loading...




इंडियन आर्मी. गुरुवार को इंडियंस को चहकने का मौका दे गई. इंडियन आर्मी ने बुधवार रात सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर कई आतंकी लॉन्च पैड खत्म कर डाले. सूत्रों का दावा है कि इस ऑपरेशन में 38 आतंकी मारे गए. इंडियन आर्मी के DGMO ने कहा, ‘हमने सर्जिकल स्ट्राइक की और आतंकियों को मारा है.’ पाकिस्तानी मीडिया ने कहा, ‘सीजफायर उल्लंघन हुआ है, सर्जिकल स्ट्राइक नहीं. हमारे 2 जवान मारे गए.’ सूत्रों के मुताबिक, इस ऑपरेशन के सबूत हैं. पूरे सर्जिकल ऑपरेशन की वीडियोग्राफी हुई थी.

पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ दुखभरा बयान दे चुके हैं.  इधर पंजाब बॉर्डर के करीब 10 किलोमीटर का एरिया खाली करने का आदेश दिया गया है. आगे पढ़िए इंडियन आर्मी ने किस तरह सरहद पार धूमधड़ाका मचाकर उड़ी अटैक का बदला लिया. सूत्रों के मुताबिक, इस तरह इंडियन आर्मी ने दिया ऑपरेशन को अंजाम…

1.

इंडियन फॉरेन मिनिस्टर सुषमा स्वराज और अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के बीच बुधवार को फोन पर बात हुई. बताते हैं कि इस बातचीत में अमेरिका ने आतंकियों के खिलाफ इंडिया का सपोर्ट किया.

2.

इंडियन आर्मी को खुफिया जानकारी मिली कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी घुसपैठ की फिराक में हैं. आतंकियों के सरहद पार करीब 7-8 आतंकी कैपों में छिपे होने की खबर आर्मी के पास थी. आर्मी इन कैंपों पर एक हफ्ते से नजर बनाए हुई थी.

3. 

इंडियन आर्मी ने बुधवार शाम इस ऑपरेशन को लेकर पूरी प्लानिंग बनाई. डिफेंस और होम मिनिस्ट्री, PMO को इस बारे में बताया गया.

4.

इंडियन आर्मी ने इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 25 स्पेशल कमांडो को चुना. ये वो कमांडो हैं, जिन्हें इंडियन आर्मी की किलिंग मशीन माना जाता है. ऑपरेशन में ग्राउंड फौजियों को भी शामिल किया गया.  इंडियन एयरफोर्स को भी हाई अलर्ट पर रखा गया.

5. 

सूत्र बताते हैं कि आर्मी के ये स्पेशल कमांडो MI-17 हेलिकॉप्टर पर सवाल हुए. इसके बाद बुधवार-गुरुवार रात 12 बजे के करीब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जवान हेलिकॉप्टर से उतरे. वो जहां उतरे, वो जगह बॉर्डर से 3 किलोमीटर दूर बताई जा रही है.



6.

इंडियन आर्मी से इन स्पेशल कमांडो ने आतंकियों के कैंपों पर फायरिंग की. बम फेंके गए. इंडियन आर्मी के DGMO रणवीर सिंह ने कहा, ‘हमारे पास पूरी इंफॉर्मेशन थी कि आतंकी कहां छिपे हुए हैं. हम गए और आतंकियों पर अटैक कर दिया. ये सर्जिकल स्ट्राइक से दुश्मनों को काफी नुकसान पहुंचा है. हमारा कोई जवान हताहत नहीं हुआ है.’

7. 

आर्मी के इन जवानों ने धांय धांय फायरिंग की. दुश्मनों पर अटैक किया.  हालांकि रणवीर सिंह ने मारे गए आतंकियों या पाक सैनिकों की संख्या का जिक्र नहीं किया. लेकिन माना जाता है कि इस हमले में करीब 38 आतंकी मारे गए. पाकिस्तानी आर्मी कहती है कि सर्जिकल स्ट्राइक में नहीं, सीजफायर उल्लंघन में उसके 2 जवान मरे और 9 से ज्यादा घायल हैं.

8.

आर्मी का ये ऑपरेशन गुरुवार सुबह साढ़े चार बजे तक चला. इंडियन जवान आतंकियों कैंपों में छिपे बैठे आतंकियों को मारकर MI-17 हेलिकॉप्टर में चढ़कर इंडिया लौट आए.

9.

स्ट्राइक ऑपरेशन से लौटे जवानों ने ऑपरेशन की पूरी जानकारी आर्मी को दी. आर्मी ने ये जानकारी आगे बढ़ाई. डिफेंस मिनिस्ट्री, होम मिनिस्ट्री और फिर पीएमओ को इस बारे में जानकारी दी गई. बाद में प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को इस बारे में बताया गया.

10.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार 10 बजे एक हाईलेवल मीटिंग हुई. इस मीटिंग में आर्मी के DGMO, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, मनोहर पर्रिकर शामिल हुए. LoC को लेकर बात की गई. इसके बाद आर्मी के DGMO रणवीर सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा,
‘इस साल 20 घुसपैठ की कोशिशों को आर्मी ने नाकाम किया. जम्मू कश्मीर में लगातार सीजफायर का उल्लंघन हो रहा है. उड़ी और पुंछ में हुए आतंकी हमले आतंकियों का पाकिस्तान से कनेक्शन है, आतंकियों ने खुद के पाकिस्तानी होने की बात कबूली है. हमने पाकिस्तान को सबूत भी सौंपे हैं, पर उसपे कोई असर नहीं हुआ. बुधवार को हमें एक सूचना मिली कि कुछ आतंकी सरहद पार से घुसपैठ की तैयारी में है. इंडियन आर्मी ने इसके खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक किया. हमने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक किया.  इंडियन आर्मी ने पाकिस्तानी आर्मी से भी बात की. इंडिया की कोशिश है कि शांति बनी रहे, लेकिन हम आतंकियों को सरहद के इस पार बर्दाश्त नहीं करेंगे. बुधवार को हुई सर्जिकल स्ट्राइक में पाकिस्तान को काफी नुकसान हुआ. इंडिया को इस ऑपरेशन में किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ है. इंडिया हर तरह का जवाब देने के लिए तैयार है.’

11.

पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ और पाकिस्तानी आर्मी ने सर्जिकल स्ट्राइक की बात नहीं मानी. पाक डिफेंस मिनिस्टर ख्वाजा आसिफ ने कहा, ‘इंडिया ने जो सीजफायर उल्लंघन किया. इस उल्लंघन में हमारे 2 जवान मारे गए. 9 जवान घायल हुए.’

12.

इस वक्त ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई है. राजनाथ सिंह ने बॉर्डर पर आर्मी को अलर्ट रहने के आदेश दिए हैं. वहीं, बॉर्डर के इलाकों को खाली कराया जा रहा है.

सुनिए क्या बोले आर्मी के DGMO?











सोर्स:लल्लनटॉप 




loading...



इंडियन आर्मी ने बुधवार रात पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर दो आतंकियों को मार गिराया है. इंडियन आर्मी के DGMO रणवीर सिंह ने इस बारे में जानकारी दी. सिंह ने कहा,
‘ इस साल 20 घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम किया गया है. जम्मू कश्मीर में लगातार सीजफायर का उल्लंघन हो रहा है. उड़ी और पुंछ में हुए आतंकी हमलों के आतंकियों का पाकिस्तान से कनेक्शन है, आतंकियों ने खुद के पाकिस्तान से होने की बात कबूली है. हमने पाकिस्तान को सबूत भी सौंपे हैं, पर उसपर कोई असर नहीं हुआ. बुधवार को हमें एक सूचना मिली कि कुछ आतंकी सरहद पार से घुसपैठ की तैयारी में है. इंडियन आर्मी ने इसके खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक किया. हमने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक किया. फिलहाल इस इंडियन आर्मी ने पाकिस्तानी आर्मी  से भी बात की और इस बारे में बताया. इंडिया की कोशिश है कि शांति बनी रहे, लेकिन हम आतंकियों को सरहद के इस पार बर्दाश्त नहीं करेंगे. बुधवार को हुई सर्जिकल स्ट्राइक में पाकिस्तान का काफी नुकसान हुआ. इंडिया को इस ऑपरेशन में किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ है. इंडिया हर तरह का जवाब देने के लिए तैयार है.’
सूत्रों के मुताबिक, इस ऑपरेशन को इंडियन आर्मी के स्पेशल कमांडों ने अंजाम दिया है. इस कमांडों को इंडियन आर्मी की किलिंग मशीन माना जाता है. आर्मी ने PoK के 4 कैंपों पर हमला किया. इस ऑपरेशन को लेकर शाम 4 बजे ऑल पार्टी मीटिंग है. बता दें कि बुधवार शाम को अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी और सुषमा स्वराज की फोन पर बात हुई थी. जिसके बाद ये खबर थी कि अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ इंडिया का सपोर्ट किया था. राजनाथ सिंह ने बॉर्डर के 10 किलोमीटर के पास का एरिया खाली कराने के आदेश दे दिए हैं.

यहां इंडियन आर्मी ने किया सर्जिकल ऑपरेशन




सुनिए इंडियन आर्मी के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद क्या बोले DGMO?

