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हिन्दू धर्म में पौष मास बहुत ही पुण्यदायी माना गया है। एक माह के दौरान लोग राम कथा एवं भागवत का श्रवण कर पुण्यार्जन करते हैं। इस मास में शुभ कार्य तो वर्जित माने गए हैं, लेकिन जप-तप और भगवान की कथा श्रवण करना पुण्यदायी माना गया है। यही कारण है कि पौष मास में होने वाले मौसम परिवर्तन तथा ज्योतिषिय योगों के आधार पर आगामी वर्ष में होने वाली बारिश का संभावित अनुमान लगाया जाता है। इस बात का धर्मग्रंथों में भी वर्णन आता है।

ज्योतिष शास्त्री ब्रजमोहन शर्मा ने बताया कि मयूर चित्रम् ग्रंथ के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या को यदि आकाशीय गर्भ हो तो सुभिक्ष का योग बनाता है। यह योग श्रावण की पूर्णिमा को वर्षा करवाता है।

इसी प्रकार यदि पौष मास की सप्तमी को आधी रात के बाद वर्षा हो अथवा बादल गरजे तो उस क्षेत्र में वर्षा ऋतु में बारिश नहीं होती, यह महर्षि नारद का कथन है। पौष मास के पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दिन यदि बादल दिखाई दें, गरजें या बरसें, इंद्रधनुष या बिजलियां चमकती दिखाई दें तो वर्षा ऋतु में अच्छी वर्षा होती है। पौष शुक्ल पंचमी को यदि बर्फ गिरे तो बारिश के मौसम में बहुत वर्षा होती है। पौष शुक्ल सप्तमी को रेवती, अष्टमी को अश्विनी तथा नवमी को भरणी नक्षत्र हो और आकाश में बिजली चमकती दिखाई दे तो पावस काल में पर्याप्त होती है। पौष की एकादशी को रोहिणी नक्षत्र में वर्षा हो तो वर्षाकाल में अच्छी बारिश होती है।


देश में सर्दी के बढ़ते असर के बीच ज्योतिषियों का कहना है कि कड़ाके की ठंड का दौर 21 दिसम्बर से शुरू होगा। यह करीब 40 दिन रहेगा। ज्योतिषी पंडित चंद्रमोहन दाधीच के अनुसार 40 दिन के चिल्ले के दौरान सर्दी चरम पर रहती है। चिल्ला सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के अंतिम 25 दिन यानी 21 दिसम्बर से शुरू होगा। यह मकर राशि में प्रवेश के 15 दिन बाद तक यानी 28 जनवरी तक रहेगा। सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी को प्रवेश करेगा। गुलाबी सर्दी का दौर सूर्य के शायन मीन में प्रवेश व बसंत ऋतु के आगमन तक चलेगा। बसंत ऋतु 18 फरवरी से शुरू होगी।
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