चुनाव आते हैं तो तरह-तरह के ‘कैरेक्टर’ चुनाव लड़ने उतरते हैं. दिलचस्प कहानियों के साथ. चुनाव लड़ना उनका पैशन होता है, साथ ही हारना भी. कुछ चर्चा में बने रहने के लिए ऐसा करते हैं. यूपी में भी ऐसे एक शख्स हैं. नाम है अर्थी बाबा. यूपी चुनाव आ रहे हैं इसलिए अर्थी बाबा भी आ गए हैं.
गोरखपुर के चौरी-चौरा में इन्होने नामांकन पर्चा दाखिल किया है. अर्थी बाबा इसके लिए अर्थी पर चढ़कर आए. ऐसा वो पहले भी करते रहे हैं. उनका चुनाव चिन्ह हांडी है.
कैसे पड़ा ये नाम?
अर्थी बाबा का असली नाम राजन यादव है. अभी यंग हैं. फेसबुक वगैरह पर भी काफी एक्टिव हैं. 2008 में एमबीए कर चुके हैं. बैंकाक में एक मल्टीनेशनल कंपनी में उनकी नौकरी थी. नौकरी छोड़ दी. खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने लगे. तीन भाइयों और दो बहनों में मझले हैं अर्थी बाबा. चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरना हो, चुनाव प्रचार करना हो, आंदोलन करना हो, सब अर्थी पर ही करते हैं.
ये पूछे जाने पर कि वो अर्थी पर अपने आंदोलन काहे करते हैं. इस पर बोलते हैं कि यही जीवन का एकमात्र सत्य है. इसे वो सत्य का प्रतीक मानते हैं. इसके अलावा वो घाट पर जलने वाली चिताओं की पूजा भी करते हैं.
क्यों हैं ख़ास?
खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले अर्थी बाबा गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. 2014 में लखनऊ में राजनाथ सिंह के खिलाफ और वाराणसी में मोदी के खिलाफ पर्चा दाखिल किया था.
लोकल मुद्दों के लिए लड़ते हैं अर्थी बाबा
खुद को बहुत सीरियसली लेते हैं अर्थी बाबा. ‘संघर्ष’ करते हैं मुद्दों पर. पिछले साल गोरखपुर में एम्स की मांग को लेकर नदी में ‘जल सत्याग्रह’ कर डाले. राप्ती नदी के बीच अर्थी बनाकर उस पर रहते थे. नदी का ही पानी पीते थे. इसके अलावा पॉल्यूशन भी उनका बड़ा एजेंडा रहा है.
कई बार वो लोगों को घाट पर स्पीच देते हैं. हाथ में हांडी लेकर. 2012 के विधानसभा चुनावों की ये तस्वीर देखिए जिसमें वो हाथ में हांडी लेकर लोगों को संबोधित कर रहे हैं.
कभी-कभी अजीब हुलिया रख लेते हैं. ये देखिए, एक दूसरे चुनाव में पुलिस की वर्दी में अर्थी पर बैठकर प्रचार कर रहे हैं.
इस बार उनके क्या हैं मुद्दे?
इस बार चुनावों में उन्होंने गन्ना किसानों के भुगतान और सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस का मुद्दा बनाया है. इस बार उन्होंने धमकी दी है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो वो राप्ती नदी में कूदकर ‘जल समाधि’ ले लेंगे. साथ ही कहा है कि इसके लिए प्रशासन जिम्मेदार होगा.
डीएम को भागकर अर्जी दे आते हैं. फोटो वगैरह खिंचाते हैं और अगले दिन अखबार में जगह बना लेते हैं. 2012 में अपने मुद्दों को लेकर डीएम के ऑफिस में तिरंगा लेकर चढ़ गए थे. वहां से भाषण दे रहे थे तभी पुलिस ने इनकी पिटाई कर दी थी.
लगातार चुनाव हारने के बाद भी उन्हें घमंड छू तक नहीं गया है. इसे वो पूरी विनम्रता के साथ लेते हैं. कहते हैं कि चुनाव हारना तो जनता का आशीर्वाद है.चुनाव आते हैं तो तरह-तरह के ‘कैरेक्टर’ चुनाव लड़ने उतरते हैं. दिलचस्प कहानियों के साथ. चुनाव लड़ना उनका पैशन होता है, साथ ही हारना भी. कुछ चर्चा में बने रहने के लिए ऐसा करते हैं. यूपी में भी ऐसे एक शख्स हैं. नाम है अर्थी बाबा. यूपी चुनाव आ रहे हैं इसलिए अर्थी बाबा भी आ गए हैं.
