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हनुमान ब्रह्मचारी थे, लेकिन उनका एक पुत्र भी था मकरध्वज। पुत्र होने की कथा अलग है। अभी यह कि लंका जलाने के बाद तपिश के कारण हनुमान को बहुत पसीना आ रहा था। उनके स्वेद से एक मत्स्यकन्या ने मकरध्वज को जन्म दिया। बड़ा होने पर उसी मकरध्वज को अहिरावण ने पाताल पुरी का प्रहरी बनाया। युद्ध के दौरान राम-लक्ष्मण का अपहरण कर अहिरावण पाताल पुरी ले गया।


विभीषण के बताने पर राम-लक्ष्मण की सहायता के लिए हनुमानजी पाताल पुरी पहुंचे, तो उन्होंने मकरध्वज को देखा और परिचय पूछा। मकरध्वज ने उन्हें प्रणाम किया और अपने बारे में बताया। परिचय के बाद हनुमान ने अपने आने के उद्देश्य राम-लक्ष्मण को मुक्त करा कर ले जाने के बारे में बताया।


जैसे ही मकरध्वज ने जाना कि हनुमान राम और लक्ष्मण को लेने आए हैं, तो उसने प्रतिरोध किया। हनुमान ने आगे बढ़ने की कोशिश की, तो मकरध्वज ने उन्हें रोका। हनुमान ने मकरध्वज को समझाने की हरसंभव कोशिश की, किंतु पुत्र नहीं हटा। तब हनुमान और मकरध्वज में द्वंद्व हुआ। काफी देर तक दोनों में संघर्ष चला। द्वंद्व में आखिर मकरध्वज पराजित हुआ और हनुमान उसे अपनी पूंछ से बांधकर पाताल में सीधे देवी मंदिर में पहुंचे।


अहिरावण ने वहां जैसे ही ने राम-लक्ष्मण को बलि देने के लिए तलवार उठाई, वैसे ही हनुमानजी प्रकट हो गए और उन्होंने अहिरावण का वध कर दिया। उन्होंने अपने इष्ट आराध्य को मुक्त किया। तब श्रीराम ने पूछा, हनुमान! तुम्हारी पूंछ में यह कौन बंधा है? बिल्कुल तुम्हारे समान ही लग रहा है। इसे खोल दो। 


 हनुमान ने मकरध्वज का परिचय देकर उसे बंधन मुक्त कर दिया। तब श्रीराम ने मकरध्वज का राज्याभिषेक कर उसे पाताल का राजा घोषित कर दिया और कहा कि भविष्य में वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करे।






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