loading...

know everything about naxalwad and naxalites

naxalwad and naxalites

छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली हमले में देश ने अपने 25 जवानों को खो दिया. ऐसा नहीं है कि ये नक्सलियों का पहला हमला था. पिछले कई दशकों में देश ने सैंकड़ों जवानों की शहादत सिर्फ नक्सलवाद के कारण झेली है.


 साल 2010 में 75 जवानों के खून से इन नक्सलियों ने होली खेली थी. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर ये नक्सलवाद है क्या. इसकी शुरुआत कहां से हुई थी और कौन थे इस पूरी कहानी के पीछे-



1967 में नक्सलबाड़ी से हुई थी शुरुआत

छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र के अलावा देश के कई कोने आज नक्सलवाद से जूझ रहे हैं. नक्सलवाद की शुरुआत पं. बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से हुई. चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने एक सशस्त्र आंदोलन के तौर पर साल 1967 में इसे जन्म दिया. 


ये दोनों भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता था. मजूमदार, चीनी शासक माओ त्से तुंग का बड़ा फैन बताया जाता है. नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ ये किस्सा आज नक्सलवाद के नाम का नासूर बन गया है.



naxalwad and naxalites 
फोटो: ट्विटर/@epicgrams


चारू मजूमदार और कानू सान्याल के विद्रोह की दास्तां

चारू मजूमदार सिलीगुड़ी में पैदा हुआ था. साल 1962 में विद्रोह के कारण उसे जेल भी जाना पड़ा था. जहां उसकी मुलाकात कानू सान्याल से हुई थी. सान्याल का जन्म दार्जिलिंग में हुआ. कानू और मजूमदार का मानना था कि देश में मजदूरों का सरकारी नीतियों और नेताओं के कारण शोषण हो रहा है. इस शोषण को सशस्त्र संघर्ष से ही खत्म किया जा सकता है. जेल से बाहर आने के बाद दोनों ने आंदोलन को व्यापक तौर पर जारी रखा.



1971 के बाद भटक गया आंदोलन

नक्सलबाड़ी गांव में साल 1967 में हुए आंदोलन की अगुवाई कानू सान्याल ने की. बाद में दोनों के कानू और सान्याल के बीच में मतभेद हो गया. साथ ही कम्यूनिस्ट पार्टी में फूट पड़ गई. कई धड़े बन गए. 1972 में मजूमदार की मौत हो जाने के बाद तो पूरा आंदोलन दूसरी दिशा में मुड़ गया. 


धीरे-धीरे इसने आतंक की शक्ल ले ली. कई राज्यों में अलग-अलग गुटों की अपनी सत्ताएं चलती हैं. बता दें कि साल 2010 में कानू सान्याल ने खुद को फांसी लगा ली ती.



कई देशों के नक्सली एक दूसरे से जुड़े हैं

नक्सलियों के बीच बाद में एक समझौता हुआ और कई दलों ने मिलकर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी बना ली. बता दें कि अमेरिका ने इस संगठन को आतंकवादी संगठन की सूची में रखा है. ये संगठन दूसरे देशों के कम्युनिस्ट संगठनों के साथ मिलकर भारत में आतंक की जड़ें मजबूत कर रहे हैं. नेपाल की सीपीएन, बांग्लादेश की पीबीएसपी, लाल तारा ऐसी ही पार्टियां हैं जिनका भारतीय नक्सलियों के साथ गठजोड़ है और वो एक दूसरे को मदद भी करती हैं.



कैसे मिलता हैं संसाधन

नक्सली अपने संसाधनों को जुटाने के लिए बड़े-बड़े बिल्डरों, ठेकेदारों और पूंजीपतियों से उगाही का काम करते हैं. हथियार इन पैसों से खरीदे जाते हैं साथ ही पुलिस और सुरक्षाबलों पर हमले कर ये नक्सली उनके हथियार लूट लेते हैं. कई बार तो ऐसी खबरें भी आती हैं कि समाज में हम सब के बीच रहने वाले लोग भी इन नक्सलियों की मदद करने लगते हैं. शायद वो भूल जाते हैं कि इन नक्सलियों हमले में हजारों बेगुनाहों की मौत हो चुकी है. हजारों सुरक्षाबल के जवान जो किसी राजनीतिक पार्टी के लिए काम नहीं करते बल्कि देश के लिए काम करते हैं उनकी जान चली जाती है.



नक्सलवाद को खत्म करने के लिए कारगर कदम की जरूरत

सुकमा में हुए हमले ने देश को एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है कि इस समस्या को अब जड़ से खत्म करना ही होगा. सरकार को इसके लिए कड़े कदम उठाने भी पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए.




सोर्स:गज़ब इंडिया


loading...

एक टिप्पणी भेजें

योगदान देने वाला व्यक्ति

Blogger द्वारा संचालित.