गोरखपुर के चौरी-चौरा में इन्होने नामांकन पर्चा दाखिल किया है. अर्थी बाबा इसके लिए अर्थी पर चढ़कर आए. ऐसा वो पहले भी करते रहे हैं. उनका चुनाव चिन्ह हांडी है.
कैसे पड़ा ये नाम?
अर्थी बाबा का असली नाम राजन यादव है. अभी यंग हैं. फेसबुक वगैरह पर भी काफी एक्टिव हैं. 2008 में एमबीए कर चुके हैं. बैंकाक में एक मल्टीनेशनल कंपनी में उनकी नौकरी थी. नौकरी छोड़ दी. खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने लगे. तीन भाइयों और दो बहनों में मझले हैं अर्थी बाबा. चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरना हो, चुनाव प्रचार करना हो, आंदोलन करना हो, सब अर्थी पर ही करते हैं.
ये पूछे जाने पर कि वो अर्थी पर अपने आंदोलन काहे करते हैं. इस पर बोलते हैं कि यही जीवन का एकमात्र सत्य है. इसे वो सत्य का प्रतीक मानते हैं. इसके अलावा वो घाट पर जलने वाली चिताओं की पूजा भी करते हैं.
क्यों हैं ख़ास?
खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले अर्थी बाबा गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. 2014 में लखनऊ में राजनाथ सिंह के खिलाफ और वाराणसी में मोदी के खिलाफ पर्चा दाखिल किया था.
लोकल मुद्दों के लिए लड़ते हैं अर्थी बाबा
खुद को बहुत सीरियसली लेते हैं अर्थी बाबा. ‘संघर्ष’ करते हैं मुद्दों पर. पिछले साल गोरखपुर में एम्स की मांग को लेकर नदी में ‘जल सत्याग्रह’ कर डाले. राप्ती नदी के बीच अर्थी बनाकर उस पर रहते थे. नदी का ही पानी पीते थे. इसके अलावा पॉल्यूशन भी उनका बड़ा एजेंडा रहा है.
कई बार वो लोगों को घाट पर स्पीच देते हैं. हाथ में हांडी लेकर. 2012 के विधानसभा चुनावों की ये तस्वीर देखिए जिसमें वो हाथ में हांडी लेकर लोगों को संबोधित कर रहे हैं.
कभी-कभी अजीब हुलिया रख लेते हैं. ये देखिए, एक दूसरे चुनाव में पुलिस की वर्दी में अर्थी पर बैठकर प्रचार कर रहे हैं.
इस बार उनके क्या हैं मुद्दे?
इस बार चुनावों में उन्होंने गन्ना किसानों के भुगतान और सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस का मुद्दा बनाया है. इस बार उन्होंने धमकी दी है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो वो राप्ती नदी में कूदकर ‘जल समाधि’ ले लेंगे. साथ ही कहा है कि इसके लिए प्रशासन जिम्मेदार होगा.
डीएम को भागकर अर्जी दे आते हैं. फोटो वगैरह खिंचाते हैं और अगले दिन अखबार में जगह बना लेते हैं. 2012 में अपने मुद्दों को लेकर डीएम के ऑफिस में तिरंगा लेकर चढ़ गए थे. वहां से भाषण दे रहे थे तभी पुलिस ने इनकी पिटाई कर दी थी.
डीएम को भागकर अर्जी दे आते हैं. फोटो वगैरह खिंचाते हैं और अगले दिन अखबार में जगह बना लेते हैं. 2012 में अपने मुद्दों को लेकर डीएम के ऑफिस में तिरंगा लेकर चढ़ गए थे. वहां से भाषण दे रहे थे तभी पुलिस ने इनकी पिटाई कर दी थी.
लगातार चुनाव हारने के बाद भी उन्हें घमंड छू तक नहीं गया है. इसे वो पूरी विनम्रता के साथ लेते हैं. कहते हैं कि चुनाव हारना तो जनता का आशीर्वाद है.
सोर्स:लल्लनटॉप
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