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हमको किसके गम ने मारा ये कहानी फिर सही. आज तो सुनो ये घिनही कहानी गम की. कसम से लार न चू जाए तो कहिना. बीग बीग बबल चबा कर मुंह से गुब्बारा फुलाने में बड़ा मजा आता है. वो फुग्गा हाथ से पकड़ के खींचो तो मम्मी एक कंटाप मारती थी. किसी की कुर्सी पर चिपका दो तो परलय हो जाए ऐसा खौफ च्युइंग गम का. 



लेकिन दुनिया में एक ऐसी जगह है जहां च्युइंगम चिपकानों वालों को कंटाप नहीं पड़ता, उनकी कद्र होती है. ये दीवार है अमेरिका के शहर सीटेल में.



तो भाईसाब ये दीवार नहीं टूटेगी. न जी न, अंबुजा सीमेंट से नहीं बनी है. ये बनी है ढेर सारे च्युइंग गम से. ऐसा ही लगता था इसे देख कर. अब से कुछ रोज पहले. इस दीवार पर पूरे 20 साल तक इस पर खाए चबाