पुलिस से न दोस्ती भली, न दुश्मनी. उससे दूर रहने में ही भलाई है. ऐसी समझदार लागों की सीख है. तुलसीदास होते तो लिखते – पुलिस नाम का भय जो दिखावे, भूत पिशाच निकट नहीं आवे. लेकिन राजस्थान के शाहपुर में एक थाना है जहां की पुलिस को अपना भय भगाने के लिए नींबू-मिर्ची का टोटका करना पड़ रहा है.
पुलिस को डर है कि थाने पर बुरी नज़र को न भगाया गया तो पास के दिल्ली-जयपुर हाईवे पर हादसे नहीं रुकेंगे. तो इसका तोड़ ये निकाला गया कि थाने में ड्यूटी अफसर की कुर्सी के ऊपर रोज़ नींबू-मिर्ची का टोटका लटकाया जाए.
नींबू-मिर्ची के टोटके में एक काले धागे में कुछ हरी मिर्चियां और एक नींबू पिरो कर कहीं टांग दिया जाता है. लोग अकसर इसे अपने घरों या दुकानों के बाहर टांगते हैं. लोगों के बीच इस तरह का अंधविश्वास पसरा हुआ है कि इससे वो बुरी नज़र से बचे रहेंगे.
फोटोः केचप ब्लॉग
एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-जयपुर हाईवे पर 2016 के नवंबर महीने में 19 हादसे हुए जिनमें 10 लोगों की जान गई. इसके बाद दिसंबर महीने में 14 हादसे हुए और 6 लोगों की मौत हुई. थाना इंचार्ज वीरेंद्रसिंह राठौड़ का कहना है कि हादसों से परेशान होकर बड़े बुज़ु्र्गों से सलाह की गई.
फिर थाने में बने भैंरूबाबा मंदिर को सामने रखे कबाड़ वाहन हटाए गए (थानों में अकसर ऐसी गाड़ियों का अंबार लगा रहता है जो किसी मामले के चलते थाने में लाई जाती हैं लेकिन उनके मालिक उन्हें छुड़ा कर नहीं ले जाते). इसके अलावा थाने में ड्यूटी अफसर की कुर्सी के उपर रोज़ नींबू-मिर्च लटकाना शुरू किया गया. दावा किया गया है कि इसके बाद हादसे कम हुए हैं. बताया गया है कि जनवरी के पहले 15 दिनों में किसी हादसे की खबर नहीं आई.
हमें इन पुलिसवालों को ज्ञान देने की कोई इच्छा नहीं है. नींबू-मिर्च के मामले में. हम इस आदत को समझना चाहते हैं जो भारत में करोड़ों लोगों को है. ये पुलिस वाले भी उसी समाज से आते हैं जहां से बाकी सब लोग. वे पुलिस में भर्ती होते हैं तो अपने धार्मिक, जातीय, शैक्षणिक बैकग्राउंड के साथ. वे उसे कभी पीछे नहीं छोड़ते.
पुलिसकर्मी के तौर पर वे जो भी फैसले लेते हैं तो अपने पिछले ज्ञान और फेथ के हिसाब से. कहने को पुलिस की रूल-बुक होती है लेकिन ये घटना दिखाती है कि पुलिस कर्मियों के फैसलों में उनके धार्मिक पूर्वाग्रह भी काम करते ही हैं. उनके ही नहीं पत्रकारों के, न्यायविदों के, प्रधान मंत्रियों के और राष्ट्रपतियों के भी करते हैं.
हम देखते हैं कि ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर काम फेथ से होता है, तर्क से नहीं. और ये सदियों से होता आया है. लोगों ने देवी-देवताओं को सवा रुपये के प्रसाद बोलकर पूरी जिंदगी अपनी मुश्किलों को पार किया है. या कम से कम उन्हें एेसा लगा कि उस प्रसाद से वो मुश्किलें पार हुईं.
इस मामले में ये कहना बहुत आसान है और व्यर्थ भी कि वो एक्सीडेंट नींबू-मिर्ची लगाने से नहीं रुके. हमारे मुताबिक ये महज एक संयोग था. एक्सीडेंट सही ट्रैफिक नियम और सड़क व्यवस्था से रुकते हैं. लेकिन जब तक उस रोड़ पर प्रशासन की एेसी दृष्टि हो तब तक कौतूहल मन में होता है कि आखिर क्यों शनिवार और मंगलवार को भारत के ज्यादातर इलाकों में दुकानदार और अन्य प्रतिष्ठानों के लोग मिर्ची-नींबू लगाते हैं? और एेसा वो करते हैं जो पढ़े-लिखे, विज्ञान में भरोसा करने वाले लोग होते हैं.
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सोर्स:लल्लनटॉप
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