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‘पीछे मुड़कर देखने का वेट तो 90s में करते थे. I was just checking out his ass.’

90 के दशक के रोमैंस से एक सोचा-समझा ब्रेक, असल में एक लाइन में कहना हो तो यही है ‘बेफिक्रे.’

क्या होता है, जब दिल्ली के करोल बाग़ का एक लौंडा पेरिस पहुंच जाता है. होता ये है कि उसकी आंखें निकल आती हैं. इतनी सारी लड़कियां, इतनी मस्ती, इतना सेक्स. और वो भी बिना किसी रोक-टोक के. और उसे मिल जाती है शायरा. इंडियन मां-बाप की फ्रेंच लड़की. जिसमें भारतीय नैतिकता जरा भी नहीं है. इंडिपेंडेंट कैसे रहा जाता है, उसे खूब आता है. उसके कई बॉयफ्रेंड रहे हैं. और इस बात को मानने में न उसे कोई असहजता है, न कोई अपराधबोध. वो खुश है, ब्रेकअप के बाद भी. संयोग ऐसा कि धरम और शायरा मिल जाते हैं. दो-चार डेट्स के बाद लगता है कि उन्हें लिवइन में रहना चाहिए. पर एक साथ रहने पर उन्हें पता लगता है कि वो तो एक दूसरे को बर्दाश्त भी नहीं कर सकते. फिर ब्रेकअप.

लेकिन ये ब्रेकअप जरा अलग है. चीखना-चिल्लाना है. पर रोना-धोना नहीं. शायरा को ‘मूव ऑन’ करना अच्छे से आता है. लेकिन धरम के सेंटीमेंट अब भी दिल्ली वाले हैं. ‘वो मुझे मिस करती होगी, वो मेरी नयी गर्लफ्रेंड से जलती होगी’ टाइप. पर शायरा तो मस्त है. और जब धरम को ये पता चल जाता है कि शायरा सचमुच उसे मिस नहीं करती, उसकी मानो आंखें सी खुलती हैं. इस ब्रेकअप के बाद दोनों बराबरी पर हैं. अब दोनों दोस्त हैं.

सबसे पहले फिल्म की अच्छी बातें. जैसा कि आदित्य चोपड़ा पहले भी कह चुके हैं, फिल्म में रोमैंस के प्रति एक फ्रेश अप्रोच है. ब्रेकअप के प्रति एक फ्रेश अप्रोच है. ये वो दौर नहीं, जब किसी लव ट्रायंगल में हीरो और हिरोइन कन्फ्यूज हो रहे हों कि ‘शादी टाइप’ कौन है और ‘हुकअप टाइप’ कौन. ये वो दौर नहीं, जब लड़की की लाइफ में हीरो के अलावा आया बेहद चोमू और बोरिंग होता है. जो अच्छा लगता है, उसके साथ हो लेते हैं. जब अच्छा नहीं लगता, छोड़ देते हैं. इश्क और ब्रेकअप लाइफ में एक आसान चीज की तरह हैं फिल्म में.

फिल्म में कोई रोना-धोना नहीं है, कोई मेलोड्रामा नहीं है. कोई कसमें-वादे नहीं हैं. सेक्स को लेकर कोई नैतिक जजमेंट देने की कोशिश नहीं की गई है. ‘शादी मटीरियल’ और ‘गर्लफ्रेंड मटीरियल’ के बीच कोई भेद नहीं है.

लेकिन फिल्म सबसे जरूरी चीज मिस कर जाती है. जिसे हम कहते हैं प्लॉट. यानी फिल्म की कहानी. जैसा कि हम ट्रेलर में देखते हैं, दो बेफिक्रे एक दूसरे के साथ एक सेक्शुअल रिलेशनशिप में जाते हैं, इस वादे के साथ कि कभी एक दूसरे के प्रेम में नहीं पड़ेंगे. कभी सेंटी नहीं होंगे, आई लव यू नहीं बोलेंगे.