इससे पहले पाकिस्तानी मीडिया ने खबर दी कि इंडियन आर्मी ने दो पाक सैनिक मार गिराए हैं. बता दें कि गुरुवार सुबह से ही पाकिस्तान  की तरफ से सीजफायर उल्लंघन की खबरें आ रही थीं. अब पाकिस्तान इंडिया के सर्जिकल ऑपरेशन की बात को खारिज करते हुए कह रहा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है. इंडिया ने सीजफायर उल्लंघन किया है. पाकिस्तानी डिफेंस मिनिस्टर ख्वाजा आसिफ ने कहा, ‘इंडियन आर्मी ने सर्जिकल स्ट्राइक नहीं किया. आर्मी ने 5 सेक्टरों में बीती रात फायरिंग की, जिसमें हमारे 2 जवान शहीद हो गए और 9 जवान घायल हैं.’ नवाज शरीफ भी कड़ी निंदा टाइप बात कह चुके हैं. अब शरीफ शांतिप्रिय होने की बात कह रहे हैं. यानी जो बात, पहले इंडिया कहता था.

डॉन वेबसाइट की खबर के मुताबिक, ये फायरिंग पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के पास हुई. बताया जाता है कि दोनों तरफ से रात ढाई बजे से सुबह 8 बजे तक फायरिंग की गई.



पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग ISPR ने इंडियन फायरिंग में अपने दो जवानों के मरने की पुष्टि कर दी है. 





अब इंडिया की तरफ की बात करते हैं….

पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार को दिल्ली में हाईलेवल मीटिंग हुई. होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, डिफेंस मिनिस्टर मनोहर पर्रिकर समेत सेना प्रमुख भी मौजूद रहे. LoC के सिक्योरिटी हालात पर ये लोग चर्चा करने इकट्ठा हुए थे.













सोर्स:लल्लनटॉप 
loading...



पाकिस्तान के नेता, नौकरशाह और मीडिया हाउस मान रहे है कि भारत से युद्ध का खतरा टला नहीं है। भारत ने जिस तरह पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अलग-थलग किया है, उससे भी लोग वहां खफा हैं।

- पाकिस्तान के अखबार 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' ने लिखा है कि भले ही रणनीतिक कारणों से भारत ने फिलहाल युद्ध न करने का फैसला किया हो लेकिन युद्ध अप्रैल में हो सकता है।

- अखबार का मानना है कि भारत ने इसलिए फैसला टाला है कि अभी आने वाले दिन सर्दियों के हैं और ऐसे वक्त सैनिकों को ज्यादा दिक्कतें आएंगी।

- इसके अलावा इस अवधि में भारतीय सेना को साजोसामान जुटाने में भी सुविधा होगी।

- 'द नेशन' मान रहा है कि युद्ध फिलहाल भले न हो, लेकिन भारत लेजर हथियारों से पाकिस्तानी रक्षा और संचार उपकरणों को बेकार कर सकता है।

- 'द नेशन'ने कहा है कि अमेरिका के पास ऐसे लेजर हथियारों जो किसी शत्रु देश के संवेदनशील संचार उपकरणों का काम करना मुश्किल कर देते हैं।

- यही नहीं, इनकी पहुंच रोकना भी लगभग असंभव ही होता है। यह किसी देश की सीमा में घुसे बिना लड़ाई का बड़ा हथियार है।

-'द न्यूज' ने भी भारत के उभरते अंतरराष्ट्रीय तेवर के लिए शरीफ की नीतियों को कमजोर माना है।

- 'द नेशन' ने इस बात पर भी नाराजगी जताई है कि संयुक्त राष्ट्र में भारत ने पाकिस्तान पर सिलसिलेवार आरोप लगाए लेकिन प्रधानमंत्री और उनकी टीम की तरफ से उसका सही ढंग से उत्तर नहीं दिया जा सका।



सोर्स:न्यूज़ २४ 

loading...




नाइजीरिया का एक अनोखा केस सामने आया है। नाइजीरिया के एकेट में एक लड़के के साथ एक ऐसा हादसा हुआ जिसपर यकीन करना मुश्किल है। एक दिन वो अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर एक होटल गया। वहां दोनों ने खूब एंज्वॉय किया। जैसे ही दोनों बैड पर गये और नजदीक आने लगे तभी लड़की का शरीर अजगर की तरह सांप में तबदील होने लगा। लड़की को सांप में बदलता देख कर उस लड़के के होश उड़ गए।


वो बिना कपड़ों के ही चिल्लाता हुआ कमरे से बाहर भागा। होटल स्टाफ के कमरे में पहुंचे तो उन्होंने भी आधी सांप है और आधी इंसान लड़की को रूम के बैड पर रेंगते हुए देखा। उन्होंने रूम को बंद कर दिया और तुरंत पुलिस को फोन सूचना दी। पुलिस के वहां पहुंचने से पहले सांपनुमा लड़की वहां से गायब हो चुकी थी।


होटल के लोगों और उस लड़के के खूब समझाने के बावजूद भी पुलिस को उनकी इस बात पर ज़रा भी यकीन नहीं हुआ। पुलिस ने उस लड़के को हिरासत में ले लिया। पुलिस को शक है कि लड़के ने होटल स्टाफ के साथ मिल कर लड़की का कत्ल कर दिया है और उसकी लाश कहीं छिपा दी है।




सोर्स:न्यूज़ २४ 
loading...




उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान की आर्मी और एयर फोर्स ने जैसलमेर से लगते इंटरनैशनल बॉर्डर से 15-20 किलोमीटर दूर 'युद्धाभ्यास' शुरू किया है। बॉर्डर के पास पाकिस्तानी आर्मी के वीइकल की मूवमेंट और अन्य गतिविधियों की भी सूचना मिली है। यह युद्धाभ्यास 22 सितंबर को शुरू हुआ था और 30 अक्टूबर तक चलेगा जिसमें आर्मी के 15,000 और एयरफोर्स के 300 लोग शामिल हो रहे हैं।

इस युद्धाभ्यास के कारण BSF ने बॉर्डर के आसपास निगरानी बढ़ा दी है।

विश्वस्त रक्षा सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तानी आर्मी की आर्टिलरी और आर्म्ड फोर्स ने एक साथ यह बड़ा युद्धाभ्यास शुरू किया है। पाकिस्तानी आर्मी के अधिकारी भी इस अभ्यास का रिव्यू करने के लिए जैसलमेर से लगती सीमा पर पहुंचे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, कराची की 5वीं कोर, मुल्तान 2 स्ट्राइक कोर और 205 ब्रिगेड इस युद्धाभ्यास में भाग ले रही हैं। इस दौरान अंदरूनी हिस्सों में हिस्सों में नए मोर्चे और सुरक्षाबंदी बनाए जाने की सूचना भी मिली है।

सूचना के मुताबिक, इस युद्धाभ्यास में नए उपकरणों का टेस्ट भी किया जा रहा है। भारी भरकम टैंक ब्रिगेड के साथ इस इलाके में पाकिस्तानी फाइटर जेट विमानों की गतिविधियां भी देखी गई हैं।

सूत्रों ने बताया है कि यह युद्धाभ्यास जैसलमेर के किशनगढ़ बुल्ज के दूसरी तरफ हो रहा है। पाकिस्तान में यह इलाका राहीमेर खान, घोटाकी, शादी का बाद, मीरपुर और मेंथोलो इलाकों के आसपास है।

पाकिस्तान पर नजर रख रही भारत की सेना

इंटरनेशनल बॉर्डर से केवल 15 से 20 किलोमीटर दूर इतना बड़ा युद्धाभ्यास किए जाने के कारण भारतीय सेना और BSF ने अपनी निगरानी में भी बढ़ोतरी कर दी है। भारतीय सेना पाकिस्तानी आर्मी की मूवमेंट पर भी सख्त नजर बनाए हुए है। पाकिस्तानी बॉर्डर पोस्ट के आसपास कुछ पाकिस्तानी सैनिकों को भी देखा गया है।

गौरतलब है कि उड़ी में हुए आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। ऐसे पाकिस्तानी सेना की स्ट्राइक कोर का रेगिस्तान में ऐसा युद्धाभ्यास बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इलाके में पाकिस्तानी सेना के भारी टेंकों की मूवमेंट की सूचना ने भी सेना को निगरानी बढ़ाने पर मजबूर किया है। 





loading...





भगत सिंह का जिक्र सब करते हैं. तमाम पंथों वाले. अपने हिसाब से. किसी को विचार दिखते हैं, कोई उनके हाथ में बंदूक बस देख पाता है. धर्म के नाम पर भरे बैठे भी भगत सिंह को अपना आदर्श बताते हैं. ये जाने बिना कि वो हाथ में बंदूक लेने के अलावा भी बहुत कुछ कह गए हैं. ये जाने बिना कि वो नास्तिक थे. नास्तिक आपके धर्म के खिलाफ नहीं होते. नास्तिकता क्या है. आप यहां से जान सकते हैं. ये एक प्रतिनिधि पत्र है, जिससे आपको नास्तिकता का मोटा-मोटी हिसाब लग जाता है. पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून है. आप धर्म के खिलाफ कुछ बोलो-लिखो या करो तो जेल हो जाती है. हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं है. बेहतर है. लेकिन आस्तिकों और नास्तिकों में कनफ्लिक्ट तो चलते ही हैं.

‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ का जिक्र अक्सर होता है. भगत सिंह ने जेल में रहते हुए इसे लिखा था. तब 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के ‘द पीपल’ अखबार में ये छपा था. इस आर्टिकल में भगत सिंह ने ईश्वर की उपस्थिति पर अनेक लॉजिकल सवाल उठाए थे.भगत सिंह ने ये आर्टिकल तब लिखा था जब भगवान को मानने वाले एक दूसरे स्वतंत्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह ने उनकी नास्तिकता की वजह उनकी पॉपुलरिटी को बताया था. उसी बात के जवाब में भगत सिंह ने ये लेख लिखा था.

