स्कूलों का सिस्टम पूरी तरह बदल गया है. न पहले वाले टीचर हैं न
वैसे स्टूडेंट्स. सबसे बुरी चीज जो लुप्त हुई है वो है टीचर्स की मार. या
कहो रिवर्स हो गई है. अब नौवीं दसवीं के लड़कों को टीचर हड़का दें तो वो
उनको बाहर निकलते ही ‘देख लेते’ हैं. ये परिवर्तन इसी 10- 15 साल में हुआ.
उससे पहले पढ़ाई किए हुए हाईस्कूल के लड़कों को जब सूरजभान सिंह छाप मास्टर
हौंकते थे तो…. रहने दो. बताएंगे नहीं तो बेइज्जती होगी. खैर उस जमाने में
हम सबने इतने टाइप्स के टीचर झेले हैं. इनमें से कुछेक प्रजातियां अब भी
मिलती हैं. लेकिन अधिकतर के जीवाश्म बचे हैं बस. देखो तुमको कौन कौन पढ़ाते
थे.
जैसे कोई यज्ञ शुरू करने से पहले बाबा साधु लोग खल अर्थात शैतान के चाचाओं को नमन करते हैं. उसी तरह लिस्टिकल के शुरू में ही इनको जगह मिलनी चाहिए. नहीं तो इनके हाथ से छूटता हुआ डस्टर कनपटी पर आकर लगेगा और तुम सपने से जाग जाओगे. इनको मारने के लिए किसी वजह और प्रभाव की जरूरत नहीं होती. तुम टिफिन नहीं लाए उस पर भी इनकी एक फुट की पटरी चल जाती है. कई बार ये पीटने के इतने शौकीन होते थे कि ऑर्डर देकर वो रामबाण डंडा बनवाते थे, जो उनकी पहचान बन जाए.
“दस बार पूछो दस बार बताऊंगा, लेकिन जब मैं पूछूं तो मुंह नहीं लटकाना घोड़े जैसा.” अमा ये डायलॉग तो हर तीसरा टीचर बोलता है. इसके अलावा उन्होंने कुछ वाक्य या शब्द मन्तर मार के साध रखे होते थे. क्लास के बीच में सम्पुट की तरह इस्तेमाल करन के लिए. जैसे “आई बात समझ में”, “क्या कहते हैं?” ईटीसी.
ये दो तरह के होते थे. एक तो शुद्ध आयुर्वेदिक खैनी खाने वाले. निजी हथेलियों पर पीटकर. दूसरे बना बनाया पान या गुटखा खाने वाले. दोनों की दो किस्में होती थीं. एक तो स्कूल बंद होने पर चुरा छिपाकर खाते थे. कुछ स्कूल में ही, खुल्लमखुल्ला. सबसे मस्त वो होते थे जो क्लास के लड़के भेजकर पुड़िया मंगाते थे और उसके बदले में उन्हें न पीटने का रिवॉर्ड देते थे.
इन्हें काम के घंटे कम पड़ते थे. इसलिए घर का काम स्कूल में करती थीं. मुन्ने और उसके पापा का स्वेटर बुनने के अलावा थोड़ा बहुत बुटीक का काम भी.
ऐसा लगता है कि इन्हीं के पढ़ाए हुए लड़के आगे चलकर जासूस करमचंद, इंस्पेक्टर भारत और डिटेक्टिव करण बने. ये लोग बचपन में जेम्स बॉन्ड टीचर के गुप्तचर हुआ करते थे. ये टीचर हर क्लास में एक विभीषण स्टूडेंट चुनते थे. उसे पेन्सिल, टॉफी और दो रुपए वाले पारले जी पैकेट के लालच पर हायर करते थे. फिर ये छोटे जासूस क्लास में जो भी बदतमीजी करता था, चॉक चुराकर घर ले जाता था या टीचर्स की नकल उतारता था, उसका भेद जेम्स बॉन्ड को बता देते थे. और फिर उसकी शामत आ जाती थी.
