते, शराब पिए होते थे. मां को पीट देते थे. मगर उनको पूरा दोष नहीं देता. दिन भर गंदगी में काम करते थे. स्ट्रेस में आकर गुस्सा कहां निकालेंगे?’

-सुनील, पीएचडी स्टूडेंट और सफाई कर्मचारी


‘मेरे पिता सीवर साफ़ करने घुसे. उसके अंदर की गैस की वजह से मर गए.’

-सुमीत, बेटा



Source: Chase



‘भगवान की मिट्टी से बना हूं. भगवान ने ये काम दिया है मुझे.’

-सौरव, नाला सफाई वर्कर

 

देखिए डाक्यूमेंट्री:

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29 मार्च 1857 वो तारीख है, जिसने दुनिया के इतिहास को एक नया मोड़ दिया. इसी दिन बंगाल की बैरकपुर छावनी में एक गोली चली थी. मंगल पांडे ने अपनी एनफील्ड रायफल से सार्जेंट-मेजर ह्यूसन और लेफ्टिनेंट बाग़ की हत्या कर दी थी. 8 अप्रैल को मंगल पांडे फांसी पर चढ़ा दिए गए. लंबे समय तक ब्रिटिश सेना में बागी सिपाहियों को पांडे कह कर बुलाया जाने लगा था. भारत में फोटोग्राफी 1840 में शुरू हो गई थी. 1857 के हिंदुस्तान में कुछ फोटोग्राफर थे. इनमें से ज़्यादातर राजाओं और नवाबों की तस्वीरें खींचने के लिए रखे गए थे. क्रांति हुई तो इन लोगों ने भी कई तस्वीरें खींचीं. आइए देखते हैं उस दौर की कुछ घटनाएं और उनसे जुड़ी कुछ दुर्लभ तस्वीरें.


1853 में ब्रिटिश सेना ने पैटर्न एनफील्ड P-53 राइफल का इस्तेमाल शुरू किया. इनमें गोली नहीं, कार्टेज यानी कारतूस भरा जाता था. एक पैकेट में बारूद और छर्रे होते थे. दांत से इस पैकेट को खोलकर बारूद नली में भरकर, ऊपर से छर्रे डाल दिए जाते थे.

उस दौर की गुरखा बटालियन


फोटो सोर्स- गन हिस्ट्री ऑफ इंडिया

# 1885 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह अपनी एक बेगम और बेटी के साथ. एक आम धारणा है कि अवध के नवाब और सेनाएं बहादुर नहीं थे. जबकि अवध अंग्रेज़ों के कब्ज़े में सबसे बाद में आ सका था. लखनऊ के नाचने-गाने वालों ने बेगमों के साथ मिलकर 18 महीने तक अंग्रेज़ों को शहर में घुसने नहीं दिया था.


फोटो- विलियम वोल बायोग्राफिकल स्केच

#  2000 विद्रोहियों की हत्या करने के बाद खंडहर हुए अवध के ही सिकंदर बाग की तस्वीर. ज़मीन पर पड़ी खोपड़ियों और कंकालों को देखिए.


फोटो- विकी

# 1857 के गदर में दिल्ली में डेरा डाले हुए 34th सिख पायनियर के जवान. सिखों की ये रेजीमेंट अंग्रेज़ों की सबसे खास टुकड़ियों में से एक थी.


सोर्स- डिफेंस फोरम इंडिया

# 1880 में पेशावर की ऐलीफेंट बैट्री. आज पेशावर शहर का नाम बड़ा पराया सा लगता है.

सोर्स- डिफेंस फोरम इंडिया

# 1858 में कलकत्ता में HMS शैनन पोत.


सोर्स- डिफेंस फोरम इंडिया

# जोधपुर के फैशनेबल महाराजा. राजपरिवार ने पोलो खेलने के लिए शेरवानी को मॉडिफाई करके बंद गले का कोट बनवाया. बंद गले को जोधपुरी भी कहा जाता है.


फोटोग्राफर- दीनदयाल

# अवध की मशहूर गाने वाली गौहर जान.


फोटो- तस्वीर जर्नल

# 1900 से पहले के राजपूत योद्धा.


सोर्स- डिफेंस फोरम इंडिया

# 1857 में गदर के बाद दिल्ली का एक बाज़ार.



# जर्मन फोटोग्राफर की खींंची इस तस्वीर को इतिहासकार महारानी लक्ष्मीबाई की असली तस्वीर मानते हैं. उसे नहीं, जो आपने सोशल मीडिया पर देखी होगी.

सोर्स- ललित.इन

# 1858 में तबाह हो गई लखनऊ रेज़ीडेंसी.


सोर्स- कोलंबिया एजुकेशन

# आखिरी दिनों में मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर अपने बेटों के साथ.



# ब्रिटिश सेना के कब्ज़े में आने के बाद ये 1858 का कानपुर है.


सोर्स- नेशनल आर्मी म्यूज़ियम, यूके

# सबसे आखिर में पकड़े गए विद्रोही तात्या टोपे की कैद में फोटो. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि तात्या के नाम पर किसी और को पकड़ लिया था.






सोर्स:लल्लनटॉप
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नोएडा। चाय की होम डिलीवरी कर लाखों रुपए कमाने वाले दो इंजीनियर्स अभिनव और प्रमीत का नाम इन दिनों हर किसी की ज़ुबान पर है। कभी पेशे से इंजीनियर रहे अभिनव टंडन और प्रमीत शर्मा आज 'चाय कॉलिंग' नाम से नौ टी-स्टॉल चला रहे हैं, जिससे होने वाली सालाना कमाई करीब 70 लाख रुपए है। जल्द ही अभिनव और प्रमीत की देश के दूसरे इलाकों में भी टी-स्टॉल खोलने की योजना है।


लखनऊ में खोलेंगे 20 टी-स्टॉल

प्रमित शर्मा के मुताबिक़ उनके टी-स्टॉल पर 15 किस्म की चाय मिलती है। चाय की कीमत 5 रुपए से लेकर 25 रुपए तक है। आन डिमांड फ्रेश चाय सप्लाई होती और इको फ्रेंडली तरीके से पेपर कप में परोसी जाती है। इसके अलावा लखनऊ में 20 और बरेली में 4 और आउटलेट खोलने की योजना है।


