उधर सर्जिकल स्ट्राइक की खबर ब्रेक हुई, इधर सिंह साहब दफ्तरी
बैग लेकर कमरे में दाखिल हुए. बोले, इधर गुजर रहा था तो चला आया. देखा
ग्रू, ये बच्चों की सरकार नहीं है. 60 साल में तुम कद्दू नहीं कवाड़ पाए और
56 इंच वाले ने दिखा दिया.
उस दिन ये एक बहुत ही आम, मतलब आमों की कतार में खड़े सबसे आम जनमानस का बयान था. कहा गया कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पहली बार सेना को ऐसा हौसला मिला कि उसने LOC के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक की और उन्हें ‘सिगनिफिकेंट’ नुकसान पहुंचाया. लेकिन विरोधियों ने कहा कि मोदी सरकार को स्ट्राइक के सबूत दिखा देने चाहिए, ताकि पाकिस्तान का मुंह बंद कराया जा सके. लेकिन ऐसी मांग करने वालों को लगे हाथ देशद्रोही और पाकिस्तानपरस्त कहा गया. जो युद्ध के विरोधी और अमन के समर्थक थे, वे सभी गद्दार कहलाए. कांग्रेस नेता संजय निरूपम के खिलाफ देशद्रोह की शिकायत कर दी गई. बीजेपी ने कहा कि केजरीवाल इस मामले पर राजनीति न करें और फिर जगह-जगह मोदी की तस्वीरों के साथ बधाई के होर्डिंग लगवा दिए.
पाकिस्तान की ओर से जब इस हमले के लिए भारत सरकार पर उंगली उठाई गई तो नई दिल्ली की ओर से जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया गया. हालांकि उस वक्त कुछ अमेरिकी अधिकारियों की ओर से माना गया था कि ये कार्रवाई पठानकोट और ढाकीकोट के गांवों में 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बदले की गई थी.
अखबार ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी डीजीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया था कि पाकिस्तान ने इस घटना को जानबूझकर ज्यादा तूल नहीं दिया. इस अधिकारी के मुताबिक जनरल मुशर्रफ को तख्तापलट किए कुछ ही दिन हुए थे और वो नहीं चाहते थे कि इस पर लोगों में ज्यादा शोर मचे और भारत के साथ फिर संकट पैदा हो.
भारतीय सेना के सूत्रों का कहना था कि भारत ने ये कार्रवाई कैप्टन सौरभ कालिया और 4 जाट रेजीमेंट के पांच जवानों- सिपाही भंवर लाल बागरिया, अर्जुन राम, भीखा राम, मूला राम और नरेश सिंह की शहादत के बाद की थी.
इसी दौरान 2 मार्च 2000 को लश्कर ए तैयबा के आतंकियों ने एक हमले में 35 सिखों की हत्या की. तब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की ओर से 9 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) को सरहद पार कर कार्रवाई की इजाजत दी गई थी. इसके बाद स्पेशल फोर्स के मेजर की अगुआई में भारतीय सैनिकों ने एलओसी पार जाकर 28 पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों का काम तमाम किया.
पाकिस्तान की ओर से फिर कहा गया कि सावन पात्रा में स्थित उसकी पोस्ट पर भारतीय सैनिकों ने हमला किया. हालांकि भारत ने पाकिस्तान के इस दावे का उस वक्त खंडन किया. भारतीय सेना के तत्कालीन प्रवक्ता जगदीश दहिया ने कहा- ‘हमारे किसी भी सैनिक ने एलओसी को पार नहीं किया.’
इस घटना पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिल्ली में कहा, ‘इसे इस तरह देखा जाना चाहिए. सावन पात्रा को निशाना बनाने के लिए एलओसी पार जाने की औपचारिक इजाजत नहीं थी. लेकिन तनाव की गर्मी में इस तरह की चीजें होती रहती हैं. पाकिस्तान ऐसा करता है, हमारी सेना ऐसा करती है. ये 1990 में जम्मू-कश्मीर में लड़ाई शुरू होने के बाद से ही चल रहा है.’
उस वक्त भारतीय सेना के प्रवक्ता नरेश विज ने कहा, “कोई शव नहीं मिला और वो (पाकिस्तान) ऐसे झूठ बोलते रहे हैं.” हालांकि सेक्टर में तैनात भारतीय खुफिया अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड माना था कि ये लोग वास्तव में स्पेशल फोर्सेज की कार्रवाई में मारे गए थे. हालांकि इन खुफिया अधिकारियों का ये भी कनहा था कि ये सारे लोग जिहादी संगठन से थे और एलओसी से घुसपैठ करना चाह रहे थे. इन अधिकारियों के मुताबिक सेना किसी भी निर्दोष नागरिक के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं करती.
