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भारत दौरे पर आखिरकार इंग्लैंड टीम के लिए कुछ तो अच्छा हुआ। इंग्लैंड ने आखिरी वनडे मैच में भारत पर 5 रन से जीत दर्ज की और पहले T-20 में भारत को हारा कर सीरीज में 1-0 की लीड ले ली । इसके अलावा भारतीय टीम इस सीरीज में इंग्लैंड से हर मोर्चे पर बेहतर थी।


वनडे में टीम इंडिया को एक ऐसा बल्लेबाज चाहिए था, जो छठे या सातवें नंबर पर आकर विस्फोटक पारी खेल सके और इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में टीम इंडिया को ऐसा बल्लेबाज मिला केदार जाधव के रूप में मिला। केदार जाधव को इंग्लैंड सीरीज की खोज कहा जा सकता है।



इसके अलावा इस सीरीज में युवराज सिंह ने भी जबरदस्त वापसी की। 2011 वर्ल्ड कप के बाद 2017 इंग्लैंड सीरीज में हमें पुराना युवराज देखने को मिला। 



उन्होंने धोनी के साथ साझेदारी कर पुरानी यादें ताजा की। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि इंग्लैंड सीरीज में टीम इंडिया को बहुत सारे पॉजिटिवस मिले। जिससे अब टीम चैंपियंस ट्रॉफी में बढ़े हुए मनोबल के साथ उतरेगी।



इन सबके बावजूद कुछ ऐसे फैक्टर्स भी जो टीम मैनेजमेंट के लिए चिंता का सबब हैं। आइए नजर डालते हैं इस वनडे सीरीज में टीम इंडिया की 5 खामियों पर :




#1 के एल राहुल





कर्नाटक के इस युवा बल्लेबाज के लिए पिछला सीजन काफी अच्छा रहा था। जब वो तीनों फॉर्मेट में शतक लगाने वाले तीसरे भारतीय खिलाड़ी बने थे। जिसके बाद से के एल राहुल से उम्मीदें काफी ज्यादा बढ़ गई थी।




इंग्लैंज के खिलाफ वनडे सीरीज में लोकेश राहुल ने भी निराश किया। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ तीनों वनडे मैचों में शुरुआत में कुछ अच्छे शाट्स जरूर लगाए लेकिन इसके बाद वो जल्द ही अपना विकेट इंग्लैंड के गेंदबाजों को तोहफे के रूप में देते चले गए।




के एल राहुल में टैलेंट की कोई कमी नहीं है पर उन्हें सिर्फ अपने टेंमरामेंट पर काम करना होगा। हालांकि वनडे सीरीज में खराब प्रदर्शन के बाद भी सलेक्टर्स और टीम मैनेजमेंट ने उनपर काफी भरोसा दिखाया है। जिससे इस युवा बल्लेबाज का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो आगे आने वाले मैचों में फिर से लय में लौटने में उनकी मदद करेगा।



#2 शिखर धवन






वनडे में शिखर धवन का बल्ला भी उनसे रूठा हुआ है, लेकिन बावजूद इसके टीम मैनेजमेंट ने उनके टैलेंट पर भरोसा दिखाते हुए उन्हें कई मौके दिए, लेकिन शिखर ने सभी मौकों पर निराश ही किया।



2016 में शिखर का प्रदर्शन औसत दर्जे का रहा। जिसके बाद उनके पास मौका था कि साल इंग्लैंड के खिलाफ 2017 की पहली ही वनडे सीरीज में अपनी छाप छोड़े, लेकिन उन्होंने पहले वनडे मैच में 12 तो दूसरे वनडे में महज 2 रन बनाए।



इसका नतीजा ये हुआ उन्हें आखिरी वनडे मैच से बाहर बैठना पडा और ये इस बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए एक संकेत भी था, अगर आप अपनी फॉर्म में सुधार नहीं करते तो टीम इंडिया के पास ओपनर्स के काफी विकल्प मौजूद हैं।




#3 अजिंक्य रहाणे





अजिंक्य रहाणे तीनों फॉर्मेट में भारत के मुख्य बल्लेबाज रहे हैं। हालांकि पिछले कुछ समय खासकर वनडे क्रिकेट में वो बुरे दौर से गुजर रहे हैं। उनके बल्ले से रन नहीं निकले रहे हैं। टेस्ट टीम में तो प्लेइंग्ल इलेवन में रहाणे की जगह पक्की नजर आती है लेकिन वनडे क्रिकेट में उन्हें इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।


इंग्लैंड के खिलाफ वनडे सीरीज के तीसरे मैच में रहाणे को शिखर धवन की जगह टीम में मौका मिला, लेकिन वो इस मौके को भुनाने में नाकाम रहे उन्होंने 6 गेंदों में सिर्फ 1 रन बनाया।



टी 20 टीम से तो रहाणे का पत्ता कट ही चुका है और जिस तरह से वनडे क्रिकेट में उनका फ्लॉप शो जारी है। इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि उनको जल्दी ही वनडे टीम से भी बाहर का रास्ता देखना पड़ सकता है।




#4 उमेश यादव






उमेश यादव ने न्यूजीलैंड के खिलाफ खेली गई पिछली वनडे सीरीज में शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ उमेश उसी प्रदर्शन को दोहराने में नाकाम रहे। हालांकि उमेश को 3 वनडे मैचों की सीरीज के इस मैच में सिर्फ 1 ही मैच खेलने को मिला।



