श्राप और शापित जैसे शब्द आपको अपने इंडिया में ही ज्यादा सुनने को मिलते हैं, लेकिन ये सब घटित भी तो यहीं होता है ज़नाब।
अब सुनने में यह फ़िल्मी ज़रूर लग सकता है, लेकिन आपको बता दें कर्नाटक के मैसूर राजवंश में पिछले 400 सालों से कोई बेटा पैदा नहीं हुआ है और इसका कारण बताया जाता है एक रानी का इस राजवंश को दिया गया श्राप ...
हां भई आज के कंप्यूटर वाले ज़माने में इसपे यकीं करना थोड़ा मुश्किल ज़रूर है, लेकिन सच्चाई को कौन झुठला सकता है दोस्त। आइए जानते हैं क्या है ये श्राप की पूरी कहानी
ये कहानी है एक श्राप की
सन् 1612 में मैसूर के राजा वडियार ने पड़ोसी राज्य श्रीरंगपट्टनम पर हमला किया और वहां के शासक तिरुमालाराजा को हरा दिया।
पराजित राजा अपनी पत्नी अलामेलम्मा के साथ तलक्कड़ नामक जगह पर जाकर रहने लगा। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। अलामेलम्मा ने अपने आभूषणों का खजाना श्रीरंगपट्टनम राजपरिवार की कुलदेवी श्रीरंगनायकी को दान कर दिया।
एक विशेष दिन श्रीरंगनायकी का श्रंगार होता और फिर ये आभूषण अलामेलम्मा के संरक्षण में आ जाते। मंदिर प्रशासन ने राजा से गुहार लगाई कि ये आभूषण उसके पास होने चाहिए।
अलामेलम्मा इसके लिए तैयार नहीं थीं, राजा ने अपने सैनिक भेजे। अमामेलम्मा ने कावेरी में छलांग लगा दी, लेकिन इससे पहले उसने श्राप दिया कि मैसूर राजवंश संतानविहीन हो जाए।
कहते हैं कि राजा को जब इसकी खबर मिली तो वह बड़ा चिंतित हुआ। फिर किसी ने उसे सलाह दी कि श्राप से मुक्ति पाने के लिए वह अलामेलम्मा की मूर्ति राजमहल में प्रतिष्ठित करवाए।
आज भी महल में इस मूर्ति की देवी के रूप में पूजा होती है, लेकिन इससे कोई खास फर्क पड़ा हो, ऐसा नहीं लगता। राजा वडियार के इकलौते बेटे की मौत हो गई थी। तब से हर एक पीढ़ी बाद मैसूर के राजपरिवार को उत्तराधिकारी के रूप में किसी को गोद लेना पड़ता है।
राजपरिवार उत्तराधिकारी के रूप में जिसे गोद लेता है वह हमेशा परिवार का ही कोई व्यक्ति होता है। इस वक्त मैसूर राजपरिवार करीब 80 हजार करोड़ रु की संपत्ति का मालिक है।
सोर्स:लाइव इंडिया
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