28 फरवरी को विज्ञान दिवस मनाया जाता है. डॉक्टर सी.वी. रमन ने 28 फरवरी 1928 को ही फ़िज़िक्स की मशहूर खोज की थी. इस खोज के कारण वो विज्ञान का नोबेल जीतने वाले पहले एशियाई और अश्वेत वैज्ञानिक बने और उनकी खोज को रमन इफ़ेक्ट का नाम दिया गया. रमन को नाइटहुड की उपाधि भी दी गई. इसलिए वो सर सी.वी. रमन हो गए. रमन की खोज ने दुनिया को बताया कि आसमान नीला क्यों दिखता है.
तो आज समझते हैं कि सारे रंग हमें मिलकर कैसे बेवकूफ बनाते हैं. क्यों दिन का नीला आसमान सुबह और शाम को लाल हो जाता है? क्यों लड़कियां कलर मैचिंग में आदमियों से ज़्यादा टाइम लगाती हैं? और क्यों भगवान कृष्ण की तस्वीरें नीली बनाई जाती हैं? यकीन मानिए रंगों के इस पूरे खेल को समझने के बाद आप दुनिया को अलग रंग में देखने लगेंगे.
ये सारे रंग मिलकर हमें बेवकूफ बना रहे हैं
आपके सामने रखा वो सेब किस रंग का है?
लाल दिख रहा है न, वो चाहे जिस रंग का हो मगर लाल नहीं है. ठीक ऐसे ही फेसबुक की जो पट्टी नीली दिख रही है वो चाहे जिस रंग की हो मगर नीली नहीं है. कह सकते हैं कि दुनिया में जो जैसा दिखता है बस वैसा नहीं होता. दरअसल प्रकाश का कोई रंग नहीं होता वो सात रंगों के कॉम्बिनेशन से बना होता है. ये रंगहीन प्रकाश किसी भी चीज़ पर पड़ता है तो वो चीज़ इस के सारे रंगों को अपने अंदर समेट लेती है. जो रंग नहीं समेट पाती वही पलट कर वापस निकल जाता है और हमें दिखाई देता है.
सेब पर लाइट पड़ी. सेब ने सारे रंगों को रोक लिया मगर लाल को नहीं रोक पाया. अब हमें वापस रिफ्लेक्ट होता लाल रंग दिखेगा और हम कहेंगे सेब लाल है. जबकि लाल तो वो रंग है जो सेब में नहीं है.
तो सेब का रंग क्या है? इसका जवाब निश्चित रूप से कोई भी नहीं दे सकता है. बस ये कहा जा सकता है कि वो बस लाल नहीं है.
क्यों कृष्ण का रंग नीला दिखाया जाता है
”सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात.” मतलब सांवले रंग के कृष्ण पीले कपड़े पहने हुए हैं. शास्त्रों और साहित्य में कृष्ण का रंग हर जगह सांवला दिखाया जाता है. इसे समझने के लिए भारतीय दर्शन और श्री अनूप जलोटा जी की मदद लेते हैं, जिन्होनें बड़ा बेसिक सवाल पूछा कि राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला?
तो भारतीय दर्शन कहता है-
कृष्ण कौन हैं?
-जो अपने पास आने हर प्राणी को अपने अंदर समेट ले?
राधा कौन हैं?
-जिसने कृष्ण के प्रेम में संसार के हर सुख को छोड़ दिया. यहां तक कि कृष्ण को भी.
विज्ञान कहता है-
जो हर रंग को अपने अंदर समेट ले वो काला यानि कृष्ण. जिसने हर रंग को लौटा दिया वो गोरा यानी सफेद.
अब बात तस्वीरों में कृष्ण के नीले होने की. एक बहुत बड़े भारतीय पेंटर हुए हैं राजा रवि वर्मा (जिन पर ‘रंगरसिया’ फिल्म बनी है). रवि वर्मा ने यूरोपियन शैली की पेंटिंग्स को भारतीय पौराणिक कहानियों के साथ मिलाकर पेंटिंग्स बनाईं. यूरोपियन पेंटिंग्स में तो हर किसी का रंग गोरा ही होता था. रवि वर्मा ने सांवले रंग के लिए नीले का प्रयोग किया. इन पेंटिंग्स ने देश भर में धूम मचा दी. जगह-जगह कैलेंडर और पोस्टर पर ये तस्वीरें छापी गईं और देखते-देखते ही हमारे दिमाग में कृष्ण का रंग नीला हो गया.