कैसे आया टी-स्टॉल खोलने का आइडिया

अपनी एक स्टाल पर अभिनव और प्रमीत।

अभिनव और प्रमीत इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते वक्त बिज़नेस मैगजीन्स भी पढ़ा करते थे। वहीं से कारोबार शुरु करने का आइडिया आया। लेकिन पैसों की कमी थी इसलिए दोनों ने एक ऐसा कारोबार शुरु करने की योजना बनाई जिसमें पैसा तो कम खर्च हो लेकिन ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोज़गार मिल सके।


लाखों रुपए के सैलरी पर कर रहे थे काम

अभि‍नव ने गाँव कनेक्शन को बताया कि दोनों अच्छी खासी तनख्वाह पर नौकरी कर रहे थे। अपनी-अपनी तनख्वाह से दोनों ने कुछ पैसे बचाए और एक लाख रुपए लगाकर अपना पहला टी-स्टॉल नोएडा के सेक्टर-16 के मेट्रो स्टेशन पर खोला।


चाय की होम डिलीवरी के लिए चाय ब्रिगेड

चाय की तेज़ डिलीवरी के लिए अभिनव और प्रमीत ने चाय ब्रिगेड बनाई है जो ऑर्डर बुक करने के पंद्रह मिनट के भीतर चाय की डिलीवरी कर देती है। साल 2014 से 2015 में चाय कॉलिंग की कमाई 70 लाख के करीब थी, जो 2016 मे बढ़कर करीब एक करोड़ पहुंचने की उम्मीद है।


हॉस्पिटल में खाना सप्लाई की योजना

चाय बेचने और चाय की डिलीवरी करने के अलावा अभिनव और प्रमीत हॉस्पिटल में मरीज़ों के लिए दलिया और मूंग से बने खाद्य पदार्थों की सप्लाई की भी योजना बना रहे हैं। जिसकी शुरुआत जल्द हो सकती है।



सोर्स:गाँव-कनेक्शन
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उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचने के लिए हजारों लोगों ने ख्वाब संजोया था, जिसमें से 403 लोगों का ख्वाब 11 मार्च को आए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम के दिन पूरा हो गया। लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बिना चुनाव लड़े भी विधायक बना जा सकता है और आपको यह ऐसे शख्स के बारे में बताते हैं जो बिन चुनाव लड़े ही तीन बार विधानसभा के सदस्य बन चुके हैं।


यह विधायक है पीटर फैंथम जिन्हें विधायक नंबर 404 के नाम भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 404 सीटें हैं जिससे में 403 सीटों पर सीधा चुनाव होता है लेकिन 404 नंबर सीट एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित है। इस सीट पर सरकार की सहमति से राज्यपाल एंग्लो इंडियन समुदाय के किसी व्यक्ति को मनोनीत करते हैं। वर्तमान में पीटर फैंथम इस सीट पर साल 1997 से विधायक हैं। माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी की राज्य में सरकार बनने के बाद इस पद किसी नए लोगों को मौका दिया जा सकता है।


संविधान के अनुच्छेद 333 के तहत संसद में दो और राज्य विधानसभाओं में एक एंग्लो इंडियन सदस्य को मनोनीत करने का प्रावधान है। आजादी मिलने पर जब संविधान बनाया जा रहा था तब एंग्लो इंडियन सोसाइटी के चर्चित नेता फ्रैंक एंथोनी ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से संसद में एंग्लो इंडियन के लिए सीट आरक्षित किए जाने की मांग की। उनकी दलील थी कि इस वर्ग के ज्यादातर लोग विदेश जा चुके हैं।


फैंक एंथोनी के फाइलफोटो।



उनकी कुल संख्या तब लगभग पांच लाख थी जो कि देश भर में बंटे हुए थे। इसलिए उनका संसद तक पहुंच पाना असंभव था। नेहरु ने उनके लिए लोकसभा में दो सीटों के मनोनयन की व्यवस्था कर दी। इसके अलावा देश की विभिन्न विधानसभाओं में भी इनके लिए विधानसभा की सीटें आरक्षित की गई। जहां पर बिना चुनाव लड़े ही इस समुदाय के लोगों को विधायक मनोनीत किया जाता है। जब उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था तब एक एंग्लो इंडियन को विधानसभा के लिए मनोनीत किया जाता था। उत्तराखंड बनने के बाद भी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में एक-एक सीट पर एंग्लो इंडियन को विधायक मनोनीत किया जाता रहा है।


उत्तर प्रदेश के 404 वें विधायक का अपना कोई विधानसभा क्षेत्र नहीं है। ये पूरे उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये चुनाव भी नहीं लड़ते हैं, पर विधानसभा में इनकी अपनी अलग पहचान होती है। ये राजनीतिज्ञ हैं, पर दलगत राजनीति से सीधा सरोकार इनका नहीं हेाता है। आमतौर पर प्रदेश के इस विधायक से ज्यादातर लोग वाकिफ होते हैं। इस सीट के मौजूदा विधायक पीटर फैंथम यूपी के फतेहगढ़ के रहने वाले हैं। वह पेशे से टीचर हैं और लामार्टिनियर कालेज लखनऊ के सदस्य हैं।


आम लोग एंग्लो इंडियन के बारे में कम जानते हैं यह लोग देश के महानगरों के साथ ही विभिन्न प्रदेशों की राजधानियों में स्कूल चलाते हैं। दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के साथ ही लखनऊ में यह लोग रहते हैं। ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट और झारखंड विधानसभा के के एंग्लो कोट से मनोनीत विधायक ग्लेन जोसेफ गॉलस्टन कहते हैं '' देश के अलग- अलग हिस्सों में लगभग दो लाख से ज्यादा एंग्लो इंडियन रहते हैं। एंग्लो इंडियंस की सबसे ज्यादा आबादी, जमशेदपुर, रांची, धनबाद और चक्रधरपुर में हैं। दुनिया में एंग्लो इंडियंस के लिए बसाया गया एक मात्र शहर मैकलुस्कीगंज झारखंड की राजधानी रांची जिले में ही है। ''