मैं नास्तिक क्यों हूं

एक नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है. क्या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञानी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता हूं? मेरे कुछ दोस्त, शायद ऐसा कहकर मैं उन पर बहुत अधिकार नहीं जमा रहा हूं. मेरे साथ अपने थोड़े से सम्पर्क में इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिये उत्सुक हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर कुछ ज़रूरत से ज़्यादा आगे जा रहा हूं और मेरे घमण्ड ने कुछ हद तक मुझे इस अविश्वास के लिये उकसाया है.




मैं ऐसी कोई शेखी नहीं बघारता कि मैं मानवीय कमज़ोरियों से बहुत ऊपर हूं. मैं एक मनुष्य हूं, और इससे अधिक कुछ नहीं. कोई भी इससे अधिक होने का दावा नहीं कर सकता. यह कमज़ोरी मेरे अन्दर भी है. अहंकार भी मेरे स्वभाव का अंग है. अपने कॉमरेडों के बीच मुझे निरंकुश कहा जाता था. यहां तक कि मेरे दोस्त श्री बटुकेश्वर कुमार दत्त भी मुझे कभी-कभी ऐसा कहते थे. कई मौकों पर स्वेच्छाचारी कह मेरी निन्दा भी की गई.

कुछ दोस्तों को शिकायत है, और गम्भीर रूप से है कि मैं अनचाहे ही अपने विचार, उन पर थोपता हूं और अपने प्रस्तावों को मनवा लेता हूं. यह बात कुछ हद तक सही है. इससे मैं इनकार नहीं करता. इसे अहंकार कहा जा सकता है. जहाँ तक अन्य प्रचलित मतों के मुकाबले हमारे अपने मत का सवाल है. मुझे निश्चय ही अपने मत पर गर्व है. लेकिन यह व्यक्तिगत नहीं है.

ऐसा हो सकता है कि यह केवल अपने विश्वास के प्रति न्यायोचित गर्व हो और इसको घमण्ड नहीं कहा जा सकता. घमण्ड तो स्वयं के प्रति अनुचित गर्व की अधिकता है. क्या यह अनुचित गर्व है, जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया? अथवा इस विषय का खूब सावधानी से अध्ययन करने और उस पर खूब विचार करने के बाद मैंने ईश्वर पर अविश्वास किया?

मैं यह समझने में पूरी तरह से असफल रहा हूं कि अनुचित गर्व या वृथाभिमान किस तरह किसी व्यक्ति के ईश्वर में विश्वास करने के रास्ते में रोड़ा बन सकता है? किसी वास्तव में महान व्यक्ति की महानता को मैं मान्यता न दूं,

यह तभी हो सकता है, जब मुझे भी थोड़ा ऐसा यश प्राप्त हो गया हो जिसके या तो मैं योग्य नहीं हूं या मेरे अन्दर वे गुण नहीं हैं, जो इसके लिये आवश्यक हैं. यहां तक तो समझ में आता है. लेकिन यह कैसे हो सकता है कि एक व्यक्ति, जो ईश्वर में विश्वास रखता हो, सहसा अपने व्यक्तिगत अहंकार के कारण उसमें विश्वास करना बन्द कर दे? दो ही रास्ते सम्भव हैं. या तो मनुष्य अपने को ईश्वर का प्रतिद्वन्द्वी समझने लगे या वह स्वयं को ही ईश्वर मानना शुरू कर दे.

इन दोनों ही अवस्थाओं में वह सच्चा नास्तिक नहीं बन सकता. पहली अवस्था में तो वह अपने प्रतिद्वन्द्वी के अस्तित्व को नकारता ही नहीं है. दूसरी अवस्था में भी वह एक ऐसी चेतना के अस्तित्व को मानता है, जो पर्दे के पीछे से प्रकृति की सभी गतिविधियों का संचालन करती है. मैं तो उस सर्वशक्तिमान परम आत्मा के अस्तित्व से ही इनकार करता हूं. यह अहंकार नहीं है, जिसने मुझे नास्तिकता के सिद्धान्त को ग्रहण करने के लिये प्रेरित किया. मैं न तो एक प्रतिद्वंदी हूं, न ही एक अवतार और न ही स्वयं परमात्मा. इस अभियोग को अस्वीकार करने के लिये आइए तथ्यों पर गौर करें. मेरे इन दोस्तों के अनुसार, दिल्ली बम केस और लाहौर षड़यंत्र केस के दौरान मुझे जो अनावश्यक यश मिला, शायद उस कारण मैं वृथाभिमानी हो गया हूं.




मेरा नास्तिकतावाद कोई अभी हाल की उत्पत्ति नहीं है. मैंने तो ईश्वर पर विश्वास करना तब छोड़ दिया था, जब मैं एक अप्रसिद्ध नौजवान था. कम से कम एक कालेज का विद्यार्थी तो ऐसे किसी अनुचित अहंकार को नहीं पाल-पोस सकता, जो उसे नास्तिकता की ओर ले जाये. यद्यपि मैं कुछ अध्यापकों का चहेता था और कुछ अन्य को मैं अच्छा नहीं लगता था. पर मैं कभी भी बहुत मेहनती अथवा पढ़ाकू विद्यार्थी नहीं रहा. अहंकार जैसी भावना में फंसने का कोई मौका ही न मिल सका. मैं तो एक बहुत लज्जालु स्वभाव का लड़का था, जिसकी भविष्य के बारे में कुछ निराशावादी प्रकृति थी.

मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं. एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता. अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डी. ए. वी. स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा. वहां सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था. उन दिनों मैं पूरा भक्त था. बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया. जहां तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं. उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिये अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली. किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं. उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है. वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिये प्रोत्साहित करते रहते थे. इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ.

असहयोग आन्दोलन के दिनों में राष्ट्रीय कालेज में प्रवेश लिया. यहां आकर ही मैंने सारी धार्मिक समस्याओं– यहां तक कि ईश्वर के अस्तित्व के बारे में उदारतापूर्वक सोचना, विचारना और उसकी आलोचना करना शुरू किया. पर अभी भी मैं पक्का आस्तिक था. उस समय तक मैं अपने लम्बे बाल रखता था. यद्यपि मुझे कभी-भी सिक्ख या अन्य धर्मों की पौराणिकता और सिद्धान्तों में विश्वास न हो सका था. किन्तु मेरी ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ निष्ठा थी. बाद में मैं क्रांतिकारी पार्टी से जुड़ा. वहां जिस पहले नेता से मेरा सम्पर्क हुआ वे तो पक्का विश्वास न होते हुए भी ईश्वर के अस्तित्व को नकारने का साहस ही नहीं कर सकते थे.

ईश्वर के बारे में मेरे हठपूर्वक पूछते रहने पर वे कहते, ‘जब इच्छा हो, तब पूजा कर लिया करो.’ यह नास्तिकता है, जिसमें साहस का अभाव है. दूसरे नेता, जिनके मैं सम्पर्क में आया, पक्के श्रद्धालु आदरणीय कामरेड शचीन्द्र नाथ सान्याल आजकल काकोरी षडयन्त्र केस के सिलसिले में आजीवन कारवास भोग रहे हैं. उनकी पुस्तक ‘बन्दी जीवन’ ईश्वर की महिमा का ज़ोर-शोर से गान है. उन्होंने उसमें ईश्वर के ऊपर प्रशंसा के पुष्प रहस्यात्मक वेदान्त के कारण बरसाये हैं. 28 जनवरी, 1925 को पूरे भारत में जो ‘दि रिवोल्यूशनरी’ (क्रान्तिकारी) पर्चा बांटा गया था, वह उन्हीं के बौद्धिक श्रम का परिणाम है. उसमें सर्वशक्तिमान और उसकी लीला और कार्यों की प्रशंसा की गई है. मेरा ईश्वर के प्रति अविश्वास का भाव क्रांतिकारी दल में भी प्रस्फुटित नहीं हुआ था.

काकोरी के सभी चार शहीदों ने अपने अन्तिम दिन भजन-प्रार्थना में गुजारे थे. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ एक रूढ़िवादी आर्य समाजी थे. समाजवाद और साम्यवाद में अपने वृहद अध्ययन के बावजूद राजेन लाहड़ी उपनिषद एवं गीता के श्लोकों के उच्चारण की अपनी अभिलाषा को दबा न सके. मैंने उन सब में सिर्फ एक ही व्यक्ति को देखा, जो कभी प्रार्थना नहीं करता था और कहता था, “दर्शन शास्त्र मनुष्य की दुर्बलता अथवा ज्ञान के सीमित होने के कारण उत्पन्न होता है. वह भी आजीवन निर्वासन की सजा भोग रहा है. परन्तु उसने भी ईश्वर के अस्तित्व को नकारने की कभी हिम्मत नहीं की.”

इस समय तक मैं केवल एक रोमांटिक आदर्शवादी क्रान्तिकारी था. अब तक हम दूसरों का अनुसरण करते थे. अब अपने कन्धों पर ज़िम्मेदारी उठाने का समय आया था. यह मेरे क्रान्तिकारी जीवन का एक निर्णायक बिन्दु था. ‘अध्ययन’ की पुकार मेरे मन के गलियारों में गूंज रही थी– विरोधियों द्वारा रखे गये तर्कों का सामना करने योग्य बनने के लिये अध्ययन करो. अपने मत के पक्ष में तर्क देने के लिये सक्षम होने के वास्ते पढ़ो. मैंने पढ़ना शुरू कर दिया. इससे मेरे पुराने विचार और विश्वास अद्भुत रूप से परिष्कृत हुए.




