नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. इसे यम चतुर्दशी और रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं. यह पर्व नरक चौदस और नरक पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है. आमतौर पर लोग इस पर्व को छोटी दीवाली भी कहते हैं. इस बार यह पर्व बुधवार 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा.
इस दिन यमराज की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग स्नान यानी तिल का तेल लगाकर अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) यानी कि चिचिंटा या लट जीरा की पत्तियां जल में डालकर स्नान करता है, उसे यमराज की विशेष कृपा मिलती है. नरक जाने से मुक्ति मिलती है और सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
स्नान के बाद सुबह-सवेरे राधा-कृष्ण के मंदिर में जाकर दर्शन करने से पापों का नाश होता है और रूप-सौन्दर्य की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि महाबली हनुमान का जन्म इसी दिन हुआ था इसीलिए बजरंगबली की भी विशेष पूजा की जाती है.
नरक चतुर्दशी के दिन पूजा करने की विधि
- नरक से बचने के लिए इस दिन सूर्योदय से पहले शरीर में तेल की मालिश करके स्नान किया जाता है.
- स्नान के दौरान अपामार्ग की टहनियों को सात बार सिर पर घुमाना चाहिए.
- टहनी को सिर पर रखकर सिर पर थोड़ी सी साफ मिट्टी रखें लें.
- अब सिर पर पानी डालकर स्नान करें.
- इसके बाद पानी में तिल डालकर यमराज को तर्पण दिया जाता है.
- तर्पण के बाद मंदिर, घर के अंदरूनी हिस्सों और बगीचे में दीप जलाने चाहिए.
यम तर्पण मंत्र
यमय धर्मराजाय मृत्वे चान्तकाय च |
वैवस्वताय कालाय सर्वभूत चायाय च ||
स्नान और दीपदान का मुहूर्त
इस बार नरक चतुर्दशी बुधवार 18 अक्टूबर को मनाई जाएगी. अभ्यंग स्नान का मुहूर्त सूर्योदय से पूर्व और चंद्रमा के उदय रहते हुए सुबह 04:47 से सुबह 06:27 तक रहेगा. इसकी अवधि 1 घंटे 40 मिनट रहेगी. यम दीपदान का पूजन मुहूर्त शाम 6 से शाम 7 बजे तक रहेगा. यम दीपदान के लिए चार बत्ती वाला मिट्टी का दीपक घर के मुख्य द्वार पर रखना चाहिए.
नरक चतुर्दशी के दिन कैसे करें हनुमान जी की पूजा?
मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान हनुमान ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था. इस दिन भक्त दुख और भय से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा-अर्चनाा करते हैं. इस दिन हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहिए.
नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं रूप चतुर्दशी?
मान्यता के अनुसार हिरण्यगभ नाम के एक राजा ने राज-पाट छोड़कर तप में विलीन होने का फैसला किया. कई वर्षों तक तपस्या करने की वजह से उनके शरीर में कीड़े पड़ गए. इस बात से दुखी हिरण्यगभ ने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही. नारद मुनि ने राजा से कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करें. ऐसा करने से फिर से सौन्दर्य की प्राप्ति होगी. राजा ने सबकुछ वैसा ही किया जैसा कि नारद मुनि ने बताया था. राजा फिर से रूपवान हो गए. तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं.
क्यों मनाई जाती है छोटी दीवाली?
नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली भी कहा जाता है. दरअसल, यह पर्व दीवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है और इस दिन भी घर में दीपक जलाने का विधान है.
सोर्स:NDTV
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