उन्होंने बताया कि एंग्लो इंडियन पश्चिमी और भारतीय नामों, रीति रिवाजों और रंगरूप से मिले लोगों का समुदाय है। जिसकी जड़े ब्रिटिश काल से हैं। ब्रिटेन के साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में यह समुदाय रहता है। एंग्लो इंडियन की मातृ भाषा इंगलिश होती और यह लोग ईसाई धर्म को मानते हैं।


अपना रीति रिवाज बचाने के लिए चर्च में जुटते हैं एंग्लो इंडियन समुदाय के लोग।



एंग्लो इंडियन को लेकर एक मत यह भी है कि यह लोग यूरोपीय मूल के थे पर इनका जन्म जन्म भारत में हुआ और वे यही पले बढ़े। इनमें रुडयर्ड किपलिंग, जॉर्ज ऑरवेल, रस्किन बांड का नाम प्रमुख है। वहीं एक मत यह है कि एंग्लो इंडियन वह हैं जिनके पिता ब्रिटिश और मां भारतीय थीं। क्लिफ रिचर्ड, क्रिकेटर नासिर हुसैन, फुटबाल खिलाड़ी माइकेल चोपड़ा, बेन किंग्सले, पूर्व एयरवाइस मार्शल मौरिस बरकार, लारा दत्ता, महेश भूपति, रोजर बिन्नी, फ्रैंक एंथोनी, पूर्व वायुसेनाध्यक्ष अनिल कुमार ब्राउनी और फिल्म स्टार कैटरीना कैफ सभी इसी समुदाय से हैं। जोनमोन क्विज मास्टर और तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन एंग्लो इंडियन समुदाय के बड़े नेता और उनकी आवाज हैं।




सोर्स:गाँव-कनेक्शन
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हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने वाले योगी आदित्यनाथ को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों की कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। इनमें से कुछ बॉलीवुड हस्तियां भी हैं, जो अपने ट्वीट्स को लेकर ट्रोल की जा रही हैं। 



हाल ही में फिल्कार शिरीष कुंदर ने ट्विटर पर योगी आदित्यानाथ को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी, जिसके बाद उन्हें कई तरह की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा। यहां तक की उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करवा दी गई। 



हालांकि उन्होंने बाद में अपने इन ट्विट्स को डिलिट कर योगी आदित्यनाथ से माफी भी मांगी। लेकिन अब अक्षय कुमार की पत्नी ट्विंकल खन्ना ने भी सीएम योगी पर भी निशाना साधा है।


ट्विंकल अक्सर अपने बेबाक बयानों को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं। लेकिन इस बार उन्होंने योगी आदित्यानाथ को एक अजीब सलाह दे दी है। दरअसल ट्विंकल ने कहा है कि, योगी को गैस रिलीज करने वाले आसन करने चाहिए। 



एक टीवी चैनल से इंटरव्यू के दौरान उन्होंने यह बात कही। उन्होंने यह टिप्पणी योगी के महिलाओं की सुरक्षा को लेकर दिए बयान के बाद की।





सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने योगी के फैशन को लेकर भी टिप्पणी करते हुए कहा, "फैशन बदल रहे हैं, बल्कि एशियन पेंट्स को तो इस सीजन के लिए नए रंग का ऐलान कर देना चाहिए। 



आकर्षक भगवा और भी इस टैग लाइन के साथ- ऑरेंज अब नया ब्राउन है।" बता दें ट्विंकल फेमिनिजम को लेकर काफी सक्रिय रहती हैं। उन्होंने हाल ही में सेक्शुअल हैरेसमेंट को लेकर ब्लॉक भी लिखा था।




सोर्स:खबर इंडिया
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फ्लाइट के एक सहयात्री ने सुनाई पूरी कहानी




कपिल शर्मा और सुनील ग्रोवर के बीच हुआ झगड़ा आए दिन बड़ा होता जा रहा है. कपिल इस घटना के लिए माफी मांग चुके हैं, तो सुनील इस घटना से बहुत आहत हैं और उन्होंने द कपिल शर्मा शो को छोड़ने का मन बना लिया है.


और खबरें ये भी आ रही हैं कि उनके समर्थन में नानी का किरदार करने वाले अली असगर और चंदू चायवाला के किरदार में नजर आने वाले चंदन प्रभाकर भी शो छोड़ देंगे. इन तीनों किरदारों ने इस घटना के बाद शो की शूटिंग को बायकॉट कर रखा है.


हालांकि खबरें तो आईं थीं कि 18 मार्च की उस 12 घंटों की मेलबर्न-दिल्ली-मुंबई फ्लाइट में कपिल शर्मा ने सुनील ग्रोवर को कॉलर से पकड़कर थप्पड़ मारे थे. लेकिन असल में सारी घटनाएं क्या थीं और मामला यहां तक क्यों जा पहुंचा था, इसकी कोई जानकारी नहीं थी.


लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स के एक रिपोर्ट की मानें तो उस फ्लाइट में सफर कर रहे एक शख्स ने बताया है कि आखिर उस दिन क्या हुआ था.


कपिल नशे में थे

कपिल अपनी टीम के साथ ऑस्ट्रेलिया से शो कर इंडिया लौट रहे थे. कपिल ग्लेनफिडिच विहस्की की एक पूरी बोतल पी चुके थे. केबिन क्रू खाना सर्व कर रहा था तो उस वक्त वहां मौजूद पूरी टीम ने खाना शुरू कर दिया. इसी बात से कपिल नाराज हो गए. कपिल अभी ड्रिंक कर रहे थे और उन्हें एतराज था कि लोग उनके बिना ही खाना खा रहे हैं. कपिल बोले, 'जब मैंने खाना शुरू नहीं किया तो तुम लोगों ने कैसे ले लिया खाना?'


सुनील को कॉलर पकड़कर मारा थप्पड़

कपिल इतनी जोर से चिल्ला रहे थे कि फ्लाइट में सफर कर रहे लोग डिस्टर्ब हो रहे थे.


चश्मदीद ने बताया, 'कपिल की हरकत से उनकी टीम के मेंबर इतने सहम गए कि आधा खाना खाया हुआ प्लेट ही क्रू को लौटाने लगे. इस दौरान सुनील कपिल को शांत कराने की कोशिश कर रहे थे. इससे कपिल और भड़क गए और उन्होंने अपना जूता निकालकर सुनील पर फेंक दिया. सूत्रों का कहना है कि कपिल ने सुनील का कॉलर भी पकड़ा और कई थप्पड़ मारे.


