कोणार्क सूर्य मंदिर में
सूर्योदय का एक ऐसा विहंगम दृश्य देखने को मिला जो 200 साल में एक बार ही
देखने को मिलता है। इस दृश्य को देखने के लिए यहां पर श्रद्धालुओं की भारी
भीड़ उमड़ी।
उड़ीसा राज्य के पवित्र शहर पुरी के पास कोणार्क
का यह सूर्य मंदिर स्थित है। यह भव्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और
भारत का प्रसिद्घ तीर्थ स्थल है। सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया
यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। सूर्य मंदिर
जाना जाता है यहां के सभी पत्थरों पर की गई अद्भुत नक्काशी के लिए।इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं। सूर्य देवता के रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में भी पत्थर के पहिए और घोड़े हैं, साथ ही इन पर उत्तम नक्काशी भी की गई है। यहां की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है और अब यहां कोई भी देव मूर्ति नहीं है।
सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।
माना जाता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों पर सैन्यबल की सफलता का जश्न मनाने के लिए राजा ने कोणार्क में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां के टावर में स्थित दो शक्तिशाली चुंबक मंदिर के प्रभावशाली आभामंडल के शक्तिपुंज हैं।
15वीं शताब्दी में मुस्लिम सेना ने लूटपाट मचा दी थी, तब सूर्य मंदिर के पुजारियों ने यहां स्थपित सूर्य देवता की मूर्ति को पुरी में ले जाकर सुरक्षित रख दिया, लेकिन पूरा मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद धीरे-धीरे मंदिर पर रेत जमा होने लगी और यह पूरी तरह रेत से ढंक गया था। 20वीं सदी में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत हुए रेस्टोरेशन में सूर्य मंदिर खोजा गया।
पुराने समय में समुद्र तट से गुजरने वाले योरपीय नाविक मंदिर के टावर की सहायता से नेविगेशन करते थे, लेकिन यहां चट्टानों से टकराकर कई जहाज नष्ट होने लगे और इसीलिए इन नाविकों ने सूर्य मंदिर को 'ब्लैक पगोड़ा' नाम दे दिया। जहाजों की इन दुर्घटनाओं का कारण भी मंदिर के शक्तिशली चुंबकों को ही माना जाता है।
सोर्स:न्यूज़ २४
एक टिप्पणी भेजें