उमेश ने इंग्लैंड के खिलाफ पहले वनडे मैच में 7 ओवर गेंदबाजी करते हुए 9 के इकोनोमी रेट से 63 रन दिए। उमेश नई गेंद पर नियंत्रण नहीं रख पाए और उन्होंने जमकर रन लुटाए।



इस साल जून में चैंपियंस ट्रॉफी इंग्लैंड में होनी है। वहां की पिचें तेज गेंदबाजों के लिए मददगार होती हैं। ऐसे में चैंपियंस ट्रॉफी से टीक पहले उमेश यादव का फॉर्म में ना होना चिंता का विषय है।




#5 रविचंद्रन अश्विन




इसमें कोई दो राय नहीं है कि सफेद जर्सी में अश्विन टीम इंडिया की जीत का गारंटी हैं। इंग्लैंड के खिलाफ अश्विन के अहम योगदान के चलते ही टीम इंडिया ने उस सीरीज 4-0 से जीत दर्ज की थी। हालांकि वनडे सीरीज में अश्विन इस फॉर्म को बरकरार नहीं रख पाए।



लंबे समय बाद वनडे सीरीज में वापसी करते हुए अश्विन ने अपने प्रदर्शन से सभी को निराश किया। टेस्ट सीरीज में विरोधी खेमे में खलबली मचाने वाले अश्विन पूरी तररह बेबस दिखे। टीम के सबसे अनुभवी गेंदबाज अश्विन ने 3 मैचों सिर्फ 3 विकेट चटकाए और इसके लिए 188 रन खर्च किए।





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कप्तान विराट कोहली के सामने आज मेहमान टीम के खिलाफ होने वाले दूसरे ट्वेंटी-20 में हर हालत में जीत हासिल कर सीरीज को बचाने की चुनौती होगी। टीम इंडिया पहला मैच गंवाने के बाद तीन ट्वेंटी-20 मैचों की सीरीज में 0-1 से पिछड़ी हुई है।



अगर सीरीज तीन मैचों की हो तो पहला मुकाबला हारने वाली टीम के लिए चुनौती और कड़ी हो जाती है। भारतीय टीम के साथ भी कुछ ऐसा ही है। 


टीम इंडिया में स्टार खिलाड़ियों की भरमार है और ऐसे में टीम के प्रत्येक खिलाड़ी को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। 



टीम को अपने स्टार बल्लेबाज विराट पर निर्भरता भी कम करनी होगी। विराट ने पहले मुकाबले में अच्छी शुरुआत के बाद अपना विकेट गंवाया। उन्हें अपने विकेट की कीमत समझनी होगी।




नागपुर के इस ग्राउंड में भारत का नहीं है अच्छा रिकॉर्ड


अगर बात नागपुर के इस ग्राउंड की करें तो इस ग्राउंड में भारत के प्रदर्शन का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। भारत ने नागपुर के इस ग्राउंड पर अबतक दो मैच खेले हैं और दोनों में ही उसे हार मिली है। दिसंबर 2009 में श्रीलंका ने भारत को 29 रन से हराया था, तो वहीं मार्च 2016 में न्यूजीलैंड ने 47 रन से भारत को हराया था। भारत ने इस मैदान पर पिछले साल 15 मार्च को न्यूजीलैंड के खिलाफ टी20 विश्व कप का अहम मैच खेला था।



वीसीए स्टेडियम पर महेंद्र सिंह धौनी की कप्तानी में भारत को टी20 विश्व कप लीग चरण में न्यूजीलैंड से पराजय का सामना करना पड़ा था।



नागपुर के इस ग्राउंड पर अबतक कुल 10 टी-20 मैच हुए हैं, जिसमें से 7 मैचों में पहले खेलने वाली टीम की जीत हुई है।




टीम में हो सकते हैं ये बदलाव







भारतीय टीम के पास बदलाव के विकल्प है और युवा ऋषभ पंत को टीम में उतारा जा सकता है जिसने मुंबई में अभ्यास मैच में 50 रन बनाये थे। भुवनेश्वर कुमार कानपुर में रिजर्व बेंच पर थे लेकिन उन्हें जसप्रीत बुमराह की जगह शामिल किया जा सकता है । बुमरा कानपुर मैच में अच्छे यॉर्कर नहीं डाल सके थे जो उनकी खूबी है। अनुभवी आशीष नेहरा ने ऑपरेशन के बाद टीम में वापसी की है । अभ्यास मैच में तीन ओवरों में उन्होंने 31 रन दिये।




युवराज, धौनी और पांड्या से उम्मीद







टीम में युवराज वापसी के बाद बेहतरीन लय में हैं। वह पुराने अंदाज में गेंदों पर प्रहार कर रहे हैं। सुरेश रैना की वापसी को भी संतोषजनक कहा जा सकता है। पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी सदाबहार हैं जबकि निचले क्रम में हार्दिक पांड्या उपयोगी पारियां खेलते हुए खुद को ऑलराउंडर के रूप में विकसित कर रहे हैं।


भारतीय बल्लेबाजों के सामने बेहतर प्रदर्शन की चुनौती


अगर पिछले मैच में नजर डालें तो भारतीय बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में ही विश्वास की कमी नजर आयी। मेहमान बल्लेबाज जहां कमजोर गेंदों पर आसानी से रन बना रहे थे वहीं भारतीय बल्लेबाजों का अपने खेल पर कोई नियंत्रण नहीं दिख रहा था। भारतीय ओपनरों को भी अपनी भूमिका समझनी होगी।



