अकबर बड़े विनोदी स्वभाव के थे। वह सभी धर्मों और भाषाओं का सम्मान करते थे और उनके बारे में रुचि भी रखते थे। एक दिन बादशाह अकबर को एक मजाक सूझा और उन्होंने बीरबल को सभा में बुलाया।
बादशाह का आदेश पाते ही बीरबल दरबार में उपस्थित हुए। अकबर ने कहा, बीरबल हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं पर एक बात है जिसे सोच-सोचकर हमें हंसी आ रही है।
अकबर ने हंसी दबाते हुुए कहा, बीरबल संस्कृत में शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग पैर को पाद कहा जाता है। क्या यह बेहूदा नहीं है? यह कहकर वह फिर हंसने लगे। इस पर दरबार में मौजूद सभी मंत्रीगण भी हंसने लगे क्योंकि वह तो बीरबल को यों भी पसंद नहीं करते थे। जब महाराज ने बीरबल से यह बात कही तो वे सब भी ठहाके लगाने।
बादशाह अकबर की बात सुनकर बीरबल मुस्कुराए। उन्होंने कहा, जी महाराज यह हास्यास्पद तो है लेकिन अगर ऐसा है तो फारसी तो और भी अजीब भाषा कही जा सकती है। फारसी में तो शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग हाथ को दस्त कहा जाता है। बीरबल की बात सुनकर सब शांत हो गए और महाराज समझ गए कि इस तरह संस्कृत के बारे में कहकर उन्होंने अच्छा नहीं किया। एक बार फिर बीरबल ने अपने ज्ञान और चालाकी का परिचय दिया।
स्रोत: नवभारतटाइम्स
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