सोर्स:लल्लनटॉप
उस दिन ये एक बहुत ही आम, मतलब आमों की कतार में खड़े सबसे आम जनमानस का बयान था. कहा गया कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पहली बार सेना को ऐसा हौसला मिला कि उसने LOC के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक की और उन्हें ‘सिगनिफिकेंट’ नुकसान पहुंचाया. लेकिन विरोधियों ने कहा कि मोदी सरकार को स्ट्राइक के सबूत दिखा देने चाहिए, ताकि पाकिस्तान का मुंह बंद कराया जा सके. लेकिन ऐसी मांग करने वालों को लगे हाथ देशद्रोही और पाकिस्तानपरस्त कहा गया. जो युद्ध के विरोधी और अमन के समर्थक थे, वे सभी गद्दार कहलाए. कांग्रेस नेता संजय निरूपम के खिलाफ देशद्रोह की शिकायत कर दी गई. बीजेपी ने कहा कि केजरीवाल इस मामले पर राजनीति न करें और फिर जगह-जगह मोदी की तस्वीरों के साथ बधाई के होर्डिंग लगवा दिए.
लेकिन अब कांग्रेस ने भी दावा किया है कि उनके समय में भारतीय सेना ने कई बार सर्जिकल स्ट्राइक की, लेकिन कभी ‘राजनीतिक फायदे’ के लिए उनकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई. कांग्रेस ने तीन बार का दावा किया है, एक बार 2011 में. दो बार 2013 में.
किसी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगना देशद्रोह है तो सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर होर्डिंग लगाकर वोट मांगना देशप्रेम है क्या?
लेकिन ‘इंडिया टुडे’ के मुताबिक, बीते 18 साल में कम से कम 9 बार भारतीय सेना ने एलओसी के पार जाकर ऑपरेशंस किए. इसमें एनडीए का पिछला कार्यकाल भी शामिल है. इस दौर में भारतीय सेना की ओर से एलओसी पार करने की पहली घटना मई 1998 में हुई. वहीं 29 सितंबर की हालिया सर्जिकल स्ट्राइक से पहले अगस्त 2013 में सेना ने आखिरी बार एलओसी पार करके ऑपरेशन किया था.हालांकि इन 9 ऑपरेशंस के बारे में भारत सरकार ने ना तो कभी सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया और ना ही कभी दूसरी तरफ हुए नुकसान की जानकारी दी. देश के उच्च पदस्थ इंटेलीजेंस सूत्रों और सेना के रिटायर्ड अधिकारियों से बात करने के अलावा इंडिया टुडे ने बीते दो दशक की मीडिया रिपोर्ट्स को क्रॉस चेक किया.
1. मई 1998
पाकिस्तान ने खुद भारतीय सेना के इस ऑपरेशन की संयुक्त राष्ट्र से 1998 में शिकायत की. संयुक्त राष्ट्र की सालाना किताब (1998) के पेज 321 पर ये शिकायत दर्ज है. इसके मुताबिक पाकिस्तान ने 4 मई को शिकायत में कहा कि पीओके में एलओसी के 600 मीटर पार बंदाला सेरी में 22 लोगों को मार डाला गया. पाकिस्तानी गांव में मौजूद कुछ चश्मदीदों के हवाले से ये भी बताया गया, “करीब एक दर्जन शख्स, काले कपड़ों में आधी रात को आए. उन्होंने कुछ पर्चे भी छोड़े जिस पर एक में लिखा था- ‘बदला ब्रिगेड’. वहीं दूसरे पर्चे पर लिखा था- ‘बुरे काम का बुरा नतीजा.’ एक और पर्चे पर लिखा था- ‘एक आंख के बदले 10 आंखें, एक दांत के बदले पूरा जबड़ा.’पाकिस्तान की ओर से जब इस हमले के लिए भारत सरकार पर उंगली उठाई गई तो नई दिल्ली की ओर से जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया गया. हालांकि उस वक्त कुछ अमेरिकी अधिकारियों की ओर से माना गया था कि ये कार्रवाई पठानकोट और ढाकीकोट के गांवों में 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बदले की गई थी.
