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success stories after cbse 2017 results

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डीपीएस सेक्टर 30 के स्टूडेंट हैं मिन्नातुल्ला. उन्होंने 93% से ज्यादा मार्क्स पाए हैं. मिन्नातुल्ला सारेगामापा लिटिल चैंप्स में भी आ चुके हैं. पांच भाई-बहनों वाले परिवार का खर्चा मिन्नातुल्ला के पिता चलाते हैं. जो फैक्ट्री से ब्रेड लाकर दुकानों में बेचते हैं. 



मिन्नातुल्ला को डीपीएस में एडमिशन RTE कोटे के तहत मिला. उसके बाद उनकी सफलता का सारा क्रेडिट उन्हें ही जाना चाहिए क्योंकि जिन हालात में वो इतने नंबर ला रहे हैं वो आसान नहीं है. इस चीज का बहुत फर्क पड़ता है कि घर लौटकर आप किस माहौल में पढ़ाई करते हैं. मिन्नातुल्ला जैसे बच्चे थोड़ी कठिनाई में भी ये चीज सफलता के आड़े नहीं आने देते. ये बहुत अच्छी बात है.






अनूप कुमार

 अनूप कुमार 



डीपीएस आरकेपुरम के अनूप कुमार ने 90% मार्क्स पाए. उनके नंबर मायने रखते हैं क्योंकि अनूप देख नहीं सकते. अनूप ह्युमनिटीज के छात्र हैं, इसमें भी एक पेंच है. अनूप को अर्थशास्त्र और मैथ्स छोडनी पड़ गई थी क्योंकि ब्रेल लिपि में पढ़ाई के लिए पर्याप्त साधन उन विषयों में नहीं थे. 



वो बताते हैं कि मुझे अपने दो पसंदीदा विषय सिर्फ इसलिए छोड़ने पड़ गए, क्योंकि सीबीएसई हमें ब्रेल में स्टडी मटेरियल उपलब्ध नहीं करा पाई. अनूप को इतिहास में 100 नंबर मिले, पॉलिटिकल साइंस में 98, फिजिकल एजुकेशन में 97, समाज शास्त्र में 95. वहीं उनके नंबर इंग्लिश में थोड़ा सा कम रह गए. 77 नंबर मिले. अनूप अब डीयू में पॉलिटिकल साइंस पढ़ना चाहते हैं.




गीता कुमारी

ऐसे ही गीता कुमारी भी हैं. बायो में उनके 95% हैं. गीता नोएडा के महामाया इंटर कॉलेज की छात्रा हैं. उनके पिता की कैंसर से मौत हो जाने के बाद उनके भाई ने सब्जियां बेच-बेचकर पढ़ाया. गीता ने बिना किसी ट्यूशन के सिर्फ इतने नंबर पाए.





हर्षिता

हर्षिता नजफगढ़ के पास ढासा गांव में रहती हैं. उनके पिता मेहनत-मजदूरी करके घर चलाते हैं. वोकेशनल में पढ़ाई करके उन्होंने 93% नंबर पाए.




दर्शना एम.वी.

तमिलनाडु के कृष्णागिरी में दर्शना एम.वी. पढ़ती हैं. दाईं आंख पूरी तरह से दृष्टिबाधित है, वहीं बाईं आंख भी आंशिक रूप से ही देख पाती है. कॉमर्स की इस स्टूडेंट ने 96 से ज्यादा परसेंट पाए. और पूछने पर मीडिया को बताया कि आंख की कमजोर रोशनी कभी भी उनके आड़े नहीं आई.


ये बच्चे टॉपर भले न हों लेकिन इतने ज्यादा परसेंट लाना भी कम नहीं है. इस आंकड़े को छूने में कई छात्रों के पसीने छूट जाते हैं. भले उनके पास कितनी भी बुद्धि, समय, सुविधा और सहूलियतें हों. हर रोज़ जब अपने आस-पास के माहौल, शारीरिक सीमाओं , अभावों से गुजरना हो तो फोकस सिर्फ पढ़ाई पर लगाकर अंत में इतना बेहतर नतीजा देना आसान काम नहीं है. इन बच्चों की मेहनत की कद्र करनी चाहिए.





सोर्स:लल्लनटॉप
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