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शाहरुख खान की फिल्म 'रईस' का निर्देशन राहुल ढोलकिया ने किया है. फिल्म में शाहरुख रईस आलम की भूमिका में हैं. उनके अलावा नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी, माहिरा खान, अतुल कुलकर्णी, जिशान और नरेन्द्र झा महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं. 



शाहरुख खान की फिल्म रईस की कहानी 1980 के दौर में गुजरात के इर्द गिर्द घूमती है। यह फिल्म रईस नाम के एक शख्स के बारे में बताती है। जो जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता है।



उसकी लाइफ एक सिंपल फंडे पर चलती है जो कि उसकी मां यानि अम्मी जान ने दिया है। किंग खान की यह फिल्म रईस की जिंदगी में आते उतार-चढ़ाव को दिखाती है। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह जीरो से शुरू होकर रईस एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लेता है।



फिल्म की कहानी गुजरात के फतेहपुर से शुरू होती है जहां रईस का बचपन अपनी मां के साथ गरीबी में गुजर रहा है, गरीबी के चलते रईस बचपन में ही शराब तस्करी के धंधे में घुस जाता है. फिल्म में आगे शुरू होता है शराब के लिए गुटों में झगड़ा, राजनीतिक दलों की राजनीति, षड़यंत्रो का सिलसिला और चोर-पुलिस का खेल, तो ये था कहानी का सार.




खामियों की बात करें
तो 'रईस' की कहानी बेहद साधारण है जिसमें कोई अलग पहलू नजर नहीं आता. दूसरी बात यह रईस के बचपन के दृश्य आपके मन में उसके लिए हमदर्दी पैदा नहीं करते बल्कि फिल्म की लंबाई बढ़ाते हैं. 




महिरा के साथ शाहरुख के दृश्य भी फीके लगते हैं क्योंकि न तो ये कोई भावना को जन्म देते हैं और न ही इनका फिल्म की स्क्रिप्ट में कोई योगदान है और महिरा का अभिनय भी मुझे हल्का ही लगा.




अब कुछ खूबियां. 'रईस' की पहली और सबसे बड़ी खूबी हैं शाहरुख खान जिनके व्यक्तित्व का करिश्मा इस फिल्म को दमदार बनता है. फिल्म के किसी भी दृश्य में शाहरुख ने अपने किरदार से हिलने की जरा सी भी गलती नहीं की है. अपनी चाल-ढाल,डायलॉग डिलिवरी और हाव-भाव से वह फिल्म की खामियों की तरफ आपका ज्यादा ध्यान जाने नहीं देते. शाहरुख के प्रशंसकों के लिए यह फिल्म एक ट्रीट साबित हो सकती है.






फिल्म के दूसरे मजबूत स्तंभ हैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी जो अपने बहते अभिनय से फिल्म का दूसरा सिरा संभाले हुए हैं और इनके साथ जिशान और नरेंद्र झा फिल्म के बाकी सफर को आसान बनाते हैं. 'रईस' के डायलॉग आपको ताली और सीटियां बजाने पर मजबूर कर देंगे. स्क्रिप्ट कसी हुई है और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को और रोचक बनता है, दृश्यों का फिल्मांकन प्रभावशाली है जिसके लिए निर्देशक और सिनेमेटोग्राफर दोनों ही तारीफ के पात्र हैं.




कहानी 





रईस का नाम बचपन से रईस था. क्योंकि एक दिन वो रईस बनने वाला था. वैसे एक दिन तो वो स्मगलर भी बनने वाला था. लेकिन वो हीरो था इसलिए उसका नाम रईस रखा गया. 




उसकी अम्मी जान कहा करती थीं, कोई भी धंधा छोटा नहीं होता. चाहे वो स्मगलिंग का ही हो. इसलिए रईस ने दारू की स्मगलिंग शुरू कर दी. लोगों को खूब बेवकूफ बनाया. काला धन बनाया. वो भी गुजरात में रहकर, बताओ! फिर गरीबों को घर देने के नाम से सारा काला धन सफ़ेद कर लिया. लेकिन वो शाहरुख़ खान है, इसलिए उसका सब कुछ सफ़ेद होगा, कुरते की तरह.



हां तो रईस, रईस बहुत थे. लेकिन चश्मा एक ही पहने, जवानी से लेकर मौत तक. उसका एक बार लेंस चटक गया, तो जिसने तोड़ा उसी ने लेंस बदलवाकर दिया. और जिस पावर का दिया, रईस के चश्मे का नंबर फिर वही हो गया, लेकिन फ्रेम नहीं बदला. चश्मे से याद आया, काजल जाने कौन सा लगाता था, ससुरा कभी फैला नहीं. हमको भी वही ‘स्मज फ्री’ वाला चाहिए.




खैर. तो रईस के घर में नेटफ्लिक्स कनेक्शन था. अब पूछो उस समय जब मोबाइल भी नहीं होते थे, तब नेटफ्लिक्स कैसे मिला. तो बदले में हम पूछेंगे कि उसने ‘नार्कोस’ कैसे देखा. काहे से फिल्म का प्लॉट कुछ चुराया सा लग रहा था. पूरा नहीं, लेकिन काफी रेफरेंस. जैसे धंधे के पैसे गरीबों में बांटना, उनका सपोर्ट जीतना. 



