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भारत की आजादी एक लंबे राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संघर्ष का नतीजा थी। ब्रिटिशर्स से आजादी हासिल करने के लिए महात्मा गांधी से लेकर जवाहर लाल नेहरू और भगत सिंह से लेकर सुभाषचंद्र बोस सभी ने अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया। आम जनता ने भी भारत की आजादी की जंग में अपना खून पसीना एक किया। क्या आम, क्या खास, सभी किसी न किसी तरह से भारत की सत्ता पर स्वदेशी हुकूमत देखना चाहते थे।


यकीनन आजादी की ये जंग सफल भी हुई और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत की आजादी में और आजादी के बाद भी इस देश पर एक भयावह महाखतरा मंडरा रहा था और उससे देश को बाहर निकालने में किस शख्स का भूमिका थी? और क्यों उस शख्स को हिंदुस्तान बेहद अहम व्यक्ति के रूप में याद करता है, उसे ईश्वर का वरदान मानता है?

दरअसल, इस शख्स ने एक ऐसा काम किया, जिसे न जवाहर लाल नेहरू कर पाते और न ही खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, क्योंकि जिस तरह की इस व्यक्ति की प्रवृत्ति थी, निश्चित ही उसे ईश्वर ने वरदान के रूप में भारत में भेजा था। यह वह शख्स था जिसकी दृढ़ इच्छा शक्ति, लौह जैसे इरादे के बूते भारत आजाद तो हुआ ही, बल्कि संगठित भी हुआ। आज जिस अखंड और एक भारत को हम देख रहे हैं यह पूरा भारत हम सबको इसी शख्स का दिया हुआ ऐसा अनमोल तोहफा है, जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते।

इस शख्स का नाम था सरदार बल्लभ भाई पटेल। लौह जैसे इरादों के चलते पटेल लौह पुरूष के नाम से पूरे भारत में लोकप्रिय रहे। दरअसल, भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा और चुनौतीपूर्ण काम था रियासत में खंड-खंड रूप से बंटे, राजे-रजवाड़ों के छोटी-छोटी सल्तनों की हुकूमतों के अहंकार में डूबे हिंदुस्तान को एक करना कोई आसान काम नहीं था। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि अंग्रेज भारत को आजाद तो कर गए, लेकिन उन्होंने देश का बंटवारा भी कर दिया और नया मुल्क धर्म के नाम पर बना जिसका नाम था पाकिस्तान।

जाहिर है पाकिस्तान के बनाने का निर्णय अंग्रेजों द्वारा अधिकृत लार्ड माउंटबेटन कर गए, लेकिन वे हिंदुस्तान को अखंड बनाने वाली 536 छोटी-बड़ी रियासतों को लेकर चुप्पी साध गए। यह बेहद चौंकाने वाली बात थी कि उस समय नेहरू के लिए भी तकरीबन 500 से ज्यादा रियासतों को एक करना सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती थी, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपी।

आपको जानकर आश्चर्य भी होगा कि पाकिस्तान के बनने के बाद तो मानों सभी राजाओं को लगा कि उनकी भी एक अपनी सल्तनत होगी और वे विदेशों में एक राष्ट्र के प्रमुख के रूप में जाने जाएंगे।

इसे तरह एक दृढ़ इच्छाशक्ति के कुशल संगठक, शानदार प्रशासक, पटेल के लिए 500 से ज्यादा राजाओं को आजाद भारत में शामिल करना आसान नहीं था। वे उन्हें नई कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इस बात के लिए राजी करने का प्रयास करना चाह रहे थे कि वे भारत की कांग्रेस सरकार के अधीन आ जाए। जिस तरह से उन्होंने हैदराबाद, जूनागढ़ जैसी रियासतों को एक किया वह काबिले तारीफ था। हैदराबाद के लिए तो बाकायदा उन्हें सेना की एक टुकड़ी भेजनी पड़ी। यकीनन विश्व इतिहास में ऐसा कोई शख्स नहीं हुआ, जिसने जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो।

निश्चित ही यह एक बेहद कठिन काम था, क्योंकि जिस कश्मीर समस्या को हम आज देख रहे हैं, वैसे ही कुछ समस्या देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी हो सकती थी, हालांकि जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है, इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु इतिहासकारों की मानें तो सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे, और हम कम से कम इस बात में यकीं कर सकतेहैं कि पटेल होते तो कश्मीर समस्या का आज इस तरह से विकराल नहीं हो सकती थी।

बावजूद नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"








स्रोत: IBNखबर
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