फिल्म का नाम: ढिशूम
डायरेक्टर: रोहित धवन
स्टार कास्ट: वरुण धवन, जॉन अब्राहम, जैकलीन फर्नांडिस, अक्षय खन्ना, साकिब सलीम
अवधि: 2 घंटा 04 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 1.5 स्टार
रोहित धवन ने जॉन अब्राहम और अक्षय कुमार को लेकर फिल्म 'देसी ब्वॉयज' बनायी थी, जिसे सराहना भी मिली थी. इस बार जॉन अब्राहम और अपने भाई वरुण धवन के साथ उन्होंने फिल्म 'ढिशूम' का बनाई है. आइए जानते हैं कैसी है ये फिल्म...
कहानी:
फिल्म की कहानी भारत के टॉप बैट्समैन विराज (साकिब सलीम) के किडनैप होने से शुरू होती है जिसे मिडिल ईस्ट में अगवा कर लिया जाता है. फिर 36 घंटे के भीतर उसे छुड़ाने के लिए भारत की ओर से इस मिशन पर कबीर शेरगिल (जॉन अब्राहम) की ड्यूटी लगाई जाती है जिसका साथ मिडिल ईस्ट का ऑफिसर जुनैद अंसारी (वरुण धवन ) देता है. फिल्म में काफी ट्विस्ट और टर्न्स तब आ जाते हैं जब इसमें राहुल उर्फ वाघा (अक्षय खन्ना) की एंट्री होती है. अब क्या कबीर और जुनैद मिलकर विराज को ढूंढ निकालेंगे? इसका पता आपको थिएटर तक जाकर ही चलेगा.
फिल्म की कहानी भारत के टॉप बैट्समैन विराज (साकिब सलीम) के किडनैप होने से शुरू होती है जिसे मिडिल ईस्ट में अगवा कर लिया जाता है. फिर 36 घंटे के भीतर उसे छुड़ाने के लिए भारत की ओर से इस मिशन पर कबीर शेरगिल (जॉन अब्राहम) की ड्यूटी लगाई जाती है जिसका साथ मिडिल ईस्ट का ऑफिसर जुनैद अंसारी (वरुण धवन ) देता है. फिल्म में काफी ट्विस्ट और टर्न्स तब आ जाते हैं जब इसमें राहुल उर्फ वाघा (अक्षय खन्ना) की एंट्री होती है. अब क्या कबीर और जुनैद मिलकर विराज को ढूंढ निकालेंगे? इसका पता आपको थिएटर तक जाकर ही चलेगा.
स्क्रिप्ट:
फिल्म की स्क्रिप्ट कमजोर है जो आपको हिंदी फिल्म 'धूम' के प्लाट की याद दिलाती है. कई सारे लेयर्स हैं जो वास्तविकता से काफी परे हैं. हालांकि फिल्म का डायरेक्शन और सिनेमेटोग्राफी कमाल की है जिसके लिए अयनंका बोस की तारीफ करनी होगी. शूटिंग के लोकेशंस और फाइट सिक्वेंस भी काफी उम्दा हैं. बस कहानी को थोड़ा और दिलचस्प बनाया जा सकता था. हुसैन दलाल के लिखे हुए डायलॉग्स भी कमाल के हैं जो कभी-कभी हंसाते भी हैं लेकिन काफी फीका क्लाइमैक्स है.
फिल्म की स्क्रिप्ट कमजोर है जो आपको हिंदी फिल्म 'धूम' के प्लाट की याद दिलाती है. कई सारे लेयर्स हैं जो वास्तविकता से काफी परे हैं. हालांकि फिल्म का डायरेक्शन और सिनेमेटोग्राफी कमाल की है जिसके लिए अयनंका बोस की तारीफ करनी होगी. शूटिंग के लोकेशंस और फाइट सिक्वेंस भी काफी उम्दा हैं. बस कहानी को थोड़ा और दिलचस्प बनाया जा सकता था. हुसैन दलाल के लिखे हुए डायलॉग्स भी कमाल के हैं जो कभी-कभी हंसाते भी हैं लेकिन काफी फीका क्लाइमैक्स है.
अभिनय:
फिल्म में अक्षय खन्ना आपको सरप्राइज करते हैं और कई साल के बाद उनकी एंट्री पर्दे पर अच्छी लगती है. वरुण धवन और जॉन अब्राहम का काम, किरदार के अनुसार सहज है. वहीं, जैकलीन फर्नांडिस ने भी ठीक-ठाक काम किया है. बाकी सह कलाकारों का काम भी अच्छा है. अक्षय कुमार का कैमियो भी फिल्म में एक छोटी ट्रीट है जिससे आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आती है. नरगिस फाकरी के अलावा कुछ क्रिकेटर जैसे मोहिन्दर अमरनाथ, रमीज राजा और आकाश चोपड़ा के भी कैमियो हैं.
फिल्म में अक्षय खन्ना आपको सरप्राइज करते हैं और कई साल के बाद उनकी एंट्री पर्दे पर अच्छी लगती है. वरुण धवन और जॉन अब्राहम का काम, किरदार के अनुसार सहज है. वहीं, जैकलीन फर्नांडिस ने भी ठीक-ठाक काम किया है. बाकी सह कलाकारों का काम भी अच्छा है. अक्षय कुमार का कैमियो भी फिल्म में एक छोटी ट्रीट है जिससे आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आती है. नरगिस फाकरी के अलावा कुछ क्रिकेटर जैसे मोहिन्दर अमरनाथ, रमीज राजा और आकाश चोपड़ा के भी कैमियो हैं.
कमजोर कड़ी:
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी कहानी और खास तौर पर क्लाइमैक्स है, जो आपको कोई नयापन नहीं देती हालांकि कांसेप्ट अच्छा था. पर उसको एक दिलचस्प रूप देने में मेकर्स असमर्थ दिखाई पड़ते हैं. जितनी मेहनत से फिल्म का इतना सारा प्रोमोशन किया गया है, उसी तरह की मेहनत कहानी पर भी करने की जरूरत थी .
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी कहानी और खास तौर पर क्लाइमैक्स है, जो आपको कोई नयापन नहीं देती हालांकि कांसेप्ट अच्छा था. पर उसको एक दिलचस्प रूप देने में मेकर्स असमर्थ दिखाई पड़ते हैं. जितनी मेहनत से फिल्म का इतना सारा प्रोमोशन किया गया है, उसी तरह की मेहनत कहानी पर भी करने की जरूरत थी .
संगीत:
फिल्म का संगीत तो रिलीज से पहले ही हिट हो चूका था. खास तौर से 'सौ तरह के' वाला गाना कई लोगों की जुबान पर बसा हुआ है. बाकी गाने और बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है.
फिल्म का संगीत तो रिलीज से पहले ही हिट हो चूका था. खास तौर से 'सौ तरह के' वाला गाना कई लोगों की जुबान पर बसा हुआ है. बाकी गाने और बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है.
सौर्सेल:आजतक
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