आओ हुजूर तुमको, फ्लैश बैक में ले चलूं. नन्हें मुन्नों की नहीं दढ़ाए अर्ध बुजुर्ग हो चले लोगों से कह रहे हैं. रणबीर कपूर से पहले, इमरान हाशमी से पहले, शाहरुख खान से पहले रोमांस का अलग दौर था. जब मूछ के रोएं थोड़ा सा डार्क कलर लेने लगते थे. तब लड़के लड़कियां गाना गाते हुए घूमते थे. झूमते थे.
“जब हम जवां होंगे जाने कहां होंगे. लेकिन जहां होंगे वहां फरियाद करेंगे..तुझे याद करेंगे.”
सनी देओल और अमृता सिंह सन 83- 84 में एक्टिवेट हुए स्पिरिचुअल गुरु थे. प्यार को अध्यात्म से जोड़ने वाले. वो अफेयर में गिरफ्तार जोड़ों को एक सार्वभौमिक सत्य से अवगत कराते थे. माने यूनिवर्सल ट्रुथ. कि कितना भी पापड़ बेल लो, जब जवां होगे तब तक आज का पार्टनर न जाने किस कोने में होगा. पता नहीं अपने तीसरे बच्चे को पोलियो की दवा पिला रहे होंगे या प्राइमरी के शिक्षक के तौर पर कहीं जनगड़ना कर रहे होंगे. “जहर जुदाई का पीना पड़ जाए तो, बिछड़ के भी हमको जीना पड़ जाए तो” जैसे ही कानों में पड़ता था, लगता था कानों में पिघला शीशा डाला गया हो. कितना हौलनाक होता था न.
खैर रोमांस की बातें वो लोग करें जो आज किसी और के बचपन वाले प्यार के साथ करवा चौथ सेलिब्रेट कर रहे हैं. लल्लन बात करेगा देशभक्ति की. जो आजकल डिमांड में है. तो पहला देशभक्त हीरो कौन था? हां पता है, हाथ नीचे कर लो. मनोज कुमार. आजकल कौन चल रहा है? सही जवाब. अक्षय कुमार. लेकिन मनोज के बाद और अक्षय से पहले जिस हीरो का देशभक्ति पर पूरा कंट्रोल था वो था ‘द हीरो’ अर्थात सनी देओल.
चलो पहले तुम्हारे मन की कर लेते हैं. देशभक्त सनी देओल का नाम सुनते ही तुम्हारे सामने उखाड़ा हैंडपंप आ गया होगा. और वो कालजयी डायलॉग “हिंदुस्तान जिंदाबाद था, है और रहेगा.” गदर थी तो प्रेमकथा, लेकिन लास्ट में जो जलवा दिखाया न अशरफ अली को, कि सारा देश ललकार उठा तारा..तारा..तारा. तारा सिंह फिल्मों का सबसे बड़ा देशभक्त रोल है आज की तारीख में.
जीत फिल्म के कयामत से लौट आने वाले सनी देओल. जिसमें एक से एक बेहतरीन गाने थे. जो अभी तक एफएम की हेलो फरमाइश में बजाए जाते हैं. डर फिल्म का प्यारा सा हसबैंड. बेताब का चाकलेट मार्का हीरो. ये सब फिल्में वो रास्ता थीं जिन पर चलकर सनी को देश का हीरो बनना था. उसके बाद खून का बदला खून वाली फिल्में भी. डकैत, विश्वात्मा, जोशीले, पाप की दुनिया, आग का गोला वगैरह. ये सब उसी की जमीन थी जिस पर देश का योद्धा उगना था.
शुरुआत त्रिदेव से मान सकते हो लेकिन जलवा तो बॉर्डर फिल्म से उछला था. मेजर कुलदीप सिंह. ऐसा फौजी जिसने दुश्मन को रेत में अपनी ही शक्ल उड़ती दिखा दी थी. फिर फर्ज के DCP करन सिंह. यहां खास बात ये है कि इनकी कई फिल्मों में नाम करन ही था. जीत, त्रिदेव, योद्धा, जानी दुश्मन में.
फर्ज के बाद गदर के तारा सिंह. जिसके डायलॉग सबकी जुबान पर चढ़े हैं. फिर इंडियन, मां तुझे सलाम और 23rd मार्च 1931: शहीद. सबमें देशभक्ति से ओतप्रोत अपीयरेंस. फिर 2003 में द हीरो फिल्म आई. उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी ये. इसमें स्पाई बने सनी देओल ने अपनी लव स्टोरी के साथ देशप्रेम का ऐसा बैलेंस साधा कि देखने वाले मुरीद हो गए. अपने यहां की जेम्स बॉन्ड थी ये फिल्म.
सोर्स:लल्लनटॉप
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