ये अपनी तरह के अलहदा मास्टर होते थे. अगर क्लास में किसी ने मुर्गी की आवाज निकाली. और इन्होंने तमाम प्रयासों के बाद भी सही मुजरिम नहीं पकड़ा. फिर खुन्नस में पूरी क्लास को लाइन में खड़ाकर पीटते थे.
प्यार में पगे तो नहीं कह सकते. मजनू भी ठीक नाम नहीं है. क्योंकि मजनू सिर्फ लैला का था. इनको स्कूल जॉइन करने वाली हर मैम के इनर वेयर का साइज जानने की जल्दी रहती थी. लाइन पर लाने के लिए समोसे से लेकर ब्यूटी पार्लर तक का खर्च उठाने को मुस्तैद. कंटाप और डांट खाने पर भी हार न मानने वाले. प्रगति के पथ पर सतत अग्रसर.
हमेशा अकेले चलते थे तनकर. नहीं नहीं. शेर, कुत्ते, अकेले, झुंड वाली बात नहीं है. इनकी किसी से बनती नहीं थी. इनको सारे टीचर्स साजिशकर्ता लगते थे. कभी किसी और के साथ इनको बैठकर चाय पीते या बात करते नहीं देखा. टीचर्स भी इनको देखते ही कनफुस्की शुरू कर देते थे. हमें सारी स्कूल लाइफ ये सोचते हुई गुजर गई कि एक दिन इसकी लाश स्कूल के पीछे वाले बाग में या किसी पुल के नीचे मिलेगी.
समझ तो गए ही होगे. इन्होंने स्कूल जॉइन ही इसलिए किया होता था कि घरवालों के टंटे से दूर कहीं सोया जा सके.
इनको आखिरी में रखा है लेकिन सात कसम ले लो जो ये बुरा मान जाएं. स्कूल की करेले की सब्जी में ये जलेबी होते थे. कला या पीटी वाला पीरियड इनका होता था. कोई और भी हो सकता था. बहुत हंसी लगाते थे. कहानियां सुनाते थे. गलती होने पर मारते पीटते नहीं थे. लड़के इनके कंधे पर बैठके मूतते थे.
सोर्स:लल्लनटॉप
1: मारू मास्टर
जैसे कोई यज्ञ शुरू करने से पहले बाबा साधु लोग खल अर्थात शैतान के चाचाओं को नमन करते हैं. उसी तरह लिस्टिकल के शुरू में ही इनको जगह मिलनी चाहिए. नहीं तो इनके हाथ से छूटता हुआ डस्टर कनपटी पर आकर लगेगा और तुम सपने से जाग जाओगे. इनको मारने के लिए किसी वजह और प्रभाव की जरूरत नहीं होती. तुम टिफिन नहीं लाए उस पर भी इनकी एक फुट की पटरी चल जाती है. कई बार ये पीटने के इतने शौकीन होते थे कि ऑर्डर देकर वो रामबाण डंडा बनवाते थे, जो उनकी पहचान बन जाए.
2: तकियाकलाम मास्टर
“दस बार पूछो दस बार बताऊंगा, लेकिन जब मैं पूछूं तो मुंह नहीं लटकाना घोड़े जैसा.” अमा ये डायलॉग तो हर तीसरा टीचर बोलता है. इसके अलावा उन्होंने कुछ वाक्य या शब्द मन्तर मार के साध रखे होते थे. क्लास के बीच में सम्पुट की तरह इस्तेमाल करन के लिए. जैसे “आई बात समझ में”, “क्या कहते हैं?” ईटीसी.
