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छत्तीसगढ़ की राजधानी के बूढ़ापारा स्थित स्वयंभू बूढ़ेश्वर महादेव की भस्म आरती के लिए रामेश्वरम से भस्म मंगाई जाती है। हर सोमवार को रोजाना भस्म आरती होती है। इस मंदिर की पूजा चार सौ साल पहले आदिवासी किया करते थे। यहां भोलेनाथ आदिवासियों द्वारा बूढ़ादेव के रूप में पूजे जाते रहे हैं। कालांतर में यह मंदिर बूढ़ापारा स्थित रायपुर पुष्टिकर समाज के अधीन है।


मंदिर प्रभारी राजकुमार व्यास ने बताया कि वर्ष 1923 से रायपुर पुष्टिकर समाज इस मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी उठा रहा है। विक्रम संवत् 2009 में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। वर्तमान में विक्रम संवत् 2072 चल रहा है।
 मंदिर परिसर के सभामंडप में हनुमान जी, गायत्री माता, नरसिंग भगवान, राधाकृष्ण का मंदिर भी है और मंदिर परिसर में काल भैरव व माता संतोषी के मंदिर हैं। यहां आरती का समय प्रतिदिन सुबह साढ़े 5 बजे व शाम साढ़े 7 बजे निर्धारित है। मंदिर के मुख्य पुजारी बुद्धनारायण द्विवेदी हैं। यहां महादेव को प्रतिदिन दोपहर 12 बजे भोग लगाया जाता है।
व्यास ने बताया कि रविवार को सावन के पांचवें दिन दोपहर 12 से शाम 5 बजे तक बूढ़ेश्वर महादेव का सहस्रघट अभिषेक हुआ। इस अभिषेक के लिए राजधानी की जीवनदायिनी खारून, राजिम के त्रिवेणी संगम का पवित्र जल सहित गंगा, नर्मदा का पावन जल लाया गया। 
सावन के प्रति रविवार सहस्रघट जलधारा अभिषेक किया जाएगा। व्यास बताते हैं कि मंदिर में एक बड़े ड्रम में इन सभी स्थानों के पवित्र जल को मिलाकर मिट्टी के घड़ों में जल भरकर बूढ़ेश्वर महादेव का सहस्रघट अभिषेक किया जाता है। साथ ही दुग्धाभिषेक निरतंर किया जा रहा है।
मंदिर में ऐसी व्यवस्था की गई है कि श्रृंगार के बाद भी निरंतर हो रहे दुग्धाभिषेक से श्रृंगार खराब न हो सके। राजकुमार व्यास ने बताया कि सोमवार को बूढ़ेश्वर महादेव का स्वरूप पेड़ा से बनाया गया। साथ ही मिट्टी के कलश से बूढ़ेश्वर महादेव गर्भगृह में विशेष श्रृंगार किया गया, जो अपने आप में अद्भुत था।
 दिनभर भक्तों का रैला बूढ़ेश्वर महादेव के दर्शनार्थ उमड़ा रहा। भक्त भोलेनाथ को प्रिय बेलपत्र, धतूरा, बेलफल, कनेर, आखड़े का फूलों की माला, धूप, दीप, अगरबत्ती, नारियल आदि से रिझाने में लगे रहे। भक्तों ने बूढ़ेश्वर महादेव का दर्शनलाभ लेकर मंगलकामना में कतारबद्ध रहे।
राजकुमार व्यास ने बताया कि सावन के प्रत्येक सोमवार को विशेष श्रृंगार किया जाएगा। मंदिर का पट सुबह 4 बजे खोला जाएगा। एक घंटा अभिषेक के बाद रामेश्वरम से लाई गई भस्म से बूढ़ेश्वर महादेव की भस्म आरती होगी, इसके बाद पट खोल दिए जाएंगे, जो दोपहर 12 बजे तक खुले रहेंगे। दोपहर 12 बजे बूढ़ेश्वर महादेव को राजभोग लगाया जाएगा। 
उन्होंने बताया कि सुबह 4 बजे से रात्रि 11 बजे तक भक्तों को बूढ़ेश्वर महादेव के दर्शन का लाभ देने मंदिर के पट खुले रहेंगे। सावन के पावन माह में मुख्य शिवलिंग में लगातार दुग्ध अभिषेक जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि प्रत्येक रविवार को सहस्रघट जलधारा अभिषेक होगा। प्रति सोमवार रात्रि 8 बजे आरती होगी और रात 11 बजे बूढ़ेश्वर महादेव के शयन के बाद मंदिर के पट बंद होंगे।



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