लोकेश राहुल को अपने प्रदर्शन में सुधार लाना होगा ताकि टीम को एक अच्छी शुरुआत मिल सके। उन्हें कमजोर गेंदों का इंतजार करना चाहिए और स्ट्राइक रोटेड करने पर भरोसा जताना चाहिए। लंबे समय बाद वापसी कर रहे रैना ने कुछ अच्छे हाथ दिखाते हुए फॉर्म में होने के संकेत दिये। उन्हें अच्छी शुरुआत को बड़ी पारी में बदलना होगा।



परवेज रसूल और युजवेन्द्र चहल के सामने खुद को साबित करने की चुनौती







पहले ट्वेंटी-20 से पदार्पण कर रहे परवेज रसूल ने भी खासा निराश किया। हालांकि युवा युजवेन्द्र चहल ने अपने खेल से जरूर प्रभावित किया। अनुभवी अश्विन और जडेजा की अनुपस्थिति में इन दोनों खिलाड़ियों के पास शानदार मौका है कि वे यहां बेहतरीन प्रदर्शन कर अपना स्थान सुरक्षित करें।


गेंदबाजी में वनडे सीरीज में भारत की 2-1 से जीत में प्रभावित करने वाले ऑलराउंडर पांड्या और बुमराह के प्रदर्शन को खराब तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उन्हें विकेट निकालने वाली गेंदें डालनी होंगी। 



अनुभवी आशीष नेहरा पहले मैच में जरूर कुछ मंहगे साबित हुए लेकिन वह कभी भी वापसी करने में सक्षम हैं और उनकी मौजूदगी मनोबल बढ़ाने वाली रहेगी। कामचलाऊ गेंदबाज के रूप में रैना हमेशा से हिट रहे हैं और कप्तान विराट को उनका पूरा उपयोग करना होगा।




मोर्गन और स्टोक्स से रहना होगा सावधान





दूसरी तरफ मेहमान इंग्लिश टीम के लिए पिछली दोनों सीरीज गंवाने के बाद ट्वेंटी-20 सीरीज में जीत के साथ शुरुआत करना निश्चित रूप से मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने वाला रहा। 




हालांकि टीम के खिलाड़ियों की चोटों ने भी उसकी मुसीबत बढ़ा भी दी है। ओपनर एलेक्स हेल्स चोट के चलते सीरीज से बाहर हो गए है वहीं लेफ्टआर्म स्पिनर डेविड विली को कंधे में चोट है।



भारतीय गेंदबाजों को मेहमान कप्तान इयोन मोर्गन, जेसन रॉय, जो रूट, मोइन अली से जहां सावधान रहने की जरूरत है वहीं मैच अपने कब्जे में करने के लिए इनके विकेट जल्द निकालने की कोशिश करनी होगी। 



मोर्गन ने पिछले मैच में कप्तानी पारी खेलते हुए शानदार अर्धशतक जड़ा था। मेहमान गेंदबाज भी शानदार लय में हैं और गेंदबाज क्रिस जॉर्डन और टाइमल मिल्स अहम रहेंगे। टीम इंडिया को ऑलराउंडर बेन स्टोक्स से भी अतरिक्त रूप से सावधान रहना होगा।


टीम इस प्रकार है-


भारत-

विराट कोहली (कप्तान), केएल राहुल, सुरेश रैना, युवराज सिंह, महेंद्र सिंह धौनी, मनीष पांडे, हार्दिक पांड्या, परवेज रसूल, आशीष नेहरा, युजवेंद्र चहल, जसप्रीत बुमराह, मनदीप सिंह, ऋषभ पंत, भुवनेश्वर पंत, अमित मिश्रा।


इंग्लैंड-

इयोन मोर्गन (कप्तान), जेसन रॉय, सैम बिलिंग्स, जो रूट, बेन स्टोक्स, जोस बटलर, मोईन अली, क्रिस जॉर्डन, लियाम प्लंकेट, आदिल रशीद, टी मिल्स, जोनाथन बेयरस्टॉ, जैक बॉल, लियाम डॉसन, डेविड विले।




सोर्स:लाइव हिंदुस्तान 
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सदी के दो महान टेनिस खिलाड़ियों के बीच आज ऑस्ट्रेलियन ओपन का खिताबी जंग होने जा रहा है। टेनिस प्रेमियों को ग्रैंडस्लैम के इस ड्रीम फाइनल का बेसब्री से इंतजार है।




2011 फ्रेंच ओपन के बाद फेडरर और नडाल पहली बार किसी ग्रैंडस्लैम के फाइनल में आमने-सामने होंगे। वहीं मेलबर्न में दोनों एक-दूसर के खिलाफ आठ साल बाद ऑस्ट्रेलियन ओपन की ट्रॉफी पर कब्जा करने उतरेंगे।





17 बार के ग्रैंडस्लैम चैंपियन फेडरर पांच साल से तो नडाल तीन साल से कोई ग्रैंडस्लैम खिताब नहीं जीत पाए हैं। फेडरर ने कुल 17 ग्रैंड स्लेम सिंगल्स खिताब जीते हैं, वहीं नडाल 14 ग्रैंड स्लैम खिताब अपने नाम कर चुके हैं।







नडाल और फेडरर नौवीं बार किसी ग्रैंड स्लैम के फाइनल में भिड़ेंगे। अब तक दोनों के बीच हुए ग्रैंड स्लैम फाइनल में 6 बार नडाल ने बाजी मारी, जबकि फेडरर दो बार ही जीत पाए।





सोर्स:न्यूज़ २४ 
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हमको किसके गम ने मारा ये कहानी फिर सही. आज तो सुनो ये घिनही कहानी गम की. कसम से लार न चू जाए तो कहिना. बीग बीग बबल चबा कर मुंह से गुब्बारा फुलाने में बड़ा मजा आता है. वो फुग्गा हाथ से पकड़ के खींचो तो मम्मी एक कंटाप मारती थी. किसी की कुर्सी पर चिपका दो तो परलय हो जाए ऐसा खौफ च्युइंग गम का. 



