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भारत के 22 साल के लौंडे जयवेल ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी का एंट्रेस एग्जाम क्लियर करके ग्लिंडर यूनिवर्सिटी में जगह बनाई और अब वो पढ़ने इटली जा रहा है. आप पूछेंगे कि इसमें कौन सी बड़ी बात है. पंजाब से बेंगलुरु तक न जाने कितनी जनता विदेश जाती है. तो सुनो, ये लड़का भिखारियों के परिवार का है, जिसके पापा हैं नहीं और मम्मी शराब की लत से परेशान. सड़कों पर भीख मांगता घूमता था जयवेल, लेकिन दोस्त, सबकी किस्मत एक न एक दिन चमकती है. जयवेल की भी चमकी.

80 के दशक में आंध्र प्रदेश में भयंकर सूखा पड़ा था. जयवेल के परिवार की फसल खराब हो गई तो पूरा परिवार चेन्नई चला आया. भीख मांगने के लिए सड़कें थीं और सोने के लिए फुटपाथ. जयवेल उन लड़कों में से था, जिनके घरवाले ही उनसे भीख मंगवाते हैं. शाम तक जो भी आता था, उसमें से आधे से ज्यादा का मम्मी शराब पी जाती थीं.
जयवेल बताता है, ‘हम सब फुटपाथ पर सोते थे. बारिश होती थी तो भागकर दुकान की छांव में चले जाते थे. पुलिसवाले आते थे तो हमें भागना पड़ता था.’
फिर एक दिन उसकी जिंदगी में आए उमा और मथुरमन. ये पति-पत्नी ‘सुयम चैरिटेबल ट्रस्ट’ चलाते हैं. ये फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों पर फिल्म बनाने की तैयारी में थे. फिल्म का नाम था ‘पेवमेंट फ्लावर’ माने ‘फुटपाथ के फूल’. उनकी नजर जयवेल पर पड़ी. उन्हें लगा कि इस बच्चे की जिंदगी सुधारी जानी चाहिए. उन्होंने कोशिश की तो पहले तो जयवेल और उसके परिवार ने बड़ा घटिया रिस्पॉन्स दिया. परिवार को लगा कि ये उनके नाम पर सरकार से फंड लेंगे और कुछ करेंगे नहीं. लेकिन जब उन्हें लगा कि उमा और मथुरमन भले लोग हैं तो जयवेल ने भी हाथ बढ़ाया. उमा ने 1999 में जयवेल को अपनी कस्टडी में ले लिया था.
उमा की मेहनत देखकर जयवेल ने मन लगाकर पढ़ाई की और 12वीं में अच्छे नंबर लाया. लोगों ने रिजल्ट देखा तो फंडिंग मिल गई. फिर लड़के ने कैंब्रिज का फॉर्म भरा और एंट्रेस निकाल कर बाजा फाड़ दिया. उसे Performance Car Enhancement Technology Engineering में एडमीशन मिला था. पता है इस कोर्स में क्या होता है? इसमें बताया जाता है कि रेस में दौड़ने वाली कारों की क्षमता कैसे बढ़ाई जाए. जिसकी खुद की जिंदगी पटरी पर नहीं थी, उसने रेसिंग कारों को बेहतर बनाने का मौका हासिल किया.
जयवेल को लंदन भेजने के लिए उमा का ट्रस्ट अब तक 17 लाख रुपए कर्जा ले चुका है. उसे इटली भेजने के लिए उमा को 8 लाख रुपए और चाहिए. उमा और मथुरमन पूरी कोशिश कर रहे हैं कि पैसों की वजह से जयवेल की पढ़ाई न रुके. वैसे उमा बड़ी इंट्रेस्टिंग बात बताती हैं. वह कहती हैं, ‘सरकार उनकी मदद करने के बजाय उन्हें परेशान करती है. कुछ ढंग के अफसर उनकी मदद करते हैं, लेकिन उतना काफी नहीं है. अब भले ये गंदी बात हो, लेकिन हमें इसे मानना तो पड़ेगा ही.’

जयवेल की मां सरोजा अब भी फुटपाथ पर रहती हैं. एक चटाई और चिथड़ों के बंडल के साथ. ये बंडल उनके लिए तकिये का काम करता है. सरोजा कहती हैं, ‘वो कुछ बन गया तो अपने भाई-बहनों का ध्यान जरूर रखेगा. मैं नहीं चाहती कि वह कभी मेरे जैसा बने. पता नहीं मैं तब तक जिंदा रहूंगी भी या नहीं.’ जयवेल पढ़ना चाहता है और पढ़ाई खत्म करके उमा का ट्रस्ट चलाने में उनकी मदद करना चाहता है ताकि उसके जैसे कुछ और बच्चों की जिंदगी सुधर जाए.





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