2. 1999 की गर्मियां
1999 की गर्मियों में करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने जम्मू के पास मुनावर तवी नदी से एलओसी को क्रॉस किया था. इस ऑपरेशन में पाकिस्तान की एक पूरी चौकी को उड़ा दिया गया. उसी घटना के बाद पाकिस्तान ने बॉर्डर एक्शन टीम (BAT) का गठन किया था. इसमें पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप (SAG) के कमांडो को शामिल किया गया था. जनवरी में एक भारतीय सैनिक का सिर कलम कर देने के लिए BAT को ही जिम्मेदार माना जाता है.3. जनवरी 2000
करगिल युद्ध के 6 महीने बीत चुके थे. 21-22 जनवरी 2000 को नीलम नदी के पार नडाला एनक्लेव में एक पोस्ट पर रेड की गई और 7 पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़े जाने का दावा किया गया. पाकिस्तान के मुताबिक ये सातों सैनिक भारतीय सैनिकों की गोलीबारी में घायल हुए थे. बाद में इन सैनिकों के शवों को पाकिस्तान को वापस कर दिया गया था.अखबार ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी डीजीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया था कि पाकिस्तान ने इस घटना को जानबूझकर ज्यादा तूल नहीं दिया. इस अधिकारी के मुताबिक जनरल मुशर्रफ को तख्तापलट किए कुछ ही दिन हुए थे और वो नहीं चाहते थे कि इस पर लोगों में ज्यादा शोर मचे और भारत के साथ फिर संकट पैदा हो.
भारतीय सेना के सूत्रों का कहना था कि भारत ने ये कार्रवाई कैप्टन सौरभ कालिया और 4 जाट रेजीमेंट के पांच जवानों- सिपाही भंवर लाल बागरिया, अर्जुन राम, भीखा राम, मूला राम और नरेश सिंह की शहादत के बाद की थी.
4. मार्च 2000
सूत्र बताते हैं कि करगिल युद्ध के बाद एलओसी पर तैनात 12 बिहार बटालियन के कैप्टन गुरजिंदर सिंह इंफैन्ट्री बटालियन कमांडो (घातक) की टीम के साथ एलओसी पार जाकर पाकिस्तानी चौकी पर धावा बोला. ये पाकिस्तानी सेना के इससे पहले किए गए हमले की जवाबी कार्रवाई थी. भारत के इस ऑपरेशन में कैप्टन सूरी शहीद हो गए. उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.इसी दौरान 2 मार्च 2000 को लश्कर ए तैयबा के आतंकियों ने एक हमले में 35 सिखों की हत्या की. तब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की ओर से 9 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) को सरहद पार कर कार्रवाई की इजाजत दी गई थी. इसके बाद स्पेशल फोर्स के मेजर की अगुआई में भारतीय सैनिकों ने एलओसी पार जाकर 28 पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों का काम तमाम किया.
5. सितंबर 2003
2003 में दोनों देशों के बीच सीजफायर लागू हो गया. इसके बाद एलओसी पार करके हुए ऑपरेशंस की ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन पाकिस्तान की ओर से एलओसी पर निगरानी वाले संयुक्त राष्ट्र प्रेषक दल (UNMOGIP) को दर्ज शिकायतों से पता चलता है कि क्रॉस बॉर्डर ऑपरेशंस बदस्तूर जारी रहे. पाकिस्तान ने एक शिकायत में दावा किया कि भारतीय सैनिकों ने 18 सितंबर 2003 को पुंछ के भिम्बर गली के पास बरोह सेक्टर में एक पोस्ट पर हमला किया. इस घटना में पाकिस्तानी जेसीओ समेत 4 जवान मारे गए.6. जून 2008
2008 में भी कम से कम दो बार ऐसी घटनाएं हुईं. ये वो साल था जब एलओसी पर टकराव की घटनाएं बढ़ने लगी थीं. पाकिस्तान की शिकायतों के रिकॉर्ड के मुताबिक पूंछ के भट्टल सेक्टर में 19 जून 2008 को भारतीय सैनिकों की कार्रवाई में चार पाकिस्तानी जवान मारे गए. इससे पहले 5 जून 2008 को पूंछ के सलहोत्री गांव में क्रांति बार्डर निगरानी पोस्ट पर हमला हुआ था जिसमे 2-8 गुरखा रेजीमेंट का जवान जावाश्वर छामे शहीद हुआ था.7. अगस्त 2011
30 अगस्त 2011 को पाकिस्तान ने शिकायत दर्ज कराई कि उसके एक जेसीओ समेत चार जवान केल में नीलम नदी घाटी के पास भारतीय सेना की कार्रवाई में मारे गए. अखबार ‘द हिंदू’ ने इस घटना पर सूत्रों के हवाले से बताया था कि ये ऑपरेशन कारनाह मे भारतीय जवानों पर हमले में दो भारतीय सैनिकों की हत्या और उनके शवों को क्षतविक्षत किए जाने के बदले में किया गया था.8. जनवरी 2013
‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट में 6 जनवरी 2013 की एक घटना का इस तरह जिक्र है- ‘6 जनवरी 2013 की रात को क्रॉस बार्डर फायरिंग के बाद 19 इंफैन्ट्री डिविजन कमांडर गुलाब सिंह रावत ने पाकिस्तानी पोस्ट पर हमला करने की इजाजत मांगी. इस पाकिस्तानी पोस्ट से भारतीय सैनिकों को निशाना बनाया जा रहा था.’पाकिस्तान की ओर से फिर कहा गया कि सावन पात्रा में स्थित उसकी पोस्ट पर भारतीय सैनिकों ने हमला किया. हालांकि भारत ने पाकिस्तान के इस दावे का उस वक्त खंडन किया. भारतीय सेना के तत्कालीन प्रवक्ता जगदीश दहिया ने कहा- ‘हमारे किसी भी सैनिक ने एलओसी को पार नहीं किया.’