लेकिन दुनिया में एक ऐसी जगह है जहां च्युइंगम चिपकानों वालों को कंटाप नहीं पड़ता, उनकी कद्र होती है. ये दीवार है अमेरिका के शहर सीटेल में.



तो भाईसाब ये दीवार नहीं टूटेगी. न जी न, अंबुजा सीमेंट से नहीं बनी है. ये बनी है ढेर सारे च्युइंग गम से. ऐसा ही लगता था इसे देख कर. अब से कुछ रोज पहले. इस दीवार पर पूरे 20 साल तक इस पर खाए चबाए च्युइंगम चिपकाने का महापर्व चलता रहा. 




1993 से शुरू हुआ था ये सिलसिला. अब तक चलता रहा था. जैसे जैसे इस पर लोड बढ़ता गया. यहां ढेर सारे टूरिस्ट आते गए.







3 नवंबर 2015 को अथॉरिटीज ने ऐलान कर दिया. कि देखो भाई दीवार की ईंटे गल रही हैं इसकी चीनी की वजह से. 10 नवंबर को सफाई शुरू हुई. 130 घंटे चिपक कर चली सफाई. जिसमें 1070 किलो चिपका हुआ च्युइंगम निकला. 







फिर अगले दिन पेरिस अटैक में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए इस पर नए सिरे से च्युइंगम चिपकाना शुरू हो गया.





सोर्स:लल्लनटॉप 
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पिछले दिनों हमने कई दिल पिघला देने वाली तस्वीरें देखीं जिसमें भारत के दूर-दराज़ के इलाके के लोग अपनों की लाश को अपने कंधों पर लादे लिए जा रही हैं। 


कहीं किसी मरीज़ को टोकरी में भरकर ले जाया जा रहा है तो कहीं किसी लाश को केवल इसलिए मोड़ दिया गया ताकि उसे कंधे पर टांग कर ले जाने में आसानी हो।



ऐसा नहीं है कि ये सारी चीज़ें अभी शुरू हुई हैं, इन इलाकों का हमेशा से यही हाल है। सरकारें बदलती रही हैं लेकिन इन इलाकों की तस्वीर अभी तक नहीं बदल पाई है। लेकिन जलपाईगुड़ी के करीमुल हक़ जैसे लोग एक उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं। करीमुल हक़ जिन्हें लोग 'एम्बुलेंस दादा' के नाम से भी जानते हैं। इन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया जाने वाला है।



क्या है 'एम्बुलेंस दादा' की कहानी





करीमुल हक़ पिछले कई सालों से मरीज़ों को अपनी मोटर बाइक पर बिठाकर अस्पताल पहुंचाने का काम कर रहे हैं। करीमुल 52 साल के हैं और चाय के बागान में काम करते हैं। उनके इस काम की वजह से ही लोग उन्हें 'एम्बुलेंस दादा' बुलाने लगे हैं। 



करीमुल बताते हैं कि 1995 में जब उनकी मां समय से इलाज न मिलने के कारण गुज़र गईं तो उन्होंने लोगों की मदद करने के बारे में सोचा।




करीमुल ये काम बिल्कुल फ्री में करते हैं। सबसे पहले उन्होंने एक बाइक ख़रीदी उसके बाद उन्होंने उसपर आगे-पीछे एम्बुलेंस लिखवा लिया। वो 24 घंटों में कभी भी मदद के लिए मौजूद रहते हैं। 



उनका मोबाइल नंबर सभी के पास है। वो कहते हैं कि वो लोगों की सेवा सच्चे दिल से करते हैं और उन्होंने इसके बदले में कभी किसी से कुछ नहीं मांगा।





जलपाईगुड़ी के प्राइमरी हेल्थ सेंटर में काम करने वाले डॉक्टर हितेन बर्मन कहते हैं कि अब गांव में कभी किसी को कोई भी दिक्कत होती है तो वो पहले करीमुल के पास जाता है। 



सभी को लगता है कि उनकी हर परेशानी का हल करीमुल के पास है। करीमुल की इस पहल को देखकर कई डॉक्टरों ने करीमुल को फर्स्ट एड देना भी सिखा दिया है।









कई बार तो ऐसा भी होता है जब करीमुल डॉक्टर से फ़ोन पर बात करके उसे मरीज़ का सारा हाल बताते हैं और फिर डॉक्टर जो कहता है वो उस हिसाब से मरीज़ को दवा आदि दे देते हैं। उन्हें कई दवाएं आदि कई अस्पतालों के माध्यम से भी मुहैया करवाई गई हैं।




इस खबर को सुनने के बाद से ही पूरे गांव में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है। किसी ने कभी नहीं सोचा था कि पश्चिम बंगाल के एक छोटे से दूर-दराज़ के गांव के किसी व्यक्ति को इतना बड़ा सम्मान मिलेगा। 



करीमुल ने अपने इस काम के बदले कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं की। करीमुल एक गरीब परिवार से आते हैं और उन्होंने बाइक भी लोन पर ली थी।






करीमुल कोई बड़ी गाड़ी नहीं ले सकते थे। इसलिए उन्होंने बाइक को चुना साथ ही ये खराब से खराब रास्ते पर भी आराम से चल सकती है। करीमुल ने ये तय किया है कि अबसे किसी भी व्यक्ति को सही समय पर इलाज न मिल पाने की वजह से नुक्सान नहीं होना चाहिए।




करीमुल कहते हैं कि वो एक मुसलमान हैं लेकिन वो सभी की मदद करते हैं क्योंकि सभी लोग एक ही ऊपरवाले की दें हैं। उनके मन में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है। 



वो कहते हैं कि वो अपनी मां का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें विश्वास है कि वो उन्हें आज भी देख रही हैं और अपना आशीर्वाद दे रही हैं।




इसके साथ ही वो कहते हैं कि शायद उन्हें ऊपरवाला ये सब करते हुए देख रहा था और उन्हें अब अपने काम का फल मिला है।



​करीमुल हक़ साहब को हम  सलाम करते है। इस देश को ऐसे ही नेक दिल लोगों की ज़रूरत है। अगर ऐसे लोगों की संख्या कुछ बढ़ जाए तो ये दुनिया बहुत अच्छी हो जायेगी।




सोर्स:फिरकी.इन 
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बिग बॉस-10 के ग्रांड फिनाले में अभी 2 दिन ही शेष बचे हैं, लेकिन सरप्राइज ये है विनर का नाम आउट हो चुका है? एक एंटरटेनमेंट पोटर्ल के मुताबिक, बिग बॉस शो मेकर्स पहले ही सीजन-10 के विजेता के नाम घोषित कर चुके हैं। 






ये और कोई नहीं बल्कि एक आम आदमी और सबका चहेता मनवीर गुर्जर हैं। हां, आप ठीक पढ़ रहे हैं। एक एंटरटेनमेंट पोटर्ल के मुताबिक, कॉमनर कंटेस्टेंट शो जीत चुका हैं और उसे कीमती ट्रॉफी के साथ लगभग 40 लाख रुपए का नगद पुरस्कार दिया जा चुका हैं।







मनवीर पहले ही एक स्टार बन गया था और यह काफी पहले ही स्पष्ट हो गया था। जब उन्होंने अपने दोस्त मनु पंजाबी के साथ मुंबई के एक मॉल का दौरा किया था। 





 हालांकि अब तक शो मेकर्स और चैनल ने ये स्पष्ट नहीं किया है कि मनवीर बिग बॉस-10 का खिताब जीत चुके हैं। इसके लिए हमें ग्रांड फिनाले तक का इंतजार करना होगा। जो इस रविवार को यानी 29 जनवरी को होगा। इसकी अपडेट के लिए हमारे साथ जुड़े रहे।









क्या सच होगी मोनालिसा की बात?


भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा ने टीवी रियलिटी शो बिग बॉस 10 से बाहर आने के बाद कहा था कि मनवीर या मनु ही शो के विनर बनेंगे। मोना की बातें सच होती दिख रही हैं। 




ग्रैंड फिनाले के पहले कयासों का दौर जारी है, जिसमें मनवीर गुर्जर सबसे आगे चल रहे हैं। मनवीर शो के शेष तीन फाइनलिस्ट्स लोपामुद्रा राउत, वीजे बानी और मनु पंजाबी को पीछे छोड़ते दिख रहे हैं।




सोर्स:पत्रिका.कॉम 
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दिल्ली की जमीन ने कई इतिहास के पन्नों की दस्तां लिखी और देखी है। इसनें कितने शासकों के शासन की जहां शुरूआत को देखा है तो वहीं इनके अंत की खूनी लड़ाईयों को भी नजदीक से महसूस किया है। यहां पर मौजूद ऐतिहासिक किले इस बात के गवाह बने हुए है। 




आज हम आपको ऐसे ही ऐतिहासिक किले के बारे में बता रहें हैं, जो अपने ही आप में अजर और अमर है। इस किले की खास बनावट के कारण कोई भी दूसरा शासक इसे जीतने की कल्पना भी नहीं कर पाया। इसी कारण इसका नाम अजेय दुर्ग पड़ा। लोहागढ़ का किला राजस्थान के भरतपुर में स्थित है। अंग्रेजों ने भी इस किले पर जीत हासिल करने के लिए कई बार तोपों से आक्रमण किया, लेकिन फिर भी इस किले को कोई औजार तक भेद नहीं पाया है।








जाटों की दृढ़ता की मिसाल देता यह किला 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल के द्वारा बनवाया गया था। महाराजा सूरजमल ने भरतपुर में ही रहकर रियासत फलाई थी। 



महाराजा सूरजमल ने एक ऐसे किले की कल्पना की थी जो काफी कम लागत पर ऐसी मजबूती के साथ तैयार हो जाए, जिसमें बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा उपयोग किये जानें वाले तोपों तथा बारूदो का भी कोई असर न हो। जिसकी दीवारों को बारूद के गोले भी भेद ना पाएं।




इस किले के चारों ओर बनी मजबूत दीवार के कारण इस किले को राजस्थान का सिंहद्वार भी कहा जाता है। अंग्रेजों ने इस किले पर कई बार हमला करने की कोशिश की और इसे धवस्त करने के लिए उन्होनें उन्होंने इस पर कई बार तोपों के गोलों और बारूदों का भी इस्तेमाल किया, पर यह सभी वहां की मिट्टी पर समाते गए और अग्रेजों के कोई भी अस्त्र-शस्त्र इस किले को भेद नहीं पाए। जिससे थक-हारकर अंग्रेज वहां से भाग गए।





सोर्स:वाह गज़ब 
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सितंबर 1977, दिल्ली का कॉन्स्टीट्यूशन क्लब. जनता पार्टी ने एक तीन दिन की कॉन्फ्रेंस बुलाई. मुद्दा एक. जाति का दंश कैसे खत्म किया जाए समाज से. कॉन्फ्रेंस में बोलने आए प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई की कैबिनेट के एक मंत्री राज नारायण. राज नारायण उन दिनों के सबसे बड़े हीरो थे. समाजवादी नेता. जिसने इंदिरा गांधी को हराया. 


1971 में राज नारायण राय बरेली से चुनाव लड़े. जब डब्बा खुला और वोट गिने गए, तो इंदिरा के हिस्से आए 1 लाख 83 हजार. और राज नारायण रह गए 71 हजार पर. मगर इस बनारसी ने लड़ाई खत्म नहीं मान ली. पहुंच गए कोर्ट. बोले, प्रधानमंत्री ने सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया है. 1975 में जस्टिस सिन्हा ने सुनाया फैसला. 


इंदिरा गांधी का चुनाव इनवैलिड हो गया. कुछ ही दिनों में इमरजेंसी लग गई. जब हटी तो फिर चुनाव हुए. साल था 1977. फिर रायबरेली की सीट पर दोनों ताल ठोंक रहे थे. इस बार जनता ने नया फैसला सुनाया. डब्बे खुले. इंदिरा गांधी को मिले 1 लाख 22 हजार. और राज नारायण को 1 लाख 77 हजार.





तो अपने कभी बेबाक तो कभी बेतुके बयानों के लिए मशहूर राज नरायण का उन दिनों चरचराटा था. वह कॉन्फ्रेंस के मंच पर दलित हितों की तमाम बातें करते रहे. मगर एक गलती कर गए. 


कांग्रेसियों की तरह वह भी दलितों के लिए गांधी का दिया शब्द हरिजन इस्तेमाल करते रहे अपने भाषण के दौरान. सामने एक लड़की बैठी थी. 21 साल की. डीयू से लॉ कर रही थी. पहला साल था. उसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ. उसकी बारी आई बोलने की. उसने राज नारायण, जनता पार्टी और कांग्रेस, सबको कोसा. 


बोली, ‘गांधी ने हमारी बेइज्जती करने के लिए ये शब्द बनाया. हरिजन. ईश्वर का बच्चा. अगर हम हरिजन हैं तो देवदासियों के बच्चों का क्या. जो ईश्वर की गुलाम मानी जाती हैं. और फिर पंडों के नाजायज बच्चे जनती हैं. वे भी तो हरिजन हुए न. शब्दों के हिसाब से.’


मायावती यहीं नहीं रुकीं. बोलीं, हमारे भगवान बाबा साहेब अंबेडकर हैं. उन्होंने कभी हरिजन शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. संविधान बनाया तो लिखा, अनुसूचित जाति. तो फिर गांधी के चमचे. सब सवर्ण हमें बार बार हरिजन क्यों बोलते हैं.


मायावती के इस तेजाबी भाषण के बाद वहां मौजूद दलित समाज उत्तेजित हो गया. राज नारायण मुर्दाबाद और जनता पार्टी मुर्दाबाद के नारे लगने लगे. 


समाज के वहां मौजूद तमाम प्रतिनिधि इस लड़की को बधाई देने पहुंचे. उनमें एक नए बने संगठन के लोग भी थे. इसका नाम था बामसेफ. यानी बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज इंप्लाईज फेडरेशन. इसे एक साल पहले एक पंजाबी दलित ने शुरू किया था. उनका नाम था कांशीराम.



भीम राव अंबेडकर समाजिक परिवर्तन स्थल, लखनऊ. फोटो क्रे़डिट: Reuters




कांशीराम पूरे देश में घूम घूमकर दलित समाज के सरकारी कर्मचारियों को संगठित कर रहे थे. ऐसे ही एक दौरे के बाद वह दिल्ली लौटे तो उन्हें बामसेफ के लोगों ने मायावती के बारे में बताया. 


और तब कांशीराम सर्दियों की एक शाम इंदर पुरी के उस घर में पहुंच गए, जहां प्रभु दास की बेटी मायावती अपने परिवार के साथ रहती थी. मायावती पढ़ाई कर रही थीं. आईएएस के एग्जाम के लिए.




कांशीराम ने कहा, क्यों बनना चाहती हो आईएएस? मायावती बोलीं, दलित समाज की सेवा के लिए. कांशीराम ने समझाया, ‘अधिकारी तो बहुत बन गए. कितना बदले हालत. नेता बनो. सत्ता में आओ. अधिकारियों को भी सत्ताधारी नेताओं की ही सुननी होती है.’ और उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है.


राष्ट्रीय दलित प्रेरण स्थल, नोएडा में मायावती. साल 2011. क्रेडिट: Reuters




मायावती कांशीराम के साथ जुड़ीं. 1984 में बीएसपी बनी. वह चुनाव लड़ीं. यूपी के कैराना से. पहले ही चुनाव में बिना संसाधनों वाली बीएसपी को कैराना में 44 हजार वोट मिले. 



फिर 1985 में कांशीराम ने मायावती को बिजनौर लोकसभा उपचुनाव में लड़वाया. वह फिर हारीं. 1987 में हरिद्वार से बाई इलेक्शन लड़वाया. वह हारीं, मगर 1 लाख से भी ज्यादा वोट पाए. 



और 1989 में मायावती ने अपने सपने को हकीकत में बदलने वाला पहली सीढ़ी चढ़ने में कामयाबी पा ली. उन्होंने लोकसभा चुनावों में बिजनौर सीट जीत ली. 9 हजार वोटों से. जबकि पूरे प्रदेश में जनता दल की लहर थी.