सुनील ने कुछ नहीं कहा

चश्मदीद ने बताया कि इस दौरान सुनील शांत ही रहे. कपिल और भी भड़क गए थे और लगातार गालियां दे रहे थे. कपिल ने अपनी टीम से कहा, 'तुम लोगों को मैंने बनाया है. मैं सबका करियर खत्म कर दूंगा. तुम टीवी वाले क्या समझते हो? सबको निकाल दूंगा मैं.'


पिछली बार शो छोड़ने के लिए सुनील को मारा ताना

कपिल ने सुनील ग्रोवर को उनका शो छोड़कर जाने और फिर वापस आने की घटना को याद करते हुए ताना मारते हुए कहा, 'गया था ना तू तो, आया ना वापस मेरे ही पास.'


इस पूरी घटना के बाद फ्लाइट के पैसेंजर्स घबरा गए थे. क्रू कपिल को शांत कराने की कोशिशें कर रहा था. यहां तक कि उन्हें कपिल को सिक्योरिटी बुलाने की धमकी भी देनी पड़ी.


फिलहाल कपिल ने माफी मांगी है और कहा है कि हममें हमेशा अच्छी बातों के लिए झगड़े होते ही रहते हैं. लेकिन लगता है कपिल इस बार हद से बाहर चले गए हैं. क्योंकि सुनील ने जिस तरह इस मामले पर कपिल को सुनाया है, लगता नहीं कि वो वापस  आएंगे. खबर ये भी है कि अगर उनकी फीस डबल भी कर दी जाती है तो भी वो कपिल के शो में कभी वापस नहीं आएंगे.


अगर नए खबरों पर यकीन करें तो कॉमेडियन कृष्णा अभिषेक सुनील की जगह ले सकते हैं.




सोर्स:फर्स्टपोस्ट
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अपने 20 साल से 45 साल के युवाओं को चीन में कम्युनिस्ट सरकार ने एक बेहद अजीब ऑफर दिया है। इस ऑफर में युवाओं को एक रोज़ गोल्ड आईफोन दिया जा रहा है। इस ऑफर को लेकर चीन सरकार ने कहा है कि ‘जो युवक अपना स्पर्म डोनेट करेंगे उन्हें यह आई फोन फ्री दिया जायेगा।’ चीन सरकार ने युवाओँ से बड़ी ही मार्मिक अपील की है। सरकार ने कहा है कि अपने देश की खातिर कृपया अपना स्पर्म डोनेट कीजिए।


अपने इस काम के लिए चीन की सरकार ने सोशल साइट्स का सहारा भी लिया है चीन सरकार ने सोशल मीडिया पर कुछ गेम भी अपलोड किये गये हैं। इन सभी गेम्स के बाद सरकार की तरफ से एक हजार अमेरिकी डॉलर या एक रोज़ गोल्ड आईफोन का ऑफर दिया गया है। दरअसल, चीन हर साल बूढ़ा होता जा रहा है, और काम करने वालो की संख्या लगातार घटती जा रही है। यहाँ की सरकार ने कहा है कि कुछ राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों से चीन के स्पर्म बैंक में स्वेच्छा से स्पर्म डोनेट करने वालों की कमी आ गयी है।



चीन में यह धारणा आम है कि किसी अंजान के स्पर्म से प्रेग्नेंट होने वाली महिला कंफ्युशियस के सिद्धांतो की अवहेलना करेगी। चीन में कंफ्युशियस को ईश्वर के तुल्य संज्ञा दी गयी है। इसी तरह चीनी युवक भी अपना स्पर्म डोनेट करने को नैतिक मूल्यों के विपरीत मानते हैं।चीन सरकार की योजना यह है कि वो गंभीर संकट की दशा में आने से पहले अपने देश को युवा रखने के लिए आर्टिफीशियल इनसेमिनेशन अडॉप्ट करेगा।


सोर्स:24हिन्दीन्यूज़
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यूपी का मज़ाक उड़ता था कि वहां पांच-पांच सीएम हैं, पर लेओ. अब एक भी नहीं है. बीजेपी के पास इत्ते विधायक हो गए हैं कि समेटा नहीं जा रहा. विराट कोहली को चोट लगती है, पर जनता कि धुकधुकी इस बात पर बढ़ी रहती है कि यूपी में सीएम के लिए बीजेपी कब-किसका नाम दे देगी. मैच से ज्यादा रोमांच यहां है.


अब रोमांच में खखोरपना करने वाले भी कम थोड़े हैं. विकीपीडिया पर उत्तर प्रदेश का अगला सीएम घोषित भी कर डाला गया. कोई गया और विकीपीडिया पर यूपी के अगले सीएम के तौर पर योगी आदित्यनाथ का नाम लिख डाले. और जॉइनिंग की डेट डाले एक दिन आगे की. ये होता है कांफिडेंस.



यार माने रुक जाते. अभी तो वेबसाइट्स ने ‘न घर है न जमीन, लेकिन राइफल-CAR के शौकीन हैं आदित्यनाथ’ टाइप्स स्टोरी करनी शुरू ही की थीं. हम मानते हैं कि ‘आदित्यनाथ फॉर यूपी सीएम’ जैसे पेज बने हैं फेसबुक पर रुक जाओ दोस्तों. इत्ती जल्दी काहे की है? ठहर जाओ. जब होगा, बनेगा तो पता लगेगा.


फिर लोगों ने अलग तरीके से मौज लेनी शुरू कर दी है. अभी-अभी हमें पता लगा कि विकीपीडिया के हिसाब से अखिलेश कभी सीएम थे ही नहीं, सीएम कोई आरजे तनय मिश्रा थे. और अभी के सीएम संजय गुप्ता हो गए हैं. लोगों ने इस पेज पर बवाल मचाना शुरू किया है. अब जिसका जो मन आ रहा है लिखे जा रहा है.



एक इनकी होशियारी भी देख लीजिए.



मजाक-वजाक जो जहां है वहां. सीरियस बात ये कि जो सच में सीएम पद की रेस में आगे हैं. उनको जान लीजिए.

