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गोरखपुर: यह दुर्भाग्य ही है कि देश को 8 अंतरराष्ट्रीय और 50 राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी देने वाले हॉकी के द्रोणचार्य आज मुफ़लिसी की जिन्दगी जीने को मजबूर हैं. घर खर्च और बेटी की शादी के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. यही वजह है कि वह आज साइकिल पर टीशर्ट बेचकर कर गुजारा कर रहे हैं.

मेजर ध्यान चंद और केडी सिंह बाबू के शिष्य रहे हैं इमरान

गोरखपुर में फर्टिलाइजर में स्पोर्ट्स कोटे के तहत नौकरी पाने वाले हॉकी खिलाड़ी 62 साल के इमरान साल 1974 में रोजी-रोटी की तलाश में जौनपुर से यहां आए तो यहीं के होकर रह गए. हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद और केडी सिंह बाबू के शिष्य रहे इमरान उन्हें आज भी अपना आदर्श मानते हैं. वह बताते हैं कि दादा मेजर ध्यान चंद उनसे कहते थे कि जीवन भर हॉकी की सेवा करना और बच्चों को निःशुल्क हॉकी सिखाना.

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1987 से बच्चों को फ्री में हॉकी सिखा रहे हैं इमरान

इमरान कहते हैं कि उनका जीना भी हॉकी है और मरना भी हॉकी ही है. जब तक उनकी सांसे चलेंगी तब तक वह हॉकी की सेवा करते रहेंगे. उन्होंने फर्टिलाइजर कैम्पस में 10 मई 1987 से बच्चों को फ्री में हॉकी सिखाना शुरू किया. भारतीय महिला हॉकी टीम की वाइस कैप्टन रहीं निधि खुल्लकर, संजू ओझा, रजनी चौधरी, रीता पांडेय, प्रवीन शर्मा, सनवर अली, जनार्दन गुप्ता और प्रतिभा चौधरी जैसे कई दिग्गज खिलाड़ियों ने उनसे हॉकी का जादू सीखने के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई.

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1974 में फर्टिलाइजर में नौकरी मिली

हॉकी के इस जादूगर को न तो भारत सरकार ने याद रखा और न ही प्रदेश सरकार ने. साल 1974 में 30 अप्रैल को इमरान को खेल कोटे से फर्टिलाइजर में नौकरी मिल गई. हालांकि इसके पहले उनका चयन भारतीय राष्ट्रीय टीम में हो गया था. लेकिन, उन्होंने नौकरी को चुना. जिंदगी और परिवार की गाड़ी चलने लगी.

10 जून 1990 को एक हादसे के बाद फर्टिलाइजर में उत्पादन बंद के हो गया. साल 2002 में अधिकतर कर्मचारियों को वीएसएस देकर छुटटी कर दी गई. यही से इमरान का मुफलिसी का दौर शुरु हुआ, जो आज तक बदस्तूकर जारी है. फिर भी हॉकी के जादूगर ने हार नहीं मानी.

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गुमनामी के साए में जिंदगी गुजार रहे हैं इमरान

हॉकी स्टिक उठाने के पीछे उनका मकसद था हॉकी की नई पौध तैयार करना. उन्हें लगा कि इस हुनर से एक दिन उन्हें भी मुकाम मिलेगा. कई हॉकी खिलाड़ियों को उन्होंने स्टिक का जादू सिखाया. 8 इंटरनेशनल और 50 नेशनल महिला और पुरुष खिलाड़ी देश को देने के बाद भी उनका किसी को ख्याल नहीं आया और वह गुमनामी की जिंदगी जीने लगे. भारत सरकार की ओर से मिलने वाली पेंशन 973 रुपए भी इस महंगाई के जमाने में घर खर्च के लिए ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई.

टी-शर्ट के साथ-साथ स्पोर्ट्स किट्स बेचते हैं इमरान

वह घर का खर्च चलाने और बेटी की शादी के लिए घर-घर जाकर स्पोर्ट्स किट्स बेचते हैं. क्यों कि शादी के लिए काफी पैसा चाहिए. 62 साल के इमरान मूलतः जौनपुर जिले के अबीरगढ़ टोला थाना कोतवाली के रहने वाले हैं. इमरान और पत्नी यास्मी2न जहां के दो बच्चे मो. आमिर और उज़्मा यास्मीेन हैं. उन्होंने खिलाड़ियों के लिए लोअर बनाने का कारखाना शुरू किया, लेकिन पैसे के अभाव में यह भी बंद हो गया. कारखाने से 200 प्रतिदिन और 6000 रुपए महीने तक की आमदनी हो जाती थी.

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7 नवंबर को है बेटी की शादी लेकिन जेब में पांच हजार रुपए

इमरान की बेटी उज़्मा की शादी 7 नवंबर को है. लेकिन, इमरान के खाते में महज 5 हजार रुपए ही हैं. नतीजा उन्हें बेटी की शादी की चिंता दिन-रात सता रही है. मुफ़लिसी के कारण ही उन्हें बीच में ही बेटी उज़्मा की पढाई भी छुड़वानी पड़ी थी. उनका बेटा आमिर दो साल से एक प्राइवेट फर्म में 6 हजार की नौकरी करता है.






सोर्स:एबीपी न्यूज़ 
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