फिर मायावती, कांशीराम और बीएसपी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.


पर इतिहास लिखने वाले जब भी मुड़कर देखेंगे, उस शाम को जरूर देखेंगे. जब एक लड़की ने एक भाषण दिया. और फिर उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई.


2011 में चुनाव प्रचार के दौरान लखनऊ का माहौल, क्रेडिट: reuters




सोर्स:लल्लनटॉप 

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शाहरुख खान की फिल्म 'रईस' का निर्देशन राहुल ढोलकिया ने किया है. फिल्म में शाहरुख रईस आलम की भूमिका में हैं. उनके अलावा नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी, माहिरा खान, अतुल कुलकर्णी, जिशान और नरेन्द्र झा महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं. 



शाहरुख खान की फिल्म रईस की कहानी 1980 के दौर में गुजरात के इर्द गिर्द घूमती है। यह फिल्म रईस नाम के एक शख्स के बारे में बताती है। जो जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता है।



उसकी लाइफ एक सिंपल फंडे पर चलती है जो कि उसकी मां यानि अम्मी जान ने दिया है। किंग खान की यह फिल्म रईस की जिंदगी में आते उतार-चढ़ाव को दिखाती है। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह जीरो से शुरू होकर रईस एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लेता है।



फिल्म की कहानी गुजरात के फतेहपुर से शुरू होती है जहां रईस का बचपन अपनी मां के साथ गरीबी में गुजर रहा है, गरीबी के चलते रईस बचपन में ही शराब तस्करी के धंधे में घुस जाता है. फिल्म में आगे शुरू होता है शराब के लिए गुटों में झगड़ा, राजनीतिक दलों की राजनीति, षड़यंत्रो का सिलसिला और चोर-पुलिस का खेल, तो ये था कहानी का सार.




खामियों की बात करें
तो 'रईस' की कहानी बेहद साधारण है जिसमें कोई अलग पहलू नजर नहीं आता. दूसरी बात यह रईस के बचपन के दृश्य आपके मन में उसके लिए हमदर्दी पैदा नहीं करते बल्कि फिल्म की लंबाई बढ़ाते हैं. 




महिरा के साथ शाहरुख के दृश्य भी फीके लगते हैं क्योंकि न तो ये कोई भावना को जन्म देते हैं और न ही इनका फिल्म की स्क्रिप्ट में कोई योगदान है और महिरा का अभिनय भी मुझे हल्का ही लगा.




अब कुछ खूबियां. 'रईस' की पहली और सबसे बड़ी खूबी हैं शाहरुख खान जिनके व्यक्तित्व का करिश्मा इस फिल्म को दमदार बनता है. फिल्म के किसी भी दृश्य में शाहरुख ने अपने किरदार से हिलने की जरा सी भी गलती नहीं की है. अपनी चाल-ढाल,डायलॉग डिलिवरी और हाव-भाव से वह फिल्म की खामियों की तरफ आपका ज्यादा ध्यान जाने नहीं देते. शाहरुख के प्रशंसकों के लिए यह फिल्म एक ट्रीट साबित हो सकती है.






फिल्म के दूसरे मजबूत स्तंभ हैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी जो अपने बहते अभिनय से फिल्म का दूसरा सिरा संभाले हुए हैं और इनके साथ जिशान और नरेंद्र झा फिल्म के बाकी सफर को आसान बनाते हैं. 'रईस' के डायलॉग आपको ताली और सीटियां बजाने पर मजबूर कर देंगे. स्क्रिप्ट कसी हुई है और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को और रोचक बनता है, दृश्यों का फिल्मांकन प्रभावशाली है जिसके लिए निर्देशक और सिनेमेटोग्राफर दोनों ही तारीफ के पात्र हैं.




कहानी 





रईस का नाम बचपन से रईस था. क्योंकि एक दिन वो रईस बनने वाला था. वैसे एक दिन तो वो स्मगलर भी बनने वाला था. लेकिन वो हीरो था इसलिए उसका नाम रईस रखा गया. 




उसकी अम्मी जान कहा करती थीं, कोई भी धंधा छोटा नहीं होता. चाहे वो स्मगलिंग का ही हो. इसलिए रईस ने दारू की स्मगलिंग शुरू कर दी. लोगों को खूब बेवकूफ बनाया. काला धन बनाया. वो भी गुजरात में रहकर, बताओ! फिर गरीबों को घर देने के नाम से सारा काला धन सफ़ेद कर लिया. लेकिन वो शाहरुख़ खान है, इसलिए उसका सब कुछ सफ़ेद होगा, कुरते की तरह.



हां तो रईस, रईस बहुत थे. लेकिन चश्मा एक ही पहने, जवानी से लेकर मौत तक. उसका एक बार लेंस चटक गया, तो जिसने तोड़ा उसी ने लेंस बदलवाकर दिया. और जिस पावर का दिया, रईस के चश्मे का नंबर फिर वही हो गया, लेकिन फ्रेम नहीं बदला. चश्मे से याद आया, काजल जाने कौन सा लगाता था, ससुरा कभी फैला नहीं. हमको भी वही ‘स्मज फ्री’ वाला चाहिए.




खैर. तो रईस के घर में नेटफ्लिक्स कनेक्शन था. अब पूछो उस समय जब मोबाइल भी नहीं होते थे, तब नेटफ्लिक्स कैसे मिला. तो बदले में हम पूछेंगे कि उसने ‘नार्कोस’ कैसे देखा. काहे से फिल्म का प्लॉट कुछ चुराया सा लग रहा था. पूरा नहीं, लेकिन काफी रेफरेंस. जैसे धंधे के पैसे गरीबों में बांटना, उनका सपोर्ट जीतना. 