इस घटना पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिल्ली में कहा, ‘इसे इस तरह देखा जाना चाहिए. सावन पात्रा को निशाना बनाने के लिए एलओसी पार जाने की औपचारिक इजाजत नहीं थी. लेकिन तनाव की गर्मी में इस तरह की चीजें होती रहती हैं. पाकिस्तान ऐसा करता है, हमारी सेना ऐसा करती है. ये 1990 में जम्मू-कश्मीर में लड़ाई शुरू होने के बाद से ही चल रहा है.’
9. अगस्त 2013
अगस्त 2013 के शुरू में जाफरान गुलाम सरवर, वाजिद अकबर, मोहम्मद वाजिद अकबर और मोहम्मद फैसल ने नीलम घाटी में पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में अपने घरों को छोड़ा था, लेकिन उसके बाद कभी वापस नहीं आए. भारत का कहना था कि उसे नहीं पता कि इन लोगों का क्या हुआ. पाकिस्तान के मुताबिक इन चारों के गायब होने के कुछ दिन बाद ही खबर आई कि पांच अज्ञात लोग भारतीय सैनिकों की फायरिंग में मारे गए. इनके शव एलओसी के पार 500 मीटर दूर भारत के कब्जे वाले क्षेत्र में पाए गए.उस वक्त भारतीय सेना के प्रवक्ता नरेश विज ने कहा, “कोई शव नहीं मिला और वो (पाकिस्तान) ऐसे झूठ बोलते रहे हैं.” हालांकि सेक्टर में तैनात भारतीय खुफिया अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड माना था कि ये लोग वास्तव में स्पेशल फोर्सेज की कार्रवाई में मारे गए थे. हालांकि इन खुफिया अधिकारियों का ये भी कनहा था कि ये सारे लोग जिहादी संगठन से थे और एलओसी से घुसपैठ करना चाह रहे थे. इन अधिकारियों के मुताबिक सेना किसी भी निर्दोष नागरिक के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं करती.
ये थे बीते 18 साल के वो 9 वाकये जब भारतीय सेना ने एलओसी के पार जाकर ऑपरेशन को अंजाम दिया था. इन 9 ऑपरेशन्स में सिर्फ मई 1998 के पहले ऑपरेशन को ही पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर कबूल किया. बाकी सभी ऑपरेशन्स को नाम न बताने की शर्त पर भारतीय अधिकारियों ने माना कि वो हकीकत में हुए थे. ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि बीते 18 साल में और भी कई ऑपरेशन्स हुए होंगे लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों की तरफ से ही उन्हें तूल नहीं दिया गया. ऐसा इसलिए हुआ कि सरहद पर ज्यादा तनाव ना बढ़े.90 के दशक के आखिरी वर्षों के बाद एलओसी पर, कम से कम भारत की तरफ, कई अहम बदलाव आए हैं. अब यहां तीन स्तरीय सुरक्षा है. रिमोट कंट्रोल से संचालित मशीन गन, जमीनी और मोशन सेंसर्स और ड्रोन्स के जरिेये मॉनटरिंग आदि सभी कुछ यहां देखे जा सकते हैं. लेकिन इस सबके बावजूद इस पूरे अरसे में एलओसी के पार जाकर ऑपरेशंस होेते रहे. पाकिस्तान की ओर से ऐसे बदलाव नहीं हुए जिससे एलओसी को अभेद्य माना जा सके.
सोर्स:लल्लनटॉप
एक टिप्पणी भेजें