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महाभारत का महायुद्ध पांडवों की जीत की कहानी है लेक‌‌िन महाभारत की कहानी कुछ और होती अगर भगवान श्री कृष्‍ण उस समय सामने नहीं आते जब अर्जुन की जान पर बन आई। महाभारत में बताया गया है क‌ि जब महायुद्ध चल रहा था उस दौरान 5 बार ऐसा हुआ क‌ि अर्जुन के प्राण संकट में आ गए और पांडवों को लगा क‌ि महाभारत युद्ध में उनकी हार न‌िश्च‌ित है। लेक‌िन ब‌िना युद्ध क‌िए श्री कृष्‍ण ने ऐसी चाल चली क‌ि अर्जुन बन गए महाभारत युद्ध के महानायक और पांडव हुए महाभारत के व‌िमहाभारत के महायुद्ध के दौरान कई बार अर्जुन की जान पर संकट आया लेक‌िन हर बार श्री कृष्‍ण ने बचाई जान।जेता। तो आइए जानें क‌ि महाभारत में कब और कैसे अर्जुन की जान पर बन आई।


inside story of mahabharat

महाभारत युद्ध के दौरान जयद्रथ ने भगवान श‌िव के वरदान के कारण एक द‌िन अर्जुन को छोड़कर सभी पांडवों को पराज‌ित कर द‌िया इसी द‌िन अभ‌िमन्यु का भी वध कर द‌िया गया। अर्जुन ने अभ‌िमन्यु वध से दुखी होकर प्रण क‌िया क‌ि अगले द‌िन जयद्रथ का वध करेगा। अगर वह ऐसा नहीं कर पाए तो प्राण त्‍याग देंगे। अगले द‌िन जब युद्ध हुआ तो अर्जुन ने जयद्रथ को मारने की खूब कोश‌िश की लेक‌िन वक्त बीतता जा रहा था और सूर्य ढ़लने जा रहा था। कौरव खुश हो रहे थे क‌ि अर्जुन आत्मदाह कर लेगा। इस संकट की घड़ी में श्री कृष्‍ण ने अपने चक्र से सूर्य को ढक द‌िया और कौरव सेना में उत्‍साह की लहर दौड़ पड़ी। जयद्रथ अपने रथ से कूदकर अर्जुन के सामने आ गया। ठीक इसी समय श्री कृष्‍ण ने अपना चक्र सूर्य से हटा द‌िया और द‌िन न‌िकल आया। अर्जुन ने पल भर में अपने गांडीव धनुष का रुख जयद्रथ की ओर क‌िया और जयद्रथ का वध सफल हुआ। इस तरह श्री कृष्‍ण की चाल से अर्जुन की जान बची।



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दूसरी बार अर्जुन की जान पर तब बन आई जब कर्ण से अर्जुन का युद्ध चल रहा था। युद्ध के दौरान कर्ण ने सर्पमखास्त्र का प्रयोग क‌िया और वह सीधा अर्जुन के प्राण लेने के ल‌िए चल पड़ा। लेक‌िन श्री कृष्‍ण ने पलक झपकते ही अंगूठे से रथ को पांच इंच नीचे दबा द‌िया ज‌िससे सर्पमखास्त्र अर्जुन के मुकुट को काटता हुआ चला गया और अर्जुन की जान बच गई।


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कर्ण के सेनापत‌ि बनने के बाद अर्जन और कर्ण के बीच तीन द‌िनों तक युद्ध चला था। श्री कृष्‍ण इस बात से च‌िंत‌ित थे क‌ि कर्ण के पास इंद्र का द‌िया अमोघ वाण है। कर्ण ने अगर इसका प्रयोग क‌िया तो अर्जुन की मृत्यु न‌िश्च‌ित है। श्री कृष्‍ण ने इस वाण से अर्जुन को बचाने के ल‌िए भीम के पुत्र घटोत्कच को युद्ध के मैदान में बुला ‌ल‌िया। घटोत्कच ने कौरव सेना में हाहाकार मचा द‌िया। परेशान होकर दुर्योधन ने घटोत्कच पर अमोघ वाण चलाने के ल‌िए कर्ण को मजबूर क‌िया और इस वाण के प्रयोग से घटोत्कच मारा गया। कर्ण इस अमोघ वाण का प्रयोग स‌िर्फ एक बार कर सकता था इसल‌िए एक बार प्रयोग के बाद यह वाण वापस इंद्र के पास लौट गया। इस तरह अर्जुन पर आने वाला संकट टल गया।




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महाभारत युद्ध के आख‌िरी द‌िन जब अर्जुन को युद्ध क्षेत्र से श‌िव‌िर लौटे श्री कृष्‍ण तब अर्जुन को पहले रथ से उतरने के ल‌िए कहा जबक‌ि हर द‌िन स्वयं पहले रथ से उतरते थे। श्री कृष्‍ण की आज्ञा मानकर अर्जुन पहले रथ से उतर गए और बाद में जैसे ही श्री कृष्‍ण उतरे रथ धू-धू करके जलने लगा। तब अर्जुन को श्री कृष्‍ण ने बताया क‌ि यह रथ तो भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और कर्ण के द‌िव्यास्‍त्रों से पहले ही जल चुका था। मेरे संकल्प के कारण यह अब तक जीव‌ित द‌‌िख रहा था।


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इन सभी घटनाओं से पहले एक और बड़ी घटना हुई थी जब घटोत्कच का पुत्र बर्बर‌िक युद्ध में शाम‌िल होने के ल‌िए आया। बर्बर‌िक उनकी ओर से युद्ध करना चाहता था जो युद्ध में  पराज‌ित होता। श्री कृष्‍ण जानते थे क‌ि इस युद्ध में पांडवों की जीत होगी ऐसे में श्री कृष्‍ण ने अपनी चाल में बर्बर‌िक को उलझा कर उसका स‌िर दान में मांग ल‌िया। इस तरह महाभारत युद्ध के महानायक बन गए अर्जुन।






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