छोटे बच्चों को अपना खबरी बनाना जिन पर कोई शक न करे. फिर विधायकी का इलेक्शन लड़कर जीत जाना. उनको काम देना और उनके बीच हीरो बन जाना. फर्क सिर्फ ये है कि हमारा डॉन गरबा भी कर लेता है, पतंग उड़ा लेता है, क्रिकेट खेल लेता है, गा लेता है और फ़्लर्ट भी कर लेता है.




रईस पहले जयराज के यहां नौकरी करता था. फिर उसने कहा, खुद का धंधा करते हैं. धंधा करने के लिए क्या चाहिए – बनिए का दिमाग और मियांभाई की डेयरिंग. ‘बनिए’ वाली बात जातिवादी थी. 



फेसबुक पर पोस्ट कर देते तो बचते नहीं. डेयरिंग बहुत थी. पैसा नहीं था. कूटे गए. खूब पिटे. अश्मा-चश्मा कुल टूट गया. लेकिन तोड़ने वाला इम्प्रेस हो गया. बोला लो, लाख रुपया, करो धंधा! हैपेन्स ओनली इन बॉलीवुड. बाद में उसी चश्मे से उसकी जान ली. चश्मे से किसी का खून कैसे करते हैं, ये देखने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.




अब बात ‘आसिया’ की. यानी फिल्म की हिरोइन. वो रईस के इम्प्रेस थी. क्योंकि रईस का काजल स्मज फ्री था. उसके बाद रईस ने आसिया की पतंग भी काट दी. तो प्यार हो गया. 



आसिया ने रईस के साथ खूब गाने गाए. एक मिलने के बाद, एक निकाह के बाद, एक बच्चा होने के बाद. बच्चे भगवान के भेजे गए दूत होते हैं. ये बात रईस में साबित हुई है. क्योंकि आसिया का कभी बेबी बंप दिखा ही नहीं. बस रईस से बोला ‘आपको कोई अब्बू बुलाए तो कैसा लगेगा?’, और फिर बच्चा हो गया. जमाना एक्सप्रेस डिलीवरी का है.




अब बात नवाजुद्दीन की. यानी IPS अफसर मजमूदार. पुलिसवाला बनने के लिए क्या लगता है? एक-आध डायलॉग और रे बैन के एविएटर्स. दोनों ही थे. लेकिन ट्रांसफर होता रहा. मतलब, ऑबवियसली. कड़क और ईमानदार अफसर के साथ और होता ही क्या है. लेकिन ट्रांसफर के बाद भी वो रईस को न छोड़ने की कसम खाता है. और अंत में भी वही हुआ जो होना था. मन की करके भी वो दुखी होता है.




रईस तो बस गुंडे मवालियों को मारता था. लेकिन एक नासपीटे ने उसके माल में RDX मिला दिया था. जिससे देश भर में धमाके हुए. बहुत लोग मरे. बस इसी गलती की सजा चुकानी पड़ी उसको. वरना आदमी ठीक था. अब कहोगे कहानी बता दी.




बात माहिरा खान की. समझ नहीं आया कि इतने कम और बुरे रोल के लिए किसी को लेना था तो पाकिस्तानी हिरोइन लेकर अपनी टेंशन क्यों बढ़ाई? गाने और डांस के लिए किसी को भी ले लेते. माहिरा टैलेंटेड बहुत हैं, एक शब्द बोलने में भी तीन एक्सप्रेशन दे लेती हैं. रईस से बात बात पर रूठना उनका फेवरेट काम है. लिपस्टिक लगाना और गालों पर लाली मलना कभी नहीं भूलतीं.




फिल्म लंबे वीकेंड के पहले रिलीज की गई है. ताकि देखने के बाद चार दिन इसे भुलाने में लगा सकें.




समझ ही गए होंगे कि फिल्म पकाऊ है. बेसिकली इसलिए, क्योंकि कहानी में कुछ भी नया नहीं है. ये सब हम बॉलीवुड की अलग-अलग फिल्मों में देख चुके है. 



रईस का चरित्र एक अच्छे विलेन (हीरो) और नवाज का किरदार एक अच्छे हीरो (विलेन) के रूप में कोई गहरी छाप छोड़ने में नाकाम हैं. शाहरुख़ बस शाहरुख़ हैं, और फिल्म एक बार फिर उनके स्टारडम को भुनाने में लग जाएगी.



संगीत की बात करें तो 'उड़ी उड़ी जाए', 'जालिमा', 'लैला मैं लैला' जैसे गाने पहले ही हिट हो चुके हैं. एक और बात यह कि फिल्म 70 और 80 के दशक के सिनमा से प्रभावित है और इसका ट्रीटमेंट भी उसी तरह किया गया है क्योंकि यह कहानी 80 के दशक में घटती है. 



यह फिल्म आपको लार्जर दैन लाइफ सिनेमा और उनके नायकों की एक बार फिर याद दिलाएगी जहां बहुत सा मनोरंजन, एक दबंग हीरो और बेहतरीन गाने देखने को मिलते थे. ठीक उसी तरह शाहरुख खान की फिल्म में मनोरंजन है पर वास्तविकता की झलक के साथ यानी हर चीज यहां ओवर दी टॉप या बनावटी नजर नहीं आएगी. तो जाइए फिल्म देखिए??????



रईस का ट्रेलरः









सोर्स:लल्लनटॉप NDTV 
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