लेकिन जैसी हैपी एंडिंग हर बॉलीवुड फिल्म से अपेक्षित होती है, होता वही है. ब्रेकअप के बाद दोस्ती गहरा जाती है. और जब लड़की की शादी का समय आता है, तो लड़के को लगता है, ‘ओ शिट, मुझे तो प्यार हो गया है.’ बस इस फिल्म में भी वही हुआ. ट्रेलर देखने के बाद फिल्म में कोई ऐसी चीज नहीं है, जो आपको सरप्राइज कर दे. जिसे देखकर आप कहें कि वाह, ये तो सोचा ही नहीं था.

प्लॉट इतना छोटा है कि जरा सी कहानी को जबरन सवा दो घंटे खींचा गया है. जबकि सबको पता होता है कि अंत क्या होना है. कुल मिलाकर, इंटरवल के बाद अझेल होने लगती है फिल्म.

फिल्म में इतने किसिंग सीन हैं कि अझेल होने लगता है. आप कहना चाहते कि बस करो, प्रेम या सेक्स केवल चुम्मा करना नहीं होता. जिस नयी जेनरेशन की फिल्म बात करना चाहती है, उसका काम केवल पार्टी और सेक्स करना नहीं होता. फिल्म में इतनी पार्टियां हैं कि आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या इनकी जिन्दगी में कुछ भी नहीं है?

जब फिल्म में फॉरेन लोकेशन चुन ली जाती है, आधी जिम्मेदारियों से तो वैसे ही फिल्म पल्ला झाड़ लेती है. फॉरेन लोकेशन पर आप कुछ भी दिखा सकते हैं क्योंकि वो भारतीय नैतिकता के दायरे में नहीं आती. और हमारे दौर की तमाम फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी प्यार और सेक्स करना बेहद आसान हो जाता है. क्योंकि लड़की का परिवार लिबरल है. और लड़के का परिवार तो इंडिया में है. जहां-तहां अपनी टी शर्ट उतार देना न हिरोइन के लिए बड़ा काम है, और न्यूड शॉट देना न हीरो के लिए.

फिल्म का म्यूजिक अच्छा है. शूटिंग पेरिस की है, तो जाहिर सी बात है कि लोकेशन खूबसूरत हैं. फिल्म में डांस खूब सारा है. शुरू से लेकर अंत तक. म्यूजिक और डांस प्लॉट कमजोर होने के बावजूद आपको थिएटर में बैठे रहने के लिए मजबूर करता है.

रणवीर सिंह वैसे ही हैं, जैसा हम उन्हें जानते हैं. लौंडा टाइप्स. फिल्म देखकर बिलकुल भी नहीं लगता कि उनको ये रोल करने में कोई दिक्कत आई होगी. वाणी कपूर की परफॉरमेंस बढ़िया है. उनका चेहरा फ्रेश है. देखकर लगता है कि दीपिका, अनुष्का, आलिया की लीग में एक और नाम जुड़ने वाला है.

रिलीज के पहले आदित्य चोपड़ा कह रहे थे कि अपनी दूसरी ‘पहली’ फिल्म बना रहे हैं. इतने अनुभव के बाद अगर दूसरी ‘पहली’ फिल्म बनानी थी, तो कहानी पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए था. जाने तू या जाने ना, शुद्ध देसी रोमैंस, नील एंड निक्की टाइप की कुछ फिल्मों को मिला दिया जाए तो आसानी से एक ‘बेफिक्रे’ तैयार हो जाती है.

अगर म्यूजिक और डांस में इंटरेस्ट है, तो फिल्म देखिए. वीकेंड पर बिलकुल फ्री हैं तो देख आइए. लेकिन ये वो फिल्म नहीं जिसके लिए आप वक़्त निकालकर जरूर जाएं.



सोर्स:लल्लंटोप
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