ओरिजिनल पोस्ट यहां ( लल्लनटॉप) पर पढ़े



1. सतीश महाना


साल 1991 से लगातार विधायक 
(पांच बार कानपुर कैंट से, दो बार महाराजपुर से)



कानपुर में संघ के एक स्वयंसेवक थे. रामअवतार महाना. 1960 में उनके यहां एक लड़का हुआ. नाम रखा सतीश. सतीश कुछ बड़ा हुआ तो अपने पिता के साथ संघ की शाखाओं में जाने लगा.


लेकिन सतीश महाना पूरी तरह राजनीतिक हुए राम मंदिर आंदोलन के समय. अयोध्या में कार सेवा के समय बीजेपी को नेताओं की एक पूरी खेप मिली, जिनमें महाना भी शामिल थे. 1991 के चुनाव में पार्टी ने कानपुर छावनी विधानसभा सीट से टिकट देकर उन्हें इनाम दिया. महज 31 की उम्र में वो राम लहर में पहली बार चुनाव जीत गए.



लेकिन इसके बाद उन्होंने खुद को एक कुशल नेता के तौर पर स्थापित कर लिया. इसके बाद वो चार बार, अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग प्रत्याशियों को हराकर इसी सीट से चुनाव जीते.


फिर 2012 चुनाव से पहले परिसीमन हो गया. छावनी विधानसभा का बड़ा हिस्सा कटकर महाराजपुर में चला गया. इसके बाद महाना ने छावनी सीट छोड़ दी और महाराजपुर से लड़ने चले गए. भविष्यवाणियां हुईं कि अब उनके लिए चुनाव मुश्किल हो जाएगा. लेकिन सपा लहर के बावजूद वो वहां से भी 33 हजार वोटों के बड़े अंतर से चुनाव जीते.


ताजा चुनाव में उन्होंने करीब 92 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है. स्थानीय पत्रकार उन्हें कानपुर और आस-पास के जिलों में सबसे लोकप्रिय भाजपा विधायक बताते हैं. वजह सिर्फ एक, कि वह सर्वसुलभ हैं. जिन दो सीटों से वो चुनाव जीते हैं, वहां उनकी बिरादरी के वोट न के बराबर हैं. सवर्णों-पिछड़ों और हर आर्थिक तबके में उनका अच्छा समर्थन है.


एक बात और है. कई लोग मानते हैं कि सतीश महाना जितने समय से पार्टी में परफॉर्म कर रहे हैं, उन्हें वैसा इनाम नहीं मिला. 2009 में ही उन्हें कानपुर से सांसदी का टिकट मिला था, लेकिन जीत नहीं सके. 2014 में भी टिकट मिलना था. लेकिन नरेंद्र मोदी वाराणसी लड़ने आ गए तो मुरली मनोहर जोशी को कानपुर शिफ्ट करना पड़ा. इससे महाना फिर सांसदी से वंचित रह गए.


महाना पुराने बीजेपी नेता हैं. उन्हें बहुत कम लोग नापसंद करते हैं. अरुण जेटली से उनके अच्छे संबंध हैं. सीएम उम्मीदवारी के बारे में पूछे जाने पर अभी वो ‘मेरी पार्टी कार्यकर्ता की हैसियत है’ वाला जवाब ही दे रहे हैं.


भाजपा को इस बार ब्राह्मण, ठाकुर और पिछड़ों का बंपर वोट मिला है. इसलिए पार्टी किसी वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती. खास तौर से पिछड़े को सीएम बनाने से सवर्ण बिदक सकते हैं. कुछ जानकारों का मानना है कि महाना इसीलिए सांचे में फिट हो रहे हैं. वो पंजाबी खत्री हैं और उनके आने से सबकी नाराजगी और खुशी का स्तर समान हो जाएगा.


दूसरा, भौगोलिक नजरिये से भी कानपुर की स्थिति बीजेपी की भविष्य की सियासत के अनुकूल है. महाना को मुख्यमंत्री बनाने का असर इटावा मंडल पर भी पड़ेगा, जो मुलायम बेल्ट कही जाती है. कानपुर का CM बनाकर पार्टी पूरे मध्य क्षेत्र को खुश कर देगी. बुंदेलखंड भी कानपुर से सटा हुआ है तो वो भी आ जाएगा. पूर्वांचल भी यहां से बहुत दूर नहीं है.


महाना विवादित नहीं है. कट्टर नहीं हैं. वो किसी गुट में नहीं आएंगे. संघ की पृष्ठभूमि भी है. इसलिए अमित शाह के लिए उन्हें मैनेज करना आसान होगा.


महाना के कई घर हैं. लेकिन वह हरजेंदर नगर, कानपुर में रहते हैं. उनका एक बेटा और एक बेटी है, जो प्रॉपर्टी डीलिंग और अपने स्कूल का काम देखते हैं.


2. सुरेश खन्ना


साल 1989 से लगातार शाहजहांपुर के विधायक.



यूपी के मुख्यमंत्री पद के लिए अमित शाह इन पर दांव लगा सकते हैं.


सुरेश खन्ना खत्री पंजाबी हैं, लेकिन उनकी पैदाइश शाहजहांपुर की ही है. 1953 की. लखनऊ यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया और वहीं से छात्र राजनीति की शुरुआत की. इसी राजनीति ने उन्हें RSS तक पहुंचाया और RSS ने बीजेपी तक. लेकिन विधायक बनने के लिए सुरेश ने बीजेपी के टिकट का इंतजार नहीं किया था. 1980 में उन्होंने लोकदल के टिकट पर विधायकी का चुनाव लड़ा. हार गए. 1985 तक बीजेपी में शामिल हो चुके थे, तो बीजेपी से लड़े. फिर हारे, लेकिन दूसरे नंबर पर रहे. इसके बाद फिर कभी नहीं हारे.


1989 में सुरेश ने बीजेपी के टिकट पर नवाब सिकंदर अली खान को 4,899 वोटों से हराया था. नवाब पिछला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे और निर्दलीय लड़ते हुए अपनी विधायकी बचाने उतरे थे. 1991 की रामलहर में सुरेश ने जनता दल के मोहम्मद इकबाल पर 28,237 वोटों की बड़ी जीत दर्ज की थी. 1993 में उन्होंने सपा के अशोक कुमार को 16,868 वोटों से हराकर हैट्रिक बनाई. 1996 में नवाब सिकंदर अली फिर आए. कांग्रेस के टिकट पर. लेकिन वो इस बार भी सुरेश से 22,265 वोटों से हार गए. 2002 में चुनाव हुए, तो सुरेश ने सपा के प्रदीप पांडेय पर 23,037 वोटों से हराया.