और हां हमारी स्किन का काला और गोरा होना रंगों के रिफ्लैक्शन पर डिपेंड नहीं करता. वो चमड़ी में मिलेनिन के कम ज़्यादा होने के कारण होता है.
फिर आसमां है नीला क्यों?
धरती से सूरज तक किरणों को आने में कुल 8 मिनट का समय लगता है. इसमें एक्स-रे, गामा, अल्ट्रावॉयलेट, माइक्रोवेव जैसी तमाम किरणें होती हैं. इनमें से ज़्यादातर धरती के वातावरण से टकराकर रुक जाती हैं. सिर्फ सफेद प्रकाश ही धरती तक पहुंच जाता है. अब इस सफेद प्रकाश में होते हैं वही तीन रंग. मगर आसमान नीला ही दिखाई देता है. रमन को इस खयाल ने परेशान किया और फिर उन्होंने इस का जवाब ढूंढ निकाला.
नीला रंग सबसे ज़्यादा भन्नाया रहता है
एक भीड़ भरी सड़क पर अगर आप धीरे से दाएं-बाएं करते हुए जाएंगे तो घर तक पहुंच जाएंगे. ऐसा ही करता है लाल रंग. लाल रंग की किरणों की फ्रीक्वेंसी सबसे कम होती है. मतलब ये किरणें सबसे धीरे और रास्ते में आने वाले धूल वगैहर से बचते हुए चलती हैं. इसी वजह से दूर तक जाती हैं. खतरे का निशान लाल इसीलिए बनाया जाता है.
नीले रंग की फ्रीक्वेंसी ज़्यादा होती है मतलब, भीड़ भरी सड़क पर तेज़ी से बढ़ता हुआ बंदा. रास्ते में आने वाली हर चीज़ से टकराता है और फूटकर फैल जाता है. तो बंधु, नीला रंग हमारे आसमान में मौजूद धूल वगैरह से टकराकर सबसे ज़्यादा बिखरता है और हमें दिखता है.
फिर सुबह और शाम को सूरज लाल क्यों?
सुबह और शाम को सूरज कुछ देर लाल दिखता है. फोटोग्राफर्स और कवियों के लिए नेचर ने ये व्यवस्था कर रखी है. दरअसल सुबह और शाम के इन समयों पर धरती के उस हिस्सों और सूरज की दूरी सबसे ज़्यादा होती है. अब आपको ये तो याद ही होगा कि लाल रंग सबसे दूर तक जाता है. तो सुबह-शाम कुछ देर तक इतनी दूरी होती है कि लाल रंग ही हम तक पहुंच पाता है.
औरतों को आदमियों से ज़्यादा रंग दिखते हैं
“तुम्हें तो सब एक जैसा ही दिखता है” ये बहस तो दुनिया के लगभग हर कपल में हुई होगी. आगे कभी इस तरह की बहस हो तो बता देना कि औरतें आदमियों से ज़्यादा रंग पहचान सकती हैं, ये हम नहीं कहते विज्ञान कहता है. नैश्ननल जिओग्राफिक्स की एक रिपोर्ट कहती है कि विकास के क्रम में शिकार पर गए पुरुषों को जल्दी-जल्दी और दूर भागती चीज़ों को देखना पड़ता था. धीरे-धीरे उनकी आंखें (या कहें दिमाग) इसके लिए सेट हो गईं. तो वह रंगों के बारीक फर्क में नहीं पड़ती हैं. सो इट्स साइंस बेबी.
एक आदमी और औरत के रंगों को देखने में फर्क. सोर्स- पिनट्रेस्ट
क्या हो अगर रंग ही न दिखाई दें
फेसबुक की हर थीम नीले रंग की होती है. क्योंकि मार्क ज़करबर्ग कलर ब्लाइ्ंड हैं. कलर ब्लाइंडनेस का मतलब वो बीमारी जिसमें आदमी को लाल और हरा रंग नहीं दिखता है. ये समस्या उससे कहीं बड़ी है जितनी सुनने में लगती है. आपको जो रंग बैगनी दिखाई देगा वो कलर ब्लाइंड आदमी को नीला दिखाई देगा. क्योंकि बैंगनी लाल और नीले के कॉम्बिनेशन से बनता है और कलर ब्लाइंड आदमी लाल नहीं देख सकता.
एक आम आदमी और कलर ब्लाइंड की नज़रों में फर्क. सोर्स- इज़ो.कॉम
यही है रंगबिरंगी दुनिया का किस्सा और रंगों का लल्लनटॉप विज्ञान.
सोर्स:लल्लनटॉप
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