रोमांस की जगह गम्भीर विचारों ने ले ली, न और अधिक रहस्यवाद, न ही अन्धविश्वास. यथार्थवाद हमारा आधार बना. मुझे विश्वक्रान्ति के अनेक आदर्शों के बारे में पढ़ने का खूब मौका मिला. मैंने अराजकतावादी नेता बुकनिन को पढ़ा, कुछ साम्यवाद के पिता मार्क्स को, किन्तु अधिक लेनिन, त्रात्स्की, व अन्य लोगों को पढ़ा, जो अपने देश में सफलतापूर्वक क्रान्ति लाये थे. ये सभी नास्तिक थे. बाद में मुझे निरलम्ब स्वामी की पुस्तक ‘सहज ज्ञान’ मिली.

 इसमें रहस्यवादी नास्तिकता थी. 1926 के अन्त तक मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि एक सर्वशक्तिमान परम आत्मा की बात, जिसने ब्रह्माण्ड का सृजन, दिग्दर्शन और संचालन किया, एक कोरी बकवास है. मैंने अपने इस अविश्वास को प्रदर्शित किया. मैंने इस विषय पर अपने दोस्तों से बहस की. मैं एक घोषित नास्तिक हो चुका था.

मई 1927 में मैं लाहौर में गिरफ़्तार हुआ. रेलवे पुलिस हवालात में मुझे एक महीना काटना पड़ा. पुलिस अफ़सरों ने मुझे बताया कि मैं लखनऊ में था, जब वहां काकोरी दल का मुकदमा चल रहा था, कि मैंने उन्हें छुड़ाने की किसी योजना पर बात की थी, कि उनकी सहमति पाने के बाद हमने कुछ बम प्राप्त किये थे, कि 1927 में दशहरा के अवसर पर उन बमों में से एक परीक्षण के लिये भीड़ पर फेंका गया, कि यदि मैं क्रान्तिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला एक वक्तव्य दे दूँ, तो मुझे गिरफ़्तार नहीं किया जायेगा और इसके विपरीत मुझे अदालत में मुखबिर की तरह पेश किये बगैर रिहा कर दिया जायेगा और इनाम दिया जायेगा. मैं इस प्रस्ताव पर हंसा. यह सब बेकार की बात थी.




हम लोगों की भांति विचार रखने वाले अपनी निर्दोष जनता पर बम नहीं फेंका करते. एक दिन सुबह सी. आई. डी. के वरिष्ठ अधीक्षक श्री न्यूमन ने कहा कि यदि मैंने वैसा वक्तव्य नहीं दिया, तो मुझ पर काकोरी केस से सम्बन्धित विद्रोह छेड़ने के षडयन्त्र और दशहरा उपद्रव में क्रूर हत्याओं के लिये मुकदमा चलाने पर बाध्य होंगे और कि उनके पास मुझे सजा दिलाने और फाँसी पर लटकवाने के लिये उचित प्रमाण हैं.

उसी दिन से कुछ पुलिस अफ़सरों ने मुझे नियम से दोनों समय ईश्वर की स्तुति करने के लिये फुसलाना शुरू किया. पर अब मैं एक नास्तिक था. मैं स्वयं के लिये यह बात तय करना चाहता था कि क्या शान्ति और आनन्द के दिनों में ही मैं नास्तिक होने का दम्भ भरता हूं या ऐसे कठिन समय में भी मैं उन सिद्धान्तों पर अडिग रह सकता हूं. बहुत सोचने के बाद मैंने निश्चय किया कि किसी भी तरह ईश्वर पर विश्वास और प्रार्थना मैं नहीं कर सकता. नहीं, मैंने एक क्षण के लिये भी नहीं की. यही असली परीक्षण था और मैं सफल रहा. अब मैं एक पक्का अविश्वासी था और तब से लगातार हूं. इस परीक्षण पर खरा उतरना आसान काम न था. विश्वास कष्टों को हल्का कर देता है. यहां तक कि उन्हें सुखकर बना सकता है.

ईश्वर में मनुष्य को अत्यधिक सान्त्वना देने वाला एक आधार मिल सकता है. उसके बिना मनुष्य को अपने ऊपर निर्भर करना पड़ता है. तूफ़ान और झंझावात के बीच अपने पाँवों पर खड़ा रहना कोई बच्चों का खेल नहीं है. परीक्षा की इन घड़ियों में अहंकार यदि है, तो भाप बन कर उड़ जाता है और मनुष्य अपने विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता. यदि ऐसा करता है, तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसके पास सिर्फ अहंकार नहीं वरन् कोई अन्य शक्ति है. आज बिलकुल वैसी ही स्थिति है. निर्णय का पूरा-पूरा पता है. एक सप्ताह के अन्दर ही यह घोषित हो जायेगा कि मैं अपना जीवन एक ध्येय पर न्योछावर करने जा रहा हूं. इस विचार के अतिरिक्त और क्या सांत्वना हो सकती है?




ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिन्दू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है. एक मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनन्द की और अपने कष्टों और बलिदान के लिये पुरस्कार की कल्पना कर सकता है. किन्तु मैं क्या आशा करूं? मैं जानता हूं कि जिस क्षण रस्सी का फंदा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा, वह पूर्ण विराम होगा. वह अंतिम क्षण होगा. मैं या मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जायेगी. आगे कुछ न रहेगा. एक छोटी सी जूझती हुई ज़िन्दगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्वयं एक पुरस्कार होगी. यदि मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस हो.




बिना किसी स्वार्थ के यहां या यहां के बाद पुरस्कार की इच्छा के बिना, मैंने अनासक्त भाव से अपने जीवन को स्वतन्त्रता के ध्येय पर समर्पित कर दिया है, क्योंकि मैं और कुछ कर ही नहीं सकता था. जिस दिन हमें इस मनोवृत्ति के बहुत-से पुरुष और महिलाएं मिल जायेंगे, जो अपने जीवन को मनुष्य की सेवा और पीड़ित मानवता के उद्धार के अतिरिक्त कहीं समर्पित कर ही नहीं सकते, उसी दिन मुक्ति के युग का शुभारम्भ होगा. वे शोषकों, उत्पीड़कों और अत्याचारियों को चुनौती देने के लिये उत्प्रेरित होंगे. इस लिये नहीं कि उन्हें राजा बनना है या कोई अन्य पुरस्कार प्राप्त करना है यहां या अगले जन्म में या मृत्योपरान्त स्वर्ग में. उन्हें तो मानवता की गर्दन से दासता का जुआ उतार फेंकने और मुक्ति एवं शान्ति स्थापित करने के लिये इस मार्ग को अपनाना होगा. क्या वे उस रास्ते पर चलेंगे जो उनके अपने लिये ख़तरनाक किन्तु उनकी महान आत्मा के लिये एक मात्र कल्पनीय रास्ता है.


क्या इस महान ध्येय के प्रति उनके गर्व को अहंकार कहकर उसका गलत अर्थ लगाया जायेगा? कौन इस प्रकार के घृणित विशेषण बोलने का साहस करेगा? या तो वह मूर्ख है या धूर्त. हमें चाहिए कि उसे क्षमा कर दें, क्योंकि वह उस हृदय में उद्वेलित उच्च विचारों, भावनाओं, आवेगों और उनकी गहराई को महसूस नहीं कर सकता. उसका हृदय मांस के एक टुकड़े की तरह मृत है. उसकी आँखों पर अन्य स्वार्थों के प्रेतों की छाया पड़ने से वे कमज़ोर हो गयी हैं. स्वयं पर भरोसा रखने के गुण को सदैव अहंकार की संज्ञा दी जा सकती है. यह दुखपूर्ण और कष्टप्रद है, पर चारा ही क्या है?






आलोचना और स्वतन्त्र विचार एक क्रान्तिकारी के दोनों अनिवार्य गुण हैं. क्योंकि हमारे पूर्वजों ने किसी परम आत्मा के प्रति विश्वास बना लिया था. अतः कोई भी व्यक्ति जो उस विश्वास को सत्यता या उस परम आत्मा के अस्तित्व को ही चुनौती दे, उसको विधर्मी, विश्वासघाती कहा जाएगा. यदि उसके तर्क इतने अकाट्य हैं कि उनका खण्डन वितर्क द्वारा नहीं हो सकता और उसकी आस्था इतनी प्रबल है कि उसे ईश्वर के प्रकोप से होने वाली विपत्तियों का भय दिखा कर दबाया नहीं जा सकता तो उसकी यह कह कर निन्दा की जायेगी कि वह वृथाभिमानी है. यह मेरा अहंकार नहीं था, जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया. मेरे तर्क का तरीका संतोषप्रद सिद्ध होता है या नहीं इसका निर्णय मेरे पाठकों को करना है, मुझे नहीं.


मैं जानता हूं कि ईश्वर पर विश्वास ने आज मेरा जीवन आसान और मेरा बोझ हलका कर दिया होता. उस पर मेरे अविश्वास ने सारे वातावरण को अत्यन्त शुष्क बना दिया है. थोड़ा-सा रहस्यवाद इसे कवित्वमय बना सकता है. किन्तु मेरे भाग्य को किसी उन्माद का सहारा नहीं चाहिए. मैं यथार्थवादी हूं. मैं अन्तः प्रकृति पर विवेक की सहायता से विजय चाहता हूं. इस ध्येय में मैं सदैव सफल नहीं हुआ हूं. प्रयास करना मनुष्य का कर्तव्य है.

सफलता तो संयोग और वातावरण पर निर्भर है. कोई भी मनुष्य, जिसमें तनिक भी विवेक शक्ति है, वह अपने वातावरण को तार्किक रूप से समझना चाहेगा. जहाँ सीधा प्रमाण नहीं है, वहाँ दर्शन शास्त्र का महत्व है. जब हमारे पूर्वजों ने फुरसत के समय विश्व के रहस्य को, इसके भूत, वर्तमान एवं भविष्य को, इसके क्यों और कहाँ से को समझने का प्रयास किया तो सीधे परिणामों के कठिन अभाव में हर व्यक्ति ने इन प्रश्नों को अपने ढ़ंग से हल किया.