2007 में बीएसपी की लहर थी, तो बीएसपी के फैजन अली खान दूसरे नंबर पर रहे. सुरेश ने 10,190 वोटों से फिर जीत दर्ज की. डबल हैट्रिक बनी. 2012 के चुनाव में सपा लहर थी, तो सपा के तनवीर खान दूसरे नंबर पर रहे. ये अखिलेश के करीबी बताए जाते हैं और अभी शाहजहांपुर की नगर पालिका के अध्यक्ष हैं. पिछले चुनाव में वो 16,178 वोटों से हारे थे और इस बार के चुनाव में 19,203 से हारे.


इस बार शाहजहांपुर की सदर सीट पर सपा और बसपा, दोनों ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे. तीसरे नंबर पर रहे बीएसपी कैंडिडेट मोहम्मद असलम खान को सिर्फ 16,546 वोट मिले. अगर आंकड़ों और समीकरणों के आधार पर सुरेश खन्ना की जीत का आकलन करें, तो कोई निष्कर्ष नहीं मिलता. खन्ना अपनी विधानसभा के गांवों के बूते चुनाव जीतते हैं. ये गांववाले सुरेश को इसलिए चुनाव जिताते हैं, क्योंकि वो इनकी पहुंच में हैं.


यूपी में अप्रत्याशित बहुमत हासिल करने के अगले दिन 12 मार्च को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने खन्ना को दिल्ली बुलाया. खन्ना पहुंचे. 13 तारीख को बीजेपी की संसदीय बोर्ड की बैठक में शामिल हुए. अब इन्हें बड़ा पद मिल सकता है.


सुरेश खन्ना ने शादी नहीं की. खुद को फुल टाइम पॉलिटीशयन मानते हैं. जमीनी नेता माना जाता है. इलाकाई लोग बताते हैं कि कभी-कभार लोगों को इलाज कराने हॉस्पिटल जाते हैं, तो जरी और कालीन के मुस्लिम कारीगरों की भी मदद करते हैं.


एक व्यापारी समर्थक इनके पक्ष में कहता है, ‘लोगों को शाहजहांपुर आकर देखना चाहिए कि जो नेता जनता की सेवा करते हैं, जनता कैसे उनके साथ जुड़ी रहती है.’ खन्ना की सीट पर उनकी खुद की बिरादरी का वोट डेढ़ हजार से ज्यादा नहीं है. फिर भी वो आठ बार से विधायक हैं.


शाहजहांपुर शहीदों का शहर है. रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की जमीन है ये. खन्ना के काम की बात करने पर ये बातें भी बताई जाती हैं कि उन्होंने खनौत नदी के बीच हनुमान की सवा सौ फुट ऊंची मूर्ति बनवाई और बिस्मिल, अशफाक और ठाकुर रोशन सिंह के नाम पर शहीद स्मृति पार्क बनवाया.


3. दिनेश शर्मा



लखनऊ के मेयर हैं और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी



शर्मा को नरेंद्र मोदी और अमित शाह, दोनों का बेहद विश्वस्त माना जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद मोदी और शाह ने दिनेश को अपने गृहप्रदेश गुजरात का प्रभारी बनाया था. यानी उनके पास आलाकमान का पूरा भरोसा है. पिछले साल दशहरे पर नरेंद्र मोदी ने लखनऊ के लक्ष्मण मैदान में जो रैली की थी, उसकी जिम्मेदारी भी दिनेश शर्मा के कंधों पर थी. इस रैली में मोदी का ‘जय श्री राम’ बोलना खूब चर्चित हुआ था. एक और महत्वपूर्ण बात, शर्मा के पास RSS का समर्थन भी है.


महाराष्ट्र, हरियाणा और असम में पार्टी ने ऐसे नेताओं को सीएम बनाया, जो पहले से चर्चा में नहीं थे. पद मिलने से पहले राज्य के बाहर कम ही लोग उन्हें जानते थे. खास रणनीति के तहत पार्टी ने ऐसे नेता चुने, जिनकी निजी महत्वाकांक्षा कम थी और वो हर परिस्थिति में राष्ट्रीय नेतृत्व के अंडर रहकर ही काम करेंगे. शर्मा इस खांचे में फिट बैठते हैं. वो सीएम बने, तो लखनऊ का संचालन भी दिल्ली से हो सकता है.


दिनेश 2008 में पहली बार लखनऊ के मेयर बने थे. 2012 में जब दोबारा चुनाव हुए, तो उन्होंने कांग्रेस के नीरज वोरा को 1.71 लाख वोटों के अंतर से हराया था. उस समय कांग्रेस में रहे वोरा बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें लखनऊ नॉर्थ सीट से उतारा था, जहां उन्होंने सपा कैंडिडेट अभिषेक कुमार को 27,276 वोटों से हरा दिया. वोरा को 1,09,315 वोट मिले.


यूपी में सरकार बनाने के बाद अब बीजेपी के पास बहाने बनाने का मौका नहीं होगा. जिस विकास के नाम पर उसने वोट बटोरा है, वो उसे अब डिलीवर करना होगा. फिर चाहे सड़क हो, गंगा-सफाई हो या बिजली आपूर्ति. सोशल मीडिया पर राम मंदिर की भी बयार है. दिनेश शर्मा पहले ही दावा कर चुके हैं कि अगर बीजेपी सरकार में आई, तो 24 घंटे बिजली दी जाएगी.

देखते हैं यूपी में सेहरा किसके सिर सजता है.




