समाजवादी पार्टी में मचे घमासान की परिणति के रूप में पार्टी प्रमुख मुलायस सिंह यादव ने यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया है. हालिया दौर में वह ऐसे तीसरे नेता हैं जिनको मुख्यमंत्री रहने के दौरान पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है.
पेमा खांडू
अखिलेश यादव को पार्टी से निकाले जाने के 24 घंटे पहले ही अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू को उनकी ही पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) से सस्पेंड कर दिया गया था. अब उनकी जगह पार्टी दूसरे नेता को चुनने जा रही है. दरअसल पिछले एक साल से ही अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है. इस अवधि में अब चौथा मुख्यमंत्री चुना जाएगा.
दरअसल पिछले साल दिसंबर तक नबाम टुकी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी लेकिन टुकी के खिलाफ पार्टी के भीतर बगावत हो गई. राज्यपाल की भूमिका के चलते मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. इस बीच कलिखो पुल के नेतृत्व में बगावती खेमे ने विपक्षी भाजपा के दम पर सरकार बनाई. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने टुकी के पक्ष में फैसला दिया. लेकिन कलिखो पुल समेत कांग्रेस के बागी धड़े ने नबाम टुकी को समर्थन देने से इनकार कर दिया.
नतीजतन पेमा खांडू को मुख्यमंत्री बनाया गया. बाद में खांडू ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस से निकलकर पीपीए बना ली. अब खांडू को पीपीए ने पार्टी से सस्पेंड कर दिया है और उनकी जगह पार्टी नया नेता चुनने जा रही है.
जीतन राम मांझी
पिछले साल नौ फरवरी को बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को जदयू ने इसी तरह पार्टी से बाहर कर दिया था. दरअसल 2014 में लोकसभा चुनाव में बिहार में जदयू की करारी पराजय के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद मंत्रिमंडल में उनके वरिष्ठ सहयोगी जीतन राम मांझी की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी हुई. लेकिन कुछ समय बाद ही जदयू में उनकी मुखालफत शुरू हो गई और बाद में उन पर आरोप लगाया जाने लगा कि वह विपक्षी बीजेपी के साथ पींगे बढ़ा रहे हैं.
जीतन राम मांझी ने भी बिहार में अपनी पार्टी से बगावत कर दी थी
इन सबसे खफा नीतीश ने 2015 के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर फिर से एक बार पार्टी की कमान संभालने का मन बनाया, लेकिन मांझी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. काफी मान-मनौवल के बाद भी जब वह नहीं माने और बीजेपी ने विश्वासमत में उनको परोक्ष रूप से समर्थन देने का ऐलान किया तो जदयू ने फरवरी 2015 में जीतन राम मांझी को पार्टी से बाहर निकाल दिया.
हालांकि इसके बाद जिस दिन जीतन राम मांझी को विश्वासमत हासिल करना था, उसी दिन सुबह राज्यपाल के पास जाकर उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया. दरअसल बहुमत के लिए अपेक्षित संख्या बल नहीं उपलब्ध होने के कारण उनको इस्तीफा देना पड़ा.
सौर्स:NDTV
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