यही कारण है कि विभिन्न धार्मिक मतों में हमको इतना अन्तर मिलता है, जो कभी-कभी वैमनस्य और झगड़े का रूप ले लेता है. न केवल पूर्व और पश्चिम के दर्शनों में मतभेद है, बल्कि प्रत्येक गोलार्ध के अपने विभिन्न मतों में आपस में अन्तर है. पूर्व के धर्मों में, इस्लाम और हिन्दू धर्म में ज़रा भी अनुरूपता नहीं है. भारत में ही बौद्ध और जैन धर्म उस ब्राह्मणवाद से बहुत अलग है, जिसमें स्वयं आर्यसमाज व सनातन धर्म जैसे विरोधी मत पाये जाते हैं. पुराने समय का एक स्वतन्त्र विचारक चार्वाक है. उसने ईश्वर को पुराने समय में ही चुनौती दी थी.






हर व्यक्ति अपने को सही मानता है. दुर्भाग्य की बात है कि बजाय पुराने विचारकों के अनुभवों और विचारों को
भविष्य में अज्ञानता के विरुद्ध लड़ाई का आधार बनाने के हम आलसियों की तरह, जो हम सिद्ध हो चुके हैं, उनके कथन में अविचल एवं संशयहीन विश्वास की चीख पुकार करते रहते हैं और इस प्रकार मानवता के विकास को जड़ बनाने के दोषी हैं.


सिर्फ विश्वास और अन्ध विश्वास ख़तरनाक है. यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है. जो मनुष्य अपने को यथार्थवादी होने का दावा करता है, उसे समस्त प्राचीन रूढ़िगत विश्वासों को चुनौती देनी होगी. प्रचलित मतों को तर्क की कसौटी पर कसना होगा. यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके, तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेगा. तब नये दर्शन की स्थापना के लिये उनको पूरा धराशायी करके जगह साफ करना और पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग करके पुनर्निमाण करना. मैं प्राचीन विश्वासों के ठोसपन पर प्रश्न करने के सम्बन्ध में आश्वस्त हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि एक चेतन परम आत्मा का, जो प्रकृति की गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करता है, कोई अस्तित्व नहीं है. हम प्रकृति में विश्वास करते हैं और समस्त प्रगतिशील आन्दोलन का ध्येय मनुष्य द्वारा अपनी सेवा के लिये प्रकृति पर विजय प्राप्त करना मानते हैं. इसको दिशा देने के पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है. यही हमारा दर्शन है. हम आस्तिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं.


यदि आपका विश्वास है कि एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी ईश्वर है, जिसने विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएं कि उसने यह रचना क्यों की? कष्टों और संतापों से पूर्ण दुनिया – असंख्य दुखों के शाश्वत अनन्त गठबन्धनों से ग्रसित! एक भी व्यक्ति तो पूरी तरह संतृष्ट नही है. कृपया यह न कहें कि यही उसका नियम है. यदि वह किसी नियम से बंधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं है. वह भी हमारी ही तरह नियमों का दास है. कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका मनोरंजन है.


नीरो ने बस एक रोम जलाया था. उसने बहुत थोड़ी संख्या में लोगों की हत्या की थी. उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया, अपने पूर्ण मनोरंजन के लिये. और उसका इतिहास में क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं? सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाये जाते हैं. पन्ने उसकी निन्दा के वाक्यों से काले पुते हैं, भर्त्सना करते हैं – नीरो एक हृदयहीन, निर्दयी, दुष्ट. एक चंगेज खाँ ने अपने आनन्द के लिये कुछ हजार जानें ले लीं और आज हम उसके नाम से घृणा करते हैं. तब किस प्रकार तुम अपने ईश्वर को न्यायोचित ठहराते हो? उस शाश्वत नीरो को, जो हर दिन, हर घण्टे ओर हर मिनट असंख्य दुख देता रहा, और अभी भी दे रहा है. फिर तुम कैसे उसके दुष्कर्मों का पक्ष लेने की सोचते हो, जो चंगेज खाँ से प्रत्येक क्षण अधिक है? क्या यह सब बाद में इन निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और गलती करने वालों को दण्ड देने के लिये हो रहा है? ठीक है, ठीक है. तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे, जो हमारे शरीर पर घाव करने का साहस इसलिये करता है कि बाद में मुलायम और आरामदायक मलहम लगायेगा?


ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापक कहाँ तक उचित करते थे कि एक भूखे खूंखार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि, यदि वह उससे जान बचा लेता है, तो उसकी खूब देखभाल की जायेगी? इसलिये मैं पूछता हूं कि उस चेतन परम आत्मा ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों की रचना क्यों की? आनन्द लूटने के लिये? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क है?


तुम मुसलमानों और ईसाइयों! तुम तो पूर्वजन्म में विश्वास नहीं करते. तुम तो हिन्दुओं की तरह यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि प्रत्यक्षतः निर्दोष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्वजन्मों के कर्मों का फल है. मैं तुमसे पूछता हूं कि उस सर्वशक्तिशाली ने शब्द द्वारा विश्व के उत्पत्ति के लिये छः दिन तक क्यों परिश्रम किया? और प्रत्येक दिन वह क्यों कहता है कि सब ठीक है? बुलाओ उसे आज. उसे पिछला इतिहास दिखाओ. उसे आज की परिस्थितियों का अध्ययन करने दो. हम देखेंगे कि क्या वह कहने का साहस करता है कि सब ठीक है.


कारावास की काल-कोठरियों से लेकर झोपड़ियों की बस्तियों तक भूख से तड़पते लाखों इन्सानों से लेकर उन शोषित मज़दूरों से लेकर जो पूँजीवादी पिशाच द्वारा खून चूसने की क्रिया को धैर्यपूर्वक निरुत्साह से देख रहे हैं और उस मानवशक्ति की बर्बादी देख रहे हैं, जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति, जिसे तनिक भी सहज ज्ञान है, भय से सिहर उठेगा, और अधिक उत्पादन को ज़रूरतमन्द लोगों में बाँटने के बजाय समुद्र में फेंक देना बेहतर समझने से लेकर राजाओं के उन महलों तक जिनकी नींव मानव की हड्डियों पर पड़ी है- उसको यह सब देखने दो और फिर कहे – सब कुछ ठीक है! क्यों और कहाँ से? यही मेरा प्रश्न है. तुम चुप हो. ठीक है, तो मैं आगे चलता हूं.






और तुम हिन्दुओं, तुम कहते हो कि आज जो कष्ट भोग रहे हैं, ये पूर्वजन्म के पापी हैं और आज के उत्पीड़क पिछले जन्मों में साधु पुरुष थे, अतः वे सत्ता का आनन्द लूट रहे हैं. मुझे यह मानना पड़ता है कि आपके पूर्वज बहुत चालाक व्यक्ति थे. उन्होंने ऐसे सिद्धान्त गढ़े, जिनमें तर्क और अविश्वास के सभी प्रयासों को विफल करने की काफ़ी ताकत है. न्यायशास्त्र के अनुसार दण्ड को अपराधी पर पड़ने वाले असर के आधार पर केवल तीन कारणों से उचित ठहराया जा सकता है. वे हैं – प्रतिकार, भय और सुधार. आज सभी प्रगतिशील विचारकों द्वारा प्रतिकार के सिद्धान्त की निन्दा की जाती है. भयभीत करने के सिद्धान्त का भी अन्त वहीं है. सुधार करने का सिद्धान्त ही केवल आवश्यक है और मानवता की प्रगति के लिये अनिवार्य है.


इसका ध्येय अपराधी को योग्य और शान्तिप्रिय नागरिक के रूप में समाज को लौटाना है. किन्तु यदि हम मनुष्यों को अपराधी मान भी लें, तो ईश्वर द्वारा उन्हें दिये गये दण्ड की क्या प्रकृति है? तुम कहते हो वह उन्हें गाय, बिल्ली, पेड़, जड़ी-बूटी या जानवर बनाकर पैदा करता है. तुम ऐसे 84 लाख दण्डों को गिनाते हो. मैं पूछता हूं कि मनुष्य पर इनका सुधारक के रूप में क्या असर है? तुम ऐसे कितने व्यक्तियों से मिले हो, जो यह कहते हैं कि वे किसी पाप के कारण पूर्वजन्म में गधा के रूप में पैदा हुए थे? एक भी नहीं? अपने पुराणों से उदाहरण न दो. मेरे पास तुम्हारी पौराणिक कथाओं के लिए कोई स्थान नहीं है. और फिर क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है.