सोर्स:लल्लनटॉप
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amir khan




 आमिर खान 52 साल के हो गए हैं। 14 मार्च 1965 को मुंबई में जन्मे आमिर एक्टर बनने से पहले टेनिस प्लेयर थे। उन्होंने स्टेट लेवल पर कई चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और अंडर 12-14 ग्रुप में चैम्पियन रहे। पिता ताहिर हुसैन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि आमिर ने नेशनल लेवल पर भी टेनिस खेला है।


जब वे टीनएजर थे, तब उन्होंने FTII (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) ज्वॉइन करने की इच्छा जाहिर की, जो उस समय शुरू ही हुआ था। उनके पिता ने इजाजत नहीं दी, क्योंकि वे चाहते थे कि आमिर पढ़ाई पर ध्यान लगाएं। ताहिर हुसैन के मुताबिक, आमिर उनसे बहस करने लगे और बोले- "जिसे डॉक्टर बनना है, वो मेडिकल कॉलेज जाता है। मैं डायरेक्टर बनना चाहता हूं, इसलिए मुझे FTII जाने की इजाजत दें।"


आमिर ने इस दौरान कहा कि यह बहुत अच्छा इंस्टीट्यूट है, जिसे सरकार से भी अनुमति मिली हुई है। बाद में ताहिर ने आमिर को कहा कि उन्हें FTII जाने की बजाय अपने चाचा नासिर हुसैन को असिस्ट करना चाहिए और डायरेक्शन के गुर सीखने चाहिए। पिता की सलाह पर आमिर ने ऐसा ही किया। उन्होंने नासिर के साथ 'मंजिल मंजिल' (1984) और 'जबरदस्त' को असिस्ट किया है। बता दें कि इसके पहले आमिर ने आदित्य भट्टाचार्य के साथ शॉर्ट फिल्म 'Paranoia' (1983) को भी असिस्ट किया था।


आमिर की एक्टिंग का सफर 8 साल की उम्र में शुरू हो गया था, जब उन्होंने नासिर हुसैन की फिल्म 'यादों की बारात' में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया। आमिर तब 18 साल के थे, जब एडल्ट रोल में उनकी पहली फिल्म 'सुबह-सुबह' शुरू हुई।हालांकि, FTII की यह डिप्लोमा फिल्म रिलीज नहीं हो सकी। इसी दौरान केतन मेहता ने आमिर को 'होली' के लिए साइन कर लिया। 'होली' (1984) में रिलीज हुई थी। इस फिल्म के लिए उन्हें बतौर आमिर हुसैन खान क्रेडिट दिया गया। यह उनका पूरा नाम है।


1988 में आमिर अपने कजिन मंसूर खान की डायरेक्टेड मूवी 'कयामत से कयामत तक' में लीड एक्टर के तौर पर दिखे, जो उनकी पहली सुपरहिट फिल्म है। इस फिल्म ने उन्हें रातोंरात सुपरस्टार्स की कतार में खड़ा कर दिया। खास बात यह है कि इस फिल्म का बजट बहुत कम था। इस वजह से लीड एक्टर होते हुए भी आमिर ने राज जुत्सी के साथ मिलकर बसों और ऑटो पर फिल्म के पोस्टर्स चिपकाए। इतना ही नहीं, आमिर लोगों को खुद बताते थे कि वे इस फिल्म के एक्टर हैं। 'कयामत से कयामत तक' के लिए आमिर को फिल्मफेयर का बेस्ट डेब्यू एक्टर अवॉर्ड मिला था।




सोर्स:<a href="http://indiavoice.com/m/detail.php?url=aamir-khan-rare-facts">इंडिया वॉइस</a>
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Mayawati


‘औरत को अपनी जगह नहीं भूलनी चाहिए. अगर दलित हो तो बिल्कुल नहीं.’ ये हिंदुस्तान की राजनीति का अनलिखा संविधान है. पर इस संविधान में संशोधन करने वाला एक नाम है जो हमेशा समाज के निशाने पर रहा है – मायावती. कुछ समय पहले भाजपा के एक लोकल नेता दयाशंकर सिंह ने कहा था कि मायावती वेश्या से भी बदतर हैं.




पर माया को समाज का कोई खौफ नहीं. वो किसी भी नॉर्म को फॉलो नहीं करती हैं. वो समाज के हर उस नियम को तोड़ती हैं, जिसे तोड़ने की ख्वाहिश आज के दौर की हर फेमिनिस्ट रखती है. वो परंपरागत सजने-संवरने को कब का धक्का मार चुकी हैं. मधुर बोलना और नजरें झुका के चलना. मजाक मत करिए. शील वाली बीमारी इनके पास भी नहीं फटकती. लज्जा स्त्रियों का आभूषण है. निर्लज्जता मर्दों का हथियार. अच्छा?



माया सूट पहनती हैं और जूतियां भी. साथियों को एक पैर पर खड़ा रखती हैं. मुख्तार अंसारी इनके साथ स्टेज शेयर करते हैं तो चप्पल उतार के. माया ने समाज के नियमों के विपरीत शादी नहीं की. बच्चे नहीं पैदा किए. परिवार नहीं बसाया. पर यूपी में परिवार विहीन होना तो शास्त्रों के हिसाब से पाप की कैटेगरी में आता है. मायावती ने ये ‘विष’ पी लिया. 70-80 के दशक में जब संपूर्ण क्रांति करने के बाद देश फिर इंदिरा की तरफ मुड़ चुका था, उस वक्त मायावती ने कांशीराम के घर में रहने का फैसला किया. उन पर तमाम लांछन लगे. पर माया ने कभी परवाह नहीं की. ये एक लड़की की ताकत की एक झलक थी.



There are only three things women need in life: food, water and compliments.

Chris Rock



मायावती वो औरत हैं जिन्होंने कभी किसी को ये कहने का मौका ही नहीं दिया कि अरे यार, ये लड़की तो मर्दों की तरह काम करती है. क्योंकि माया ने अपनी ताकत दिखाई है. एक औरत की तरह. वो डिफाइन करती हैं कि एक औरत कैसे काम करती है.



यहां पर हम मायावती को करप्शन के चार्ज से मुक्त नहीं कर रहे. क्योंकि वो अलग मैटर है. आप साबित करिए. जेल भेजिए. हम बात कर रहे हैं उस मायावती की जो भारत के दलित समाज और औरतों, जो कि वाकई में दलित हैं, की प्रतिनिधि हैं. भारत के दो हजार साल की संस्कृति की दुहाई देने वालों के लिए मायावती देवी होनी चाहिए. क्योंकि जातिगत समीकरण को तोड़ एक पटल पर लाने का ये करिश्मा पहले कभी नहीं हुआ था. 2007 का चुनाव अपने आप में इतिहास था.



