जहां एक तरफ बिहार में 12वीं के नतीजों में हुई धांधली ने वहां की शिक्षा व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी। वहीं, उसी राज्य में ही एक गांव ऐसा भी है, जहां के बच्चे अपनी मेहनत के बलबूते पर अपना मुकाम हासिल कर रहे हैं। बिहार के गया जिले का पटवाटोली गांव बुनकरों की एक बस्ती है। यह गांव बिहार ही नहीं, देशभर में हर साल चर्चा का विषय बना रहता है।
पटवाटोली गांव बुनकरों की आबादी के लिए जाना जाता है। 1992 से यह गांव ‘IIT हब’ बनकर उभरा है। यहां की 10 हजार की आबादी में से अब तक 300 से ज्यादा इंजीनियर निकल चुके हैं। इनमें से कई दुनिया के अलग-अलग देशों की बड़ी कंपनियों में उंचे पदों पर कार्य कर रहे हैं।
इस साल इस गांव के 20 छात्रों ने आईआईटी परीक्षा में कामयाबी हासिल की है। कई बच्चों के माता-पिता ने खुद भूखे पेट रहकर अपने बच्चों को पढ़ाया है। आज वह अपने बच्चों की सफलता से फुले नहीं समां रहे हैं।
मूलभूत सुविधाओं से परे अपना जीवन यापन कर रहे इस गांव के बच्चों को इंजीनियर बनने की प्रेरणा जीतेंद्र प्रसाद से मिली। जीतेंद्र प्रसाद सबसे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जो पटवाटोली से 1992 में आईआईटी में सिलेक्ट हुए। जितेंद्र प्रसाद 2000 में नौकरी करने अमेरिका चले गए।
उनकी इसी सफलता ने पटवाटोली के छात्रों में इंजीनियर बनने की ललक जगाई कि मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। बच्चों के परिवारवालों ने भी प्रसाद की कामयाबी को देख अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना शुरू किया। शिक्षा के महत्व को जाना।
पूर्व इंजीनियर छात्र भी भविष्य में इंजीनियर बनने की चाह रखने वाले बच्चों की सहायता करते हैं। इसी दिशा में पटवाटोली के पूर्व इंजीनियरिंग छात्रों ने मिलकर नवप्रयास नाम से एक संस्था बनाई, जो IIT की परीक्षा देने वाले छात्रों को पढ़ाई में मदद करती है।
इस पटवाटोली गांव ने आर्थिक मंदी का दौर भी देखा है। आर्थिक तंगी के बावजूद भी तब से लेकर अब तक अभाव में रहने वाले पटवाटोली गांव के बच्चे लगातार अपने इलाके का नाम रौशन कर रहे हैं और कई अन्य बच्चों को भी प्रेरित कर रहे हैं।
सोर्स:TopYaps
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