गरीबी एक अभिशाप है. यह एक दण्ड है. मैं पूछता हूं कि दण्ड प्रक्रिया की कहाँ तक प्रशंसा करें, जो अनिवार्यतः मनुष्य को और अधिक अपराध करने को बाध्य करे? क्या तुम्हारे ईश्वर ने यह नहीं सोचा था या उसको भी ये सारी बातें मानवता द्वारा अकथनीय कष्टों के झेलने की कीमत पर अनुभव से सीखनी थीं? तुम क्या सोचते हो, किसी गरीब या अनपढ़ परिवार, जैसे एक चमार या मेहतर के यहाँ पैदा होने पर इन्सान का क्या भाग्य होगा? चूँकि वह गरीब है, इसलिये पढ़ाई नहीं कर सकता. वह अपने साथियों से तिरस्कृत एवं परित्यक्त रहता है, जो ऊँची जाति में पैदा होने के कारण अपने को ऊँचा समझते हैं. उसका अज्ञान, उसकी गरीबी और उससे किया गया व्यवहार उसके हृदय को समाज के प्रति निष्ठुर बना देते हैं. यदि वह कोई पाप करता है तो उसका फल कौन भोगेगा? ईष्वर, वह स्वयं या समाज के मनीषी? और उन लोगों के दण्ड के बारे में क्या होगा, जिन्हें दम्भी ब्राह्मणों ने जानबूझ कर अज्ञानी बनाये रखा और जिनको तुम्हारी ज्ञान की पवित्र पुस्तकों – वेदों के कुछ वाक्य सुन लेने के कारण कान में पिघले सीसे की धारा सहन करने की सजा भुगतनी पड़ती थी? यदि वे कोई अपराध करते हैं, तो उसके लिये कौन ज़िम्मेदार होगा? और उनका प्रहार कौन सहेगा?


मेरे प्रिय दोस्तों! ये सिद्धान्त विशेषाधिकार युक्त लोगों के आविष्कार हैं. ये अपनी हथियाई हुई शक्ति, पूँजी और उच्चता को इन सिद्धान्तों के आधार पर सही ठहराते हैं. अपटान सिंक्लेयर ने लिखा था कि मनुष्य को बस अमरत्व में विश्वास दिला दो और उसके बाद उसकी सारी सम्पत्ति लूट लो. वह बगैर बड़बड़ाये इस कार्य में तुम्हारी सहायता करेगा. धर्म के उपदेशकों और सत्ता के स्वामियों के गठबन्धन से ही जेल, फाँसी, कोड़े और ये सिद्धान्त उपजते हैं.






मैं पूछता हूं तुम्हारा सर्वशक्तिशाली ईश्वर हर व्यक्ति को क्यों नहीं उस समय रोकता है, जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है? यह तो वह बहुत आसानी से कर सकता है. उसने क्यों नहीं लड़ाकू राजाओं की लड़ने की उग्रता को समाप्त किया और इस प्रकार विश्वयुद्ध द्वारा मानवता पर पड़ने वाली विपत्तियों से उसे बचाया? उसने अंग्रेजों के मस्तिष्क में भारत को मुक्त कर देने की भावना क्यों नहीं पैदा की? वह क्यों नहीं पूँजीपतियों के हृदय में यह परोपकारी उत्साह भर देता कि वे उत्पादन के साधनों पर अपना व्यक्तिगत सम्पत्ति का अधिकार त्याग दें और इस प्रकार केवल सम्पूर्ण श्रमिक समुदाय, वरन समस्त मानव समाज को पूँजीवादी बेड़ियों से मुक्त करें? आप समाजवाद की व्यावहारिकता पर तर्क करना चाहते हैं. मैं इसे आपके सर्वशक्तिमान पर छोड़ देता हूं कि वह लागू करे. जहाँ तक सामान्य भलाई की बात है, लोग समाजवाद के गुणों को मानते हैं. वे इसके व्यावहारिक न होने का बहाना लेकर इसका विरोध करते हैं.






परमात्मा को आने दो और वह चीज को सही तरीके से कर दे. अंग्रेजों की हुकूमत यहां इसलिये नहीं है कि ईश्वर चाहता है, बल्कि इसलिए कि उनके पास ताकत है और हममें उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं. वे हमको अपने प्रभुत्व में ईश्वर की मदद से नहीं रखे हैं, बल्कि बन्दूकों, राइफलों, बम और गोलियों, पुलिस और सेना के सहारे. यह हमारी उदासीनता है कि वे समाज के विरुद्ध सबसे निन्दनीय अपराध – एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र द्वारा अत्याचार पूर्ण शोषण – सफलतापूर्वक कर रहे हैं. कहाँ है ईश्वर? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मज़ा ले रहा है? एक नीरो, एक चंगेज, उसका नाश हो!


क्या तुम मुझसे पूछते हो कि मैं इस विश्व की उत्पत्ति और मानव की उत्पत्ति की व्याख्या कैसे करता हूं? ठीक है, मैं तुम्हें बताता हूं. चाल्र्स डारविन ने इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश की है. उसे पढ़ो. यह एक प्रकृति की घटना है. विभिन्न पदार्थों के, नीहारिका के आकार में, आकस्मिक मिश्रण से पृथ्वी बनी. कब? इतिहास देखो. इसी प्रकार की घटना से जन्तु पैदा हुए और एक लम्बे दौर में मानव. डार्विन की ‘जीव की उत्पत्ति’ पढ़ो. और तदुपरान्त सारा विकास मनुष्य द्वारा प्रकृति के लगातार विरोध और उस पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा से हुआ. यह इस घटना की सम्भवतः सबसे सूक्ष्म व्याख्या है.


तुम्हारा दूसरा तर्क यह हो सकता है कि क्यों एक बच्चा अन्धा या लंगड़ा पैदा होता है? क्या यह उसके पूर्वजन्म में किये गये कार्यों का फल नहीं है? जीवविज्ञान वेत्ताओं ने इस समस्या का वैज्ञानिक समाधान निकाल लिया है. अवश्य ही तुम एक और बचकाना प्रश्न पूछ सकते हो. यदि ईश्वर नहीं है, तो लोग उसमें विश्वास क्यों करने लगे? मेरा उत्तर सूक्ष्म और स्पष्ट है. जिस प्रकार वे प्रेतों और दुष्ट आत्माओं में विश्वास करने लगे. अन्तर केवल इतना है कि ईश्वर में विश्वास विश्वव्यापी है और दर्शन अत्यन्त विकसित. इसकी उत्पत्ति का श्रेय उन शोषकों की प्रतिभा को है, जो परमात्मा के अस्तित्व का उपदेश देकर लोगों को अपने प्रभुत्व में रखना चाहते थे और उनसे अपनी विशिष्ट स्थिति का अधिकार एवं अनुमोदन चाहते थे. सभी धर्म, समप्रदाय, पन्थ और ऐसी अन्य संस्थाएँ अन्त में निर्दयी और शोषक संस्थाओं, व्यक्तियों और वर्गों की समर्थक हो जाती हैं. राजा के विरुद्ध हर विद्रोह हर धर्म में सदैव ही पाप रहा है.


मनुष्य की सीमाओं को पहचानने पर, उसकी दुर्बलता व दोष को समझने के बाद परीक्षा की घड़ियों में मनुष्य को बहादुरी से सामना करने के लिये उत्साहित करने, सभी ख़तरों को पुरुषत्व के साथ झेलने और सम्पन्नता एवं ऐश्वर्य में उसके विस्फोट को बाँधने के लिये ईश्वर के काल्पनिक अस्तित्व की रचना हुई. अपने व्यक्तिगत नियमों और अभिभावकीय उदारता से पूर्ण ईश्वर की बढ़ा-चढ़ा कर कल्पना एवं चित्रण किया गया. जब उसकी उग्रता और व्यक्तिगत नियमों की चर्चा होती है, तो उसका उपयोग एक भय दिखाने वाले के रूप में किया जाता है. ताकि कोई मनुष्य समाज के लिये ख़तरा न बन जाये. जब उसके अभिभावक गुणों की व्याख्या होती है, तो उसका उपयोग एक पिता, माता, भाई, बहन, दोस्त और सहायक की तरह किया जाता है.


जब मनुष्य अपने सभी दोस्तों द्वारा विश्वासघात और त्याग देने से अत्यन्त क्लेष में हो, तब उसे इस विचार से सान्त्वना मिल सकती हे कि एक सदा सच्चा दोस्त उसकी सहायता करने को है, उसको सहारा देगा और वह सर्वशक्तिमान है और कुछ भी कर सकता है. वास्तव में आदिम काल में यह समाज के लिये उपयोगी था. पीड़ा में पड़े मनुष्य के लिये ईश्वर की कल्पना उपयोगी होती है. समाज को इस विश्वास के विरुद्ध लड़ना होगा. मनुष्य जब अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करता है और यथार्थवादी बन जाता है, तब उसे श्रद्धा को एक ओर फेंक देना चाहिए और उन सभी कष्टों, परेशानियों का पुरुषत्व के साथ सामना करना चाहिए, जिनमें परिस्थितियाँ उसे पटक सकती हैं. यही आज मेरी स्थिति है. यह मेरा अहंकार नहीं है, मेरे दोस्त! यह मेरे सोचने का तरीका है, जिसने मुझे नास्तिक बनाया है.






ईश्वर में विश्वास और रोज़-ब-रोज़ की प्रार्थना को मैं मनुष्य के लिये सबसे स्वार्थी और गिरा हुआ काम मानता हूं. मैंने उन नास्तिकों के बारे में पढ़ा हे, जिन्होंने सभी विपदाओं का बहादुरी से सामना किया. अतः मैं भी एक पुरुष की भाँति फाँसी के फन्दे की अन्तिम घड़ी तक सिर ऊँचा किये खड़ा रहना चाहता हूं.



हमें देखना है कि मैं कैसे निभा पाता हूं. मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा. जब मैंने उसे नास्तिक होने की बात बतायी तो उसने कहा, ‘’अपने अन्तिम दिनों में तुम विश्वास करने लगोगे.’’ मैंने कहा, ‘’नहीं, प्यारे दोस्त, ऐसा नहीं होगा. मैं इसे अपने लिये अपमानजनक और भ्रष्ट होने की बात समझाता हूं. स्वार्थी कारणों से मैं प्रार्थना नहीं करूँगा.’’ पाठकों और दोस्तों, क्या यह अहंकार है? अगर है तो मैं स्वीकार करता हूं.




