भगवद्गीता दिव्य साहित्य है जिसको ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। इसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से साक्षात अर्जुन को सुनाया था। यदि कोई भगवद्गीता के उपदेशों का पालन करे तो वह जीवन के दुखों तथा चिंताओं से मुक्त हो सकता है। वह इस जीवन के सारे भय से मुक्त हो जाएगा और उसका सारा जीवन आध्यात्म से भर जाएगा। भगवद्गीता को निष्ठा के साथ पढ़ने वाले पर भगवान की कृपा से दुष्कर्मों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
ऋषियों ने भी समय-समय पर कहा है कि जिसने भगवद्गीता के श्लोंको का मर्म समझ लिया उसे मोक्ष तो मिलेगा ही साथ-साथ इस भौतिक संसार में भी सहायता मिलेगी। आज हम भगवद्गीता से पाँच श्लोक चुनकर लाए हैं जो भगवान श्री कृष्ण के महात्म्य का वास्तविक बोध कराते हैं…
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
सब धर्मों को त्यागकर एकमात्र मेरी ही शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा। तुम डरो मत।
भूमिरापो अनल वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकारं इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टया।।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, तथा अहंकार। ये आठ प्रकार से विभक्त मेरी प्रकृतियाँ हैं।
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।
हे अर्जुन! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है। जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है।
रसोअहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु।।
हे कुंतीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ। सूर्य तथा चंद्रमा का प्रकाश हूँ। वैदिक मंत्रों के ओंकार हूँ। आकाश में ध्वनि हूँ। तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ।
न मां दष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।
माययापह्रतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः।।
जो निपट मूर्ख हैं। जो मनुष्यों में अधम हैं। जिनका ज्ञान माया द्वारा हर लिया गया है। तथा जो असुरों की नास्तिक प्रकृति को धारण करने वाले हैं।। एसी दुष्ट मेरी शरण ग्रहण नहीं करते।
।।इति।।
*साभार- श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
सोर्स:इंडिया.कॉम
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