बसपा मैनिफेस्टो जारी नहीं करती. मायावती खुद एक घोषणापत्र हैं. खुद एजेंडा हैं. भारत के इतिहास की सबसे बड़ी जादूगरनी. आप फील्ड में लोगों से पूछिए. धुर विरोधी भी माया का नाम आते ही कहता है लॉ एंड ऑर्डर में बहिनजी का जवाब नहीं. पर लगे हाथ ये आरोप लगते हैं कि मायावती ने पत्थर की सरकार चलाई थी.



पर क्या ये अद्भुत नहीं लगता कि एक औरत भारत के यूपी में अपनी प्रतिमा का अनावरण करती है. हजारों सालों की भावनाएं, संस्कृति, दोगलापन और हर परंपरा से लड़कर ये चीज हुई थी. खुद मायावती ने कभी नहीं सोचा होगा कि ये घटना किस चीज का प्रतिनिधित्व करती है. यहां बात नेताओं की नहीं है. बात है एक औरत की. आज तक कितनी औरतों की प्रतिमाएं बनी हैं? अगर कस्तूरबा और सावित्री बाई फुले याद नहीं तो इंदिरा गांधी याद होंगी ही? अगर इमरजेंसी से परहेज है तो कम से कम इस बात को मान ही लेते कि भारत की एक लड़की ने सबको राजनीति सिखा दी थी. अगर मायावती प्रतिमा का अनावरण नहीं करतीं, तो कौन करता?




A better democracy is a democracy where women do not only have the right to vote, and to elect but to be elected.

Michelle Bachelet, Head of United Nations Women


ये प्रतीक है मर्दों की दासता से मुक्ति का. गांधीजी ने नमक बनाकर मिसाइल नहीं चलाई थी. अंग्रेज हंस रहे थे. चीन में टैंक के सामने खड़ा वो आदमी जानता था कि क्या होगा. वो कुछ नहीं कर सकता था. पर उसका खड़ा होना विद्रोह का परिचायक बन गया. मायावती की मूर्तियां उसी विरोध की परिचायक नहीं हैं. आप नहीं करेंगे, तो कुचला हुआ इंसान आगे बढ़ेगा और खुद कर लेगा. उसे आपकी अनुमति का इंतजार नहीं है. अगर ये बात जाननी है तो उन लोगों से पूछिए जिनको नोएडा में कांशीराम योजना में घर मिला है. जो रोड पर सोने के अलावा कुछ और नहीं कर सकते थे.


Come mothers and fathers, throughout the land. And don’t criticize. What you can’t understand. Your daughters. Are beyond your command. Your old road is. Rapidly aging’. Please get out of the new one. If you can’t lend your hand. For the times they are a-changin’.

– Bob Dylan 



औरतें वोट-बैंक तो होती नहीं हैं. ये माया की कमजोरी है. दुखद ये है कि मायावती औरतों की नफरत का पात्र बनती हैं. दबी-डरी औरतों के लिए माया का स्वतंत्र होना खल जाता है. पर अगर सोचिए कि समाज का सबसे दलित वर्ग यानी कि औरतें माया को वोट कर दें तो क्या हो जाएगा हिंदुस्तान में. संपूर्ण क्रांति यहां होगी. माया पैट्रियार्की के ढांचे में फिट नहीं बैठतीं. और हम ये जानते हैं कि पितृसत्ता को चलाने में मर्दों के साथ औरतें भी शामिल हैं. लोगों को आश्चर्य होता है कि औरतें मधुमिता शुक्ला, भंवरी देवी, कविता गर्ग से ऊपर कैसे जा सकती हैं. जो कि इस व्यवस्था का शिकार बन गईं. मरीं भी और तोहमत भी साथ ले गईं. पर माया ने लड़ना सीखा था.


कम लोगों को पता होगा कि मायावती ने कांशीराम के रहते फैसले अलग लेने शुरू कर दिए थे. ये उनको जयललिता और सोनिया गांधी से अलग बनाता है. जया कभी एमजीआर को लांघ नहीं पाईं. सोनिया गांधी को भी मनमोहन सिंह की जरूरत पड़ी. पर माया खुद पार्टी हैं. अहं ब्रह्मास्मि.


A woman is like a tea bag. You can’t tell how strong she is until you put her in hot water.

– Eleanor Roosevelt


1995 का गेस्ट हाउस कांड याद होगा लोगों को. भारत की राजनीति में शायद ऐसा कभी नहीं हुआ था. एक कमरे में एक लड़की बंद है. बाहर लोग चिल्ला रहे हैं. गालियां दे रहे हैं. रेप करने और मर्डर करने की बातें कर रहे हैं.


आखिर इतने सारे मर्द उस लड़की से डर क्यों रहे थे. क्यों इतना डरे थे कि उसे मारना ही चाहते थे, उसके सामने बात नहीं कर सकते थे. वो लड़की मायावती ही थीं. इस घटना के 24 घंटे बाद मायावती सत्ता में आईं. और ये वही दिन था जब प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने इस मुख्यमंत्री को भारत के जनतंत्र का जादू कहा था. ये वही दौर था जब मायावती को अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे नेताओं ने राजनीति की ताकत माना था.



I love to see a young girl go out and grab the world by the lapels. Life’s a bitch. You’ve got to go out and kick ass.
— Maya Angelou


मायावती ने जिंदगी को गर्दन से पकड़ा है. और यही चीज उनको सब की आंखों में खटकाती है. मेनस्ट्रीम मीडिया भी इनको इग्नोर कर के चलता है. कहते हैं कि करप्शन से पैसा लाती हैं. इसको जस्टिफाई नहीं किया जा सकता. पर कौन सा कॉर्पोरेट एक दलित नेता को फंड करेगा. कौन करता है. अगर मूर्तियों की बात करें तो सरदार पटेल की मूर्ति अकेले पार्क बनाने जितनी महंगी है.



दूसरी बात कि अगर आप लखनऊ के अंबेडकर पार्क जाएं और अपने पूर्वाग्रह छोड़ दें तो देखने में बहुत खूबसूरत है. इस बार यूपी की राजनीति में मायावती को गिना नहीं जा रहा है. पर आपको ये बता दें कि उनके सपोर्टर बोलते नहीं. चीखते नहीं. बहन जी को जिताना उनका मिशन है. अगर देश की डेमोक्रेसी को चलना है, तो राजनीति में बहन जी का रहना जरूरी है.






सौर्स:लल्लनटॉप
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