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जनरल, बहुत मजबूत है तुम्हारा टैंक,
बहुत मजबूत,
पर अफसोस, इसे भी एक इंसान की जरूरत होगी.

जंग पर ब्रेख्त के इन शब्दों को व्याख्या की जरूरत नहीं है. जंग होती जरूर हथियारों से है, पर उसका ईंधन इंसानी खून ही होता है.

दुनिया में तीन तरह के लोग हैं. एक जो जंग करवाते हैं. एक जो जंग का जश्न मनाते हैं. और तीसरे जो जंग लड़ते हैं और उसमें मरते हैं. समस्या ये है कि जंग लड़ने वाला भले थक जाए, लेकिन देखने वालों की भूख खत्म नहीं होती. जनाजे उठते रहते हैं, आंसू बहते रहते हैं, जमीनें लाल होती रहती हैं. लेकिन नारे लगते रहते हैं. 12 दिन पहले हमारे मुल्क में 20 जवानों के जनाजे उठे और कल हमारे पड़ोसी के यहां दो जवानों के फातिहे पढ़े गए.

PoK में इंडियन आर्मी के सर्जिकल स्ट्राइक में आतंकियों के साथ दो पाकिस्तानी जवानों की भी मौत हुई है.  हालांकि भारतीय सेना ने इस बारे में कोई दावा नहीं किया है. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक इनके नाम हैं, हवलदार जुम्मा खान और नायक मोहम्मद इम्तियाज. जुम्मा खान का घर गिलगिट-बाल्टिस्टान के अस्तोर में है और इम्तियाज का फैसलाबाद में. जब दोनों की लाशें उनके घर पहुंचाई गईं तो मातम का वही आलम था, जो  हमारे यहां होता है.
इम्तियाज का जनाजा
एक बूढ़ा कमजोर सा बदहवास बाप, जिसे कुछ लोग संभाल रहे हैं. घर में चीखतीं-पुकारतीं कुछ महिलाएं, जिन्हें संभालना किसी के बस में नहीं. ताबूत के आसपास सैकड़ों की भीड़, जिनके चेहरे की ऊपरी परत पर पसीना और उसके पीछे की परत पर शून्यता. हम अभी इतने अमानवीय नहीं हुए कि इन दृश्यों का जश्न मनाएं.

पाकिस्तानी आर्मी की मीडिया विंग ISPR ने अपने दोनों सैनिकों की तस्वीरों के साथ उनके परिवार की जानकारी भी जारी की है. दोनों की शादी हो चुकी थी. जुम्मा अपने पीछे पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा छोड़ गए. इम्तियाज की तीन बेटियां हैं. वहां की बेटियां भी हमारी आरना, सलोनी और रंगोली की तरह रोती हैं, अपने अब्बा को सलाम करती हैं. इन बेटियों के आंसुओं की कीमत कोई नहीं चुका पाता है. वहां भी कुछ ऐसा ही है.

गुरमेहर कौर

और क्यों उनकी बात करें. छाती तो हमारी तब भी 56 इंच की हो जाती है जब कारगिल में अपने पिता कैप्टन मनदीप सिंह को खो चुकी गुरमेहर कौर कहती है कि उसके पापा को पाकिस्तानियों ने मार दिया, लेकिन वो लड़ाई नहीं चाहती. ये बोलने के लिए टैंक चलाने से बड़ा कलेजा चाहिए होता है. 

इम्तियाज के घर वाले बताते हैं कि उसने 14 साल पहले आर्मी जॉइन की थी और प्रमोशन पाकर नायक की रैंक तक पहुंचा था. आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे इम्तियाज को अब्बा कुछ ज्यादा ही चाहते थे.

उड़ी हमले में 20 जवान हुए शहीद


जंग में गरीब, किसान का बेटा लड़ रहा है. इधर भी और उधर भी. ये लड़ाई किसी इंडिविजुअल के खिलाफ नहीं है. लेकिन नॉन स्टेट एक्टर्स को निपटाते हुए खून के छींटे मानवता पर तो पड़ते ही हैं. ताकतवर बंदूकों के साइड इफेक्ट्स होते ही हैं. ऐसे मौकों पर ये भावना हावी हो जाती है कि हमने भी मानवता की हत्या का दंश झेला है. हम भी आपको झिलाएंगे. जवाब देना जरूरी था लेकिन हमने किसी का बेटा छीनना नहीं चाहा था.





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