शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा।।
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा।।
जगदम्बा प्रसाद मिश्र की गज़ल की यह पंक्तियाँ सच्चे अर्थों में शहीदों को श्रृद्धांजलि है। शहीदों का यही हासिल होता है कि उनकी कुर्बानी को लोग वर्षों तक याद रखते हैं। सालों-साल उन शहीदों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। आज भी पूरा देश शहीदों को नमन कर रहा है। आज कारगिल विजय दिवस है। 26 जुलाई 1999 को ऑपरेशन विजय सफल हुआ था और देश के वीर जवानों ने दुश्मनों को या तो मार दिया या सीमापार खदेड़ दिया था। उस दिन से 26 जुलाई को देश के लिए कुर्बान सपूतों की याद में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।
पाकिस्तान ने किया पीठ पीछे वार
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों देशों की सेनाएँ लंबे वक्त तक एक दूसरे के सामने नहीं आई। काफी वक्त तक शांति बहाल रही और दोनों देशों ने सियाचीन ग्लेशियर पर चौकियाँ बना लीं।
1980 में वहां भी एक फौजी मुठभेड़ की गई। फिर मामला शांत रहा।
1998 में दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किया जिसके बाद एकबार फिर युद्ध जैसे हालात बन गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने लाहौर डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर किए जिसके बाद यह तय हुआ कि कश्मीर समस्या का हल शांतिपूर्ण तरीके से निकाला जाएगा। लेकिन पाकिस्तान ने पीठ पीछे वार किया और बड़े पैमाने पर कारगिर में घुसपैठ कर दी। भारतीय सेना जबतक समझ पाती पाकिस्तानी घुसपैठियों ने युद्ध शुरू कर दिया था।
दुश्मनों के सफाया के लिए शुरू हुआ ऑपरेशन विजय
भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठ का जवाब देने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया जिसमें 2 लाख भारतीय जवानों ने हिस्सा लिया। करीब 2 महीने तक चले संघर्ष के बाद 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना अपनी जमीन पर वापस कब्जा पाया और दुश्मनों को खदेड़ दिया। इस दिन औपचारिक रूप से युद्ध विराम हुआ इसलिए इसे कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।
इन तीन चरणों में चला पूरा कारगिल युद्ध
- कारगिल युद्ध के पहले चरण में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय कश्मीर में घुसपैठ की और तोपों के सहारे नेशनल हाइवे 1 के आसपास के इलाकों में भारतीय चौकियों को धवस्त कर उनपर कब्जा कर लिया।
- भारतीय सेना को जब इस बात का पता चला तो उन स्थानों पर सेना भेजी गई। लेकिन दुश्मन पूरी तैयारी से थे और सेना को भारी क्षति उठानी पड़ी।
- अंतिम चरण में भारत और पाक के बीच युद्ध शुरू हुआ। भारतीय जाँबाजों ने उन सभी स्थानों पर वापस कब्जा कर लिया जो पाकिस्तानी सेना ने हथिया लिए थे। अंत में अंतर्राष्ट्रीय दबावों के चलते पाकिस्तान को अपनी सेना एलओसी के पीछे बुलानी पड़ी और युद्धविराम हो गया।
कारगिल युद्ध स्मारक
भारतीय सेना ने द्रास क्षेत्र की टाइगर हिल में कारगिल वार मेमोरियल का निर्माण किया है। यह स्मारक शहीद जवानों की याद में बनाया गया है इसलिए इसकी दीवार पर शहीद जवानों के नाम अंकित किए गए हैं। इस स्मारक से जु़ड़ा हुआ एक संग्रहालय है जिसमें युद्ध से संबंधित वस्तुएँ रखी हुई हैं। कारगिल वार मेमोरियल में प्रसिद्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता पुष्प की अभिलाषा लिखी हुई जो किसी भी देशप्रेमी को गर्व से भर देती है…
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंधप्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक!!!
सोर्स:इंडिया.कॉम
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