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with bahubali 2 release hate mongers are back


 bahubali 2

‘बाहुबली-2’ रिलीज़ हो गई है. जैसा कि अंदाज़ा लगाया जा रहा था बंपर हिट साबित हो रही है. लगता है अगले-पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ के ही दम लेगी. एक रीजनल भाषा की फिल्म के लिए पूरे देशभर में ये दीवानगी अद्भुत है. 


बरसों बाद ऐसा नज़ारा देखने मिल रहा है. लेकिन इसी के साथ फिर से वही स्यापा शुरू हो गया है, जो पहली वाली ‘बाहुबली’ के वक़्त था. बल्कि इस बार नया आयाम भी जोड़ दिया है भाइयों ने.

 


‘कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा?’ इस सवाल से पूरा भारत पिछले डेढ़-पौने दो सालों से जूझ रहा है. अब जब इसका जवाब मिलने की घड़ी आ गई है, तो कई सारे लोग सोशल मीडिया पर इसके इर्द-गिर्द खेल रहे हैं. कोई सस्पेंस खोलने की धमकी दे रहा है, तो कोई मज़ाक में अजीब-अजीब वजहें बता रहा है. लेकिन क्यूटता की हद तब हो गई जब कुछ मासूम लोग इस मज़ाक को साज़िश बताने लगे हैं. किसी षड्यंत्र की बू सूंघने लगे हैं.


कई जगह पढ़ा कि ‘बाहुबली-2’ का सस्पेंस लोग जानबूझकर लीक कर रहे हैं, ताकि फिल्म फ्लॉप हो जाए. इसे देखने कम लोग पहुंचे. ये एक साज़िश है ताकि किसी ‘हिंदू’ हीरो की फिल्म ख़ानों से ज़्यादा कमाई न कर पाए. हिंदू संस्कृति का प्रचार-प्रसार करती फिल्म को नुकसान हो. मैं हतप्रभ हूं. आती कहां से है इतनी मासूमियत! जनरेट कैसे होती है ये उलूकता?


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जब ‘बाहुबली-1’ आई थी तब भी ऐसी ही बातों से पूरा सोशल मीडिया पाट दिया था भाई लोगों ने. ‘बाहुबली’ वर्सेस ‘पीके’ का मैच करवा दिया था. एक जुमला आम हो गया था उस वक़्त. हिंदू धर्म का अपमान किए बगैर भी कोई फिल्म बनाई जा सकती है. 


करोड़ों रुपए कमा सकती है. ये सीधा पीके पर कटाक्ष था. ‘बाहुबली’ ने कंधे पर शिवलिंग नहीं उठाया था, बल्कि हिंदू संस्कृति को उठा लिया था. जो कि इतनी कमज़ोर थी कि उसे एक फिल्म के अलावा और कोई बचा ही नहीं सकता था.


bahubali  
हिंदू संस्कृति की रक्षा महज़ इस सीन भर से हो गई.


ऐसा ही कुछ-कुछ ‘बजरंगी भाईजान’ के वक़्त भी हुआ था. कुछ मौलवियों ने गुहार लगाई थी कि बजरंगी बने भाईजान को नहीं देखें मुसलमान. वहीं कुछ सनातन प्रेम में सराबोर भाई लोग नारा बुलंद किए थे कि इस ईद पर जय हनुमान का नारा बुलंद करवाना हो तो फिल्म ज़रूर देखें. 



दोनों ही तरफ के लोग बिना कहानी जाने फतवे दे रहे थे. स्क्रीन शॉट नहीं लगा रहे हैं. फेसबुक, ट्विटर पर एक्टिव बंदों का ये सब देखा भाला होगा.
'पीके' के इस सीन से ही शिवजी की इज्ज़त कम हुई थी जिसे 'बाहुबली' ने अपना कंधा दे के फिर से प्रतिस्थापित किया.

 pk amir khan
बताया गया ‘पीके’ के इस सीन से ही शिवजी का अपमान हुआ था, जिसे ‘बाहुबली’ ने अपना कंधा दे के फिर से प्रतिस्थापित किया.



ऐसे वक़्त मैं तल्ख़ होने से बचना चाहता हूं, लेकिन कामयाब नहीं हो पाता. पिछले कुछ सालों से समूचे भारत में एक ट्रेंड सा चल पड़ा है. हर चीज़ को धर्म से जोड़ कर देखा जाने लगा है. फिल्मों के मामले में तो ये और भी बड़े लेवल पर होने लगा है. 



आमिर की फिल्म का बॉयकाट करो, शाहरुख़ की फिल्म मत देखो, बाहुबली के खिलाफ़ साजिश है ये सब बातें ऐसी हैं जिनसे चिढ़ उपजने लगी है. एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री जो कुछ भी आपको परोसती है उसका विशुद्ध मकसद कारोबार ही होता है. ‘बाहुबली’ हो या ‘पीके’, किसी के पीछे कोई हिडन एजेंडा काम नहीं करता. इतना खलिहर कोई नहीं कि फिल्मों में एजेंडा घुसेड़ता फिरे. ये तो आप-हम हैं जो नफरतों के फ्लैग बेयरर बनने के लिए मरे जाते हैं.




अजीब मुल्क है हमारा. हम आने वाले हजार-पांच सौ सालों में भी एक बेहतर समाज नहीं बनने वाले. पाखण्ड, ढोंग, हिप्पोक्रिसी तो हमारी रग-रग में खून बन कर दौड़ रही है. हम नेताओं पर, रहनुमाओं पर सारा दोष मंढ़ कर खुद को हर तरह के नैतिक दायित्व से मुक्त कर लेते हैं. शायद इससे सुकून की नींद आ जाती होगी. नेता लड़ाते हैं जी हमें! वरना हम तो इतने भले मानस हैं कि धार्मिक/जातीय/आर्थिक आधार पर कभी किसी को नहीं परखते. भक!! हम इतना तंगदिल, तंगनज़र समाज हैं कि हमें नफरतों के दरिया बहाने के लिए किसी मुखिया की रहनुमाई की कतई ज़रूरत नहीं. ये काम हम खुद ही बाखूबी कर लेते हैं.



मनोरंजन के लिए बनाई गई फिल्मों को भी हम नफरतें फैलाने का टूल बना लेते हैं. इतने प्रतिभाशाली मुल्क में जो न हो जाए थोड़ा है! इस अद्वितीय टैलेंट को सलाम है.



सोर्स:लल्लनटॉप
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