3: खैनी मास्टर
ये दो तरह के होते थे. एक तो शुद्ध आयुर्वेदिक खैनी खाने वाले. निजी हथेलियों पर पीटकर. दूसरे बना बनाया पान या गुटखा खाने वाले. दोनों की दो किस्में होती थीं. एक तो स्कूल बंद होने पर चुरा छिपाकर खाते थे. कुछ स्कूल में ही, खुल्लमखुल्ला. सबसे मस्त वो होते थे जो क्लास के लड़के भेजकर पुड़िया मंगाते थे और उसके बदले में उन्हें न पीटने का रिवॉर्ड देते थे.
4: कुशल गृहिणी गृहकार्य दक्ष मैम
इन्हें काम के घंटे कम पड़ते थे. इसलिए घर का काम स्कूल में करती थीं. मुन्ने और उसके पापा का स्वेटर बुनने के अलावा थोड़ा बहुत बुटीक का काम भी.
5: जेम्स बॉन्ड
ऐसा लगता है कि इन्हीं के पढ़ाए हुए लड़के आगे चलकर जासूस करमचंद, इंस्पेक्टर भारत और डिटेक्टिव करण बने. ये लोग बचपन में जेम्स बॉन्ड टीचर के गुप्तचर हुआ करते थे. ये टीचर हर क्लास में एक विभीषण स्टूडेंट चुनते थे. उसे पेन्सिल, टॉफी और दो रुपए वाले पारले जी पैकेट के लालच पर हायर करते थे. फिर ये छोटे जासूस क्लास में जो भी बदतमीजी करता था, चॉक चुराकर घर ले जाता था या टीचर्स की नकल उतारता था, उसका भेद जेम्स बॉन्ड को बता देते थे. और फिर उसकी शामत आ जाती थी.
6: सनकाधिपति
ये अपनी तरह के अलहदा मास्टर होते थे. अगर क्लास में किसी ने मुर्गी की आवाज निकाली. और इन्होंने तमाम प्रयासों के बाद भी सही मुजरिम नहीं पकड़ा. फिर खुन्नस में पूरी क्लास को लाइन में खड़ाकर पीटते थे.
7: मजनू मास्टर
प्यार में पगे तो नहीं कह सकते. मजनू भी ठीक नाम नहीं है. क्योंकि मजनू सिर्फ लैला का था. इनको स्कूल जॉइन करने वाली हर मैम के इनर वेयर का साइज जानने की जल्दी रहती थी. लाइन पर लाने के लिए समोसे से लेकर ब्यूटी पार्लर तक का खर्च उठाने को मुस्तैद. कंटाप और डांट खाने पर भी हार न मानने वाले. प्रगति के पथ पर सतत अग्रसर.
8: वर्ल्ड वॉर टीचर
हमेशा अकेले चलते थे तनकर. नहीं नहीं. शेर, कुत्ते, अकेले, झुंड वाली बात नहीं है. इनकी किसी से बनती नहीं थी. इनको सारे टीचर्स साजिशकर्ता लगते थे. कभी किसी और के साथ इनको बैठकर चाय पीते या बात करते नहीं देखा. टीचर्स भी इनको देखते ही कनफुस्की शुरू कर देते थे. हमें सारी स्कूल लाइफ ये सोचते हुई गुजर गई कि एक दिन इसकी लाश स्कूल के पीछे वाले बाग में या किसी पुल के नीचे मिलेगी.
9: सोती सुंदरी मैम
समझ तो गए ही होगे. इन्होंने स्कूल जॉइन ही इसलिए किया होता था कि घरवालों के टंटे से दूर कहीं सोया जा सके.
10: गऊ मास्टर
इनको आखिरी में रखा है लेकिन सात कसम ले लो जो ये बुरा मान जाएं. स्कूल की करेले की सब्जी में ये जलेबी होते थे. कला या पीटी वाला पीरियड इनका होता था. कोई और भी हो सकता था. बहुत हंसी लगाते थे. कहानियां सुनाते थे. गलती होने पर मारते पीटते नहीं थे. लड़के इनके कंधे पर बैठके मूतते थे.
सोर्स:लल्लनटॉप
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