सोर्स:लल्लनटॉप 

loading...




अक्सर अपने विवादित बयानों के चलते सुर्खियों में रहनेवाले पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने एक बार फिर विवादित बयान देकर हड़कंप मचा दिया है। बता दे कि पाकिस्तान के खिलाफ देश में गुस्सा है। शहीदों के घरवाले बदले की बात कह रहे हैं। सरकार पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए रणनीति बना रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने शहादत के जख्मों पर नमक छिड़का है। जस्टिस काटजू ने फेसबुक पर पाकिस्तान को संबोधित करते हुए लिखा है कि कश्मीर लेना है तो बिहार भी साथ लेना होगा। इतना ही नहीं काटजू ने पाकिस्तान से ज्यादा खतरा देश को बिहार से बताया है।

गौरतलब है कि जस्टिस काटजू अपने विवादित बयानों की वजह से हमेशा चर्चा में रहते हैं। इस बार उन्होंने सोशल मीडिया पर बेतुका बयान देते हुए ना सिर्फ 10 करोड़ के करीब आबादी वाले बिहार का मजाक उड़ाया है बल्कि शहीदों का भी अपमान किया है। जस्टिस काटजू ने फेसबुक पर लिखा है कि पाकिस्तान के लोग आइये, इस विवाद को हम सब लोग मिलकर खत्म करते हैं। एक शर्त पर हम आपको कश्मीर देंगे, साथ में आपको बिहार भी लेना होगा। ये एक पैकेज डील है। या तो दोनों, या फिर कुछ नहीं। हम सिर्फ कश्मीर नहीं देंगे।

इस फेसबुक पोस्ट में जस्टिस काटजू इतने पर ही नहीं रुके। बिहार और बिहार के लोगों का और ज्यादा अपमान करते हुए लिखा कि पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भी आगरा वार्ता के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को ये ऑफर दिया था लेकिन मूर्ख मुशर्रफ ने इसे रिजेक्ट कर दिया था। अब एक बार फिर से ये ऑफर है। मत चूक ऐ चौहान।

काटजू ने परसों यानी 25 सितंबर को शाम 6 बजकर 51 मिनट पर ये पोस्ट फेसबुक पर डाला था. तब से इस पर सैकड़ों लोग अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं। काटजू की निंदा करने और शहीदों का अपमान बताते हुए लोग अपनी राय जाहिर कर रहे हैं.काटजू की इस टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर लोगों ने कड़ा एतराज जताया है। लोगों ने कहा है कि काटजू साहब आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी, बिहार ही क्यों पाकिस्तान आपको भी साथ ले जाए।

बयान पर दी सफाई।
विवाद बढ़ने के बाद जस्टिस काटजू ने सफाई देते हुए कहा कि ये तो बस मजाक था। बयान पर माफी मांगने से इंकार करते हुए उन्होंने कहा कि लोगों में सेस ऑफ ह्यूमर की कमी है।

पहले भी दिया था विवादित बयान।
काटजू अपने बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहते हुए भी उन्होंने बिहार में मीडिया की आजादी पर सवाल उठाया था। उस वक्त भी काफी हंगामा हुआ था।



loading...



एक तरफ पाकिस्तान की जनता गरीबी और भूखमरी से लाचार परेशान है वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ को कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो लंदन में मजे से शॉपिंग कर रहे हैं। एक तरफ पाकिस्तान में आतंकवाद, खराब कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, महंगाई चरम पर है। वहीं दूसरी तरफ पाक पीएम लंदन के हाईफाई फैशन रिटेल स्टोर हैरोड्स में खरीदारी कर रहे हैं।

एक तरफ पाकिस्तान कर्ज में डूबा है जहां कर्ज चुकाने के लिए सरकार कर्ज लेती है। वहीं दूसरी तरफ पाक पीएम लंदन में गुची के स्टोर में महंगे-महंगे जूते खरीद रहे हैं। जी हां पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ साहब न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना बेहूदा भाषण देने के बाद पाकिस्तान जाने के जगह लंदन चले गए हैं। जहां महंगी-मंहगी शॉपिंग कर रहे हैं। इसका खुलासा पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान ने खुद किया है।

इमरान ने ट्वीट कर लिखा पूर्वी सीमा और नियंत्रण रेखा पर तनाव का माहौल है, जबकि प्रधानमंत्री लंदन में छुट्टियां मना रहे हैं और खरीदारी कर रहे हैं। गौरतलब है कि पाकिस्तान की पीएम नवाज शरीफ फैशन के शौकीन माने जाते हैं। साल में कम से कम चार से पांच बार लंदन शॉपिंग के लिए आते हैं। इसी साल अप्रैल और जून में लंदन में शॉपिंग करते उनकी तस्वीरें वायरल हुईं थी। नवाज शरीफ घड़ि‍यों के भी शौकीन हैं। वे हैरी विंसटन की 10 लाख रुपये की लग्‍जरी घड़ी कलाई पर बांधते हैं, जिसकी पाकिस्‍तान में कीमत करीब 16 लाख 68 हजार है।


सूखी रोटी खाकर भी भारत को करारा जवाब देने के सपने देखने वाले 'शरीफ' ने क्या कर रखी है पाकिस्तान की हालत, जानिए...

- आतंकवाद, खराब कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, महंगाई पाकिस्तान में चरम पर है।

- पाकिस्तान सरकार की माली हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है।

- पाकिस्तान में एक लीटर दूध की कीमत भारत से दुगनी है 80 से 90 रूपए प्रति लीटर।

- ग्रीस की तरह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी उधार पर आधारित हो गई है।

- घर खरीदना हो तो उधार लो, पढ़ाई करनी हो तो उधार लो, कर्ज की किश्त चुकानी हो तो उधार लो।

- इसकी दो बड़ी वजह है एक इकोनॉमी को मजबूत करने से ज्यादा हथियारों पर खर्च करना।

- दूसरा दुनियाभर से लिया गया 163 बिलियन डॉलर यानी 17 ट्रिलियन रुपये का कर्ज।

- पाकिस्तान की 98 फीसदी आबादी टैक्स नहीं देती, यहां तक की 2/3 से ज्यादा सांसद भी टैक्स नहीं देते।

- कुल टैक्स रेवेन्यू का 68 फीसदी अप्रत्यक्ष टैक्स से आता है, जिसके कारण और गरीबी बढ़ रही है।

- इंग्लैंड के एक NGO का दावा है उधार के चलते आज पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया है।

- रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कई दशकों से अर्थव्यवस्था कॉमर्शियल और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से लोन के सहारे चल रही है।

- पाकिस्तान कुल 232 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है।

- हर साल उसे कुल टैक्स रेवेन्यू का 44 फीसदी बतौर ब्याज चुकाना पड़ता है।

- जब भी रेवेन्यू में कम होता है तो पाक IMF और विश्व बैंक की तरफ देखता है।

- दूसरा दुनियाभर से लिया गया 163 बिलियन डॉलर यानी 17 ट्रिलियन रुपये का कर्ज।

- हर साल पाकिस्तान को 50 बिलियन डॉलर का कर्ज चुकाना होता है।

- भारतीय रुपए में ये रकम 3 लाख, 40 हजार करोड़ रुपए बनती है

- पाकिस्तान का कुल बजट 8 लाख 43 हजार करोड़ रुपए का है।

- हर पाकिस्तान के ऊपर 1 लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज है।

- कर्ज की किश्त चुकाने के लिए भी पाकिस्तान ने कई बार कर्जा लिया है।

- 2013 में इसकी किश्त चुकाने के लिए पाकिस्तान IMF से 7 बिलियन डॉलर का कर्जा ले चुका है।

- अमेरिका चीन समेत दुनिया के कई देश आतंकवाद को खत्म करने के लिए पाकिस्तान को पैसे देते हैं।

- लेकिन पाकिस्तान इसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ Proxy War, आंतकवाद को बढ़ावा देने में करता है।

- ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भ्रष्टाचार के मामले में पाकिस्तान को 175 देशों में 126 नंबर पर रखा है।

- अंतरराष्ट्रीय आर्थिक खुफिया यूनिट ने पाकिस्तान को दुनिया के 10 अस्थिर देशों की लिस्ट में रखा है।




सोर्स:न्यूज़ २४ 
loading...



कोणार्क सूर्य मंदिर में सूर्योदय का एक ऐसा विहंगम दृश्य देखने को मिला जो 200 साल में एक बार ही देखने को मिलता है। इस दृश्‍य को देखने के लिए यहां पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी।

उड़ीसा राज्य के पवित्र शहर पुरी के पास कोणार्क का यह सूर्य मंदिर स्थित है। यह भव्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और भारत का प्रसिद्घ तीर्थ स्थल है। सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। सूर्य मंदिर जाना जाता है यहां के सभी पत्थरों पर की गई अद्भुत नक्काशी के लिए।

इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं। सूर्य देवता के रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में भी पत्थर के पहिए और घोड़े हैं, साथ ही इन पर उत्तम नक्काशी भी की गई है। यहां की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है और अब यहां कोई भी देव मूर्ति नहीं है।

सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।

माना जाता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों पर सैन्यबल की सफलता का जश्न मनाने के लिए राजा ने कोणार्क में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां के टावर में स्थित दो शक्तिशाली चुंबक मंदिर के प्रभावशाली आभामंडल के शक्तिपुंज हैं।

15वीं शताब्दी में मुस्लिम सेना ने लूटपाट मचा दी थी, तब सूर्य मंदिर के पुजारियों ने यहां स्थपित सूर्य देवता की मूर्ति को पुरी में ले जाकर सुरक्षित रख दिया, लेकिन पूरा मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद धीरे-धीरे मंदिर पर रेत जमा होने लगी और यह पूरी तरह रेत से ढंक गया था। 20वीं सदी में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत हुए रेस्टोरेशन में सूर्य मंदिर खोजा गया।

पुराने समय में समुद्र तट से गुजरने वाले योरपीय नाविक मंदिर के टावर की सहायता से नेविगेशन करते थे, लेकिन यहां चट्टानों से टकराकर कई जहाज नष्ट होने लगे और इसीलिए इन नाविकों ने सूर्य मंदिर को 'ब्लैक पगोड़ा' नाम दे दिया। जहाजों की इन दुर्घटनाओं का कारण भी मंदिर के शक्तिशली चुंबकों को ही माना जाता है।






सोर्स:न्यूज़ २४ 
loading...


जब से लिस्टिकल वाली वेबसाइट्स आई हैं न. लिस्टिकल माने लिस्ट वाले आर्टिकल, दस ये चीजें पांच वो लोग टाइप्स. तब से ये बताना अनिवार्य हो गया है कि जींस में छोटी जेब क्यों होती है. इयरफोन में L और R क्यों लिखा है. हम सपने में गिरते क्यों हैं. तो उसी तरह का ज्ञान वाला आर्टिकल है ये. पूरा पढ़ो.

1. लैपटॉप चार्जर में लगा सिलेंड्रिकल बीड

बहुत लोगों को लगता है कि चार्जर में लगा सिलेंड्रिकल उसकी खूबसूरती बढ़ाने के लिए होता है. पर ऐसा नहीं है. ये मैग्नेटिक बीड होता है. जो दरअसल में इन्डक्टर है. ये हाई फ्रीक्वेंसी नॉइज़ को सर्किट में भेजता है जिसमें चार्जर आपने लगाया है. डिवाइस की अपनी मैग्नेटिक फील्ड होती है, चार्जर वाले तार की अपनी मैग्नेटिक फील्ड होती है. उस चोक का काम उस फील्ड को सही से भेजना होता है ये समझ लो.



 

2. कॉलर के नीचे लगा लूप

जनरली लोग शर्ट को झुलाने के लिए उसका कॉलर कटोरी के जैसा बना देते हैं. या फिर तार पर डाल देते हैं. कॉलर के नीचे कंधे के पास शर्ट में एक लूप होता है. उसमें भी आप अपना शर्ट झूला सकते हैं. इसके अलावा ये एक टाई जैसा भी दिखता है.



3. हवाई जहाज की खिड़की में बने छुटकी सी छेद

प्लेन की खिड़की में जो ग्लास लगा होता है दरअसल वो प्लास्टिक का होता है. दो लेयर प्लास्टिक के लगे होते हैं. ये छुटकु होल आपको खिड़की के नीचे मिलेंगे. जो प्लास्टिक लेयर के बीच में प्रेशर को संतुलित रखता है. जिससे प्लेन सेफ रहता है और हम भी.



4. दो कलर वाला इरेजर

हम सोचते थे कि एक से पेंसिल वाला लिखा मिटाएंगे तो दूसरे से पेन वाला. पर ये सब झूठ बात है. ये मानवता का सबसे बड़ा झूठ है. बचपन का सबसे बड़ा झूठ है. जो प्रोडक्ट बेचने के लिए हमारे दिमाग में डाली गई है. हल्का वाला पेंसिल के हल्के धब्बे और नीला वाला गहरे निशान मिटाने को है.




5. जूते के फीते वाले होल के पास वाले तनिकनी होल

हमको लगता था कि सुदंर लगने के लिए जूता बनाने वाली कंपनी ऐसा करती है. पर ये भी झूठ है. वो इसलिए दिए जाते हैं ताकि जूता आपके पैर में फिट हो जाए. और दौड़ते वक्त आपका एंकल जूते से रगड़ न खाए.



6. चाउमिन वाले करछी में होल

अपन के यहां पूरी तलने वाला करछी अलग होता था और सब्जी बनाने वाला अलग. पूरी वाले में छोटे-छोटे होल्स होते हैं. ताकि तेल कराही में रह जाए और पूरी में कम तेल चिपके. ऐसे ही लोगों को लगता है कि उबले चाउमिन से पानी चुआने के लिए उसमें होल होता है. पर वो तो सारे कस्टमर्स को बराबर चाउमिन सर्व करने के लिए होता है.



7. जीन्स की बड़ी पॉकेट के अंदर वाली छुटकु पॉकेट

हम तो उसमें चिलल्ड़ रखते थे. ताकि खेलते टाइम गिर न जाए. अब लोगों को लगता है कि वो बस फैशन का पार्ट है. पहली दफा 1873 में लेवाइस की जीन्स में ये छुटकु पॉकेट दिखा था. उसके बाद पॉकेट वाली घड़ी फैशन में आई. तो उसे रखने के लिए उसे डिजाइन किया गया था. आज भी हमे दिख जाता है पर पॉकेट वॉच का फैशन ओल्ड हो गया. तो अब यूजलेस ही पड़ा है.


8. कपड़े के साथ फटान और बटन
अपने यहां तो शर्ट में ही एक्सट्रा बटन दे देते हैं. टेलर कपड़ों के साथ एक रुमाल पकड़ा देता है. और लोग मानते हैं कि जितने दिन रुमाल चलेगा उतने ही दिन हमार कपड़ा. विदेशों में कपड़े का फटान देते हैं. ताकि पहले ही उसको धुल लो. और देख लो कि टाइड, निरमा और घड़ी कैसे-कैसे और कितना चमत्कार करता है.



9. कलम के खोप्पी पर होल

हम सोचते थे कि कलम के खोप्पी का छेद बाजा बजाने के लिए दिया रहता है. पर नहीं वो कलम का नाक होता है. सांस लेने के लिए दिया रहता है.



10. जीन्स के पॉकेट पर लगा बटन

हम तो उसको बटन कह देते हैं पर उसका नाम है रिवेट्स. पॉकेट के पास सिलाई बहुत होती है. इसलिए उसे ज्यादा स्ट्रेंथ की जरुरत होती है. और वो बटन उके लिए कॉम्प्लान का काम करता है. और पॉकेट को फटने से बचाता है.



ये वीडियो देख लो. चार मिनट में सब खोपड़िया के अंदर होगा.








सोर्स:लल्लनटॉप 










loading...



अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इसने पिछले छह दशकों के दौरान नैदानिक प्रदाता, अनुसंधान संस्थान और शिक्षण संस्थान के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के हीरक जयंती समारोह के अवसर पर यहां केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि वर्ष 2015-16 के दौरान एम्स, दिल्ली में 30 लाख बाह्यरोगियों, ढाई लाख अंत:रोगियों का इलाज किया गया और लगभग डेढ़ लाख शल्यचिकित्सा की गई.
नड्डा ने कहा कि इस संस्थान ने हमेशा प्रतिभा और शिक्षा के क्षेत्र में उच्चतम मानकों को कायम रखा है. इस संस्थान ने पूरे देश से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित किया है जो इस संस्थान में युवा छात्रों के रूप में प्रवेश करती हैं और गरीब से गरीब लोगों की सेवा करने की गहन प्रतिबद्धता के साथ पासआउट होती हैं.
File PhotoFile Photo
नड्डा ने कहा कि एम्स देश में स्थापित किए जा रहे एम्स जैसे नए संस्थानों के लिए एक पथ प्रदर्शक भी है. इस संदर्भ में एम्स नियमों और विनियमों सहित अधीनस्थ विधानों को तैयार करने और समीक्षा करने में एम्स का कार्य बहुत सराहनीय रहा है.
नड्डा ने कहा कि पिछले वर्ष के दौरान लगभग छह सौ अनुसंधान परियोजनाओं आयोजित की गई हैं और संस्थान ने बायो मेडिकल के क्षेत्र में अग्रणीय और बढ़त वाले क्षेत्रों में सत्तर करोड़ रुपये से अधिक की बाह्य अनुसंधान सहायता प्राप्त की है.
इसके अलावा संस्थान के शिक्षकों और वैज्ञानिकों ने 1800 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किये हैं और एम्स को शोध प्रकाशन में विश्व के शीर्ष चिकित्सा संस्थानों में तीसरा स्थान दिया गया है.
भविष्य की योजनाओं के बारे में जानकारी देते हुए नड्डा ने कहा कि एम्स अपने ट्रामा सेंटर, सर्जिकल ब्लॉक, मातृ और शिशु ब्लॉक और ओपीडी ब्लॉक का विस्तार करने की प्रक्रिया में है. यह विस्तार चरणबद्ध रूप से होगा, जिसके पूरा होनेपर अस्पताल की क्षमता लगभग दोगुनी हो जाएगी.
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एम्स के अधीन झज्जर में दो हजार पैतीस करोड़ की लागत से राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआई) की स्थापना के प्रस्ताव को अभी हाल ही में मंजूरी दी है. एनसीआई आजादी के बाद देश में प्रस्तावित सबसे बड़ी स्वास्थ्य देखभाल (सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में) सुविधा है. प्रस्तावित संस्थान में विभिन्न सुविधाओं के लिए 710 बिस्तर उपलब्ध होंगे.
स्वास्थ्य मंत्री ने समाज के कमजोर वर्गों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संस्थान में एक नि:शुल्क जैनरिक फामेर्सी स्टोर का भी उद्घाटन किया और मेधावी शिक्षकों और छात्रों को अनुसंधान पुरस्कार प्रदान किए.





loading...

योगदान देने वाला व्यक्ति

Blogger द्वारा संचालित.