छोटे बच्चों को अपना खबरी बनाना जिन पर कोई शक न करे. फिर विधायकी का इलेक्शन लड़कर जीत जाना. उनको काम देना और उनके बीच हीरो बन जाना. फर्क सिर्फ ये है कि हमारा डॉन गरबा भी कर लेता है, पतंग उड़ा लेता है, क्रिकेट खेल लेता है, गा लेता है और फ़्लर्ट भी कर लेता है.




रईस पहले जयराज के यहां नौकरी करता था. फिर उसने कहा, खुद का धंधा करते हैं. धंधा करने के लिए क्या चाहिए – बनिए का दिमाग और मियांभाई की डेयरिंग. ‘बनिए’ वाली बात जातिवादी थी. 



फेसबुक पर पोस्ट कर देते तो बचते नहीं. डेयरिंग बहुत थी. पैसा नहीं था. कूटे गए. खूब पिटे. अश्मा-चश्मा कुल टूट गया. लेकिन तोड़ने वाला इम्प्रेस हो गया. बोला लो, लाख रुपया, करो धंधा! हैपेन्स ओनली इन बॉलीवुड. बाद में उसी चश्मे से उसकी जान ली. चश्मे से किसी का खून कैसे करते हैं, ये देखने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.




अब बात ‘आसिया’ की. यानी फिल्म की हिरोइन. वो रईस के इम्प्रेस थी. क्योंकि रईस का काजल स्मज फ्री था. उसके बाद रईस ने आसिया की पतंग भी काट दी. तो प्यार हो गया. 



आसिया ने रईस के साथ खूब गाने गाए. एक मिलने के बाद, एक निकाह के बाद, एक बच्चा होने के बाद. बच्चे भगवान के भेजे गए दूत होते हैं. ये बात रईस में साबित हुई है. क्योंकि आसिया का कभी बेबी बंप दिखा ही नहीं. बस रईस से बोला ‘आपको कोई अब्बू बुलाए तो कैसा लगेगा?’, और फिर बच्चा हो गया. जमाना एक्सप्रेस डिलीवरी का है.




अब बात नवाजुद्दीन की. यानी IPS अफसर मजमूदार. पुलिसवाला बनने के लिए क्या लगता है? एक-आध डायलॉग और रे बैन के एविएटर्स. दोनों ही थे. लेकिन ट्रांसफर होता रहा. मतलब, ऑबवियसली. कड़क और ईमानदार अफसर के साथ और होता ही क्या है. लेकिन ट्रांसफर के बाद भी वो रईस को न छोड़ने की कसम खाता है. और अंत में भी वही हुआ जो होना था. मन की करके भी वो दुखी होता है.




रईस तो बस गुंडे मवालियों को मारता था. लेकिन एक नासपीटे ने उसके माल में RDX मिला दिया था. जिससे देश भर में धमाके हुए. बहुत लोग मरे. बस इसी गलती की सजा चुकानी पड़ी उसको. वरना आदमी ठीक था. अब कहोगे कहानी बता दी.




बात माहिरा खान की. समझ नहीं आया कि इतने कम और बुरे रोल के लिए किसी को लेना था तो पाकिस्तानी हिरोइन लेकर अपनी टेंशन क्यों बढ़ाई? गाने और डांस के लिए किसी को भी ले लेते. माहिरा टैलेंटेड बहुत हैं, एक शब्द बोलने में भी तीन एक्सप्रेशन दे लेती हैं. रईस से बात बात पर रूठना उनका फेवरेट काम है. लिपस्टिक लगाना और गालों पर लाली मलना कभी नहीं भूलतीं.




फिल्म लंबे वीकेंड के पहले रिलीज की गई है. ताकि देखने के बाद चार दिन इसे भुलाने में लगा सकें.




समझ ही गए होंगे कि फिल्म पकाऊ है. बेसिकली इसलिए, क्योंकि कहानी में कुछ भी नया नहीं है. ये सब हम बॉलीवुड की अलग-अलग फिल्मों में देख चुके है. 



रईस का चरित्र एक अच्छे विलेन (हीरो) और नवाज का किरदार एक अच्छे हीरो (विलेन) के रूप में कोई गहरी छाप छोड़ने में नाकाम हैं. शाहरुख़ बस शाहरुख़ हैं, और फिल्म एक बार फिर उनके स्टारडम को भुनाने में लग जाएगी.



संगीत की बात करें तो 'उड़ी उड़ी जाए', 'जालिमा', 'लैला मैं लैला' जैसे गाने पहले ही हिट हो चुके हैं. एक और बात यह कि फिल्म 70 और 80 के दशक के सिनमा से प्रभावित है और इसका ट्रीटमेंट भी उसी तरह किया गया है क्योंकि यह कहानी 80 के दशक में घटती है. 



यह फिल्म आपको लार्जर दैन लाइफ सिनेमा और उनके नायकों की एक बार फिर याद दिलाएगी जहां बहुत सा मनोरंजन, एक दबंग हीरो और बेहतरीन गाने देखने को मिलते थे. ठीक उसी तरह शाहरुख खान की फिल्म में मनोरंजन है पर वास्तविकता की झलक के साथ यानी हर चीज यहां ओवर दी टॉप या बनावटी नजर नहीं आएगी. तो जाइए फिल्म देखिए??????



रईस का ट्रेलरः









सोर्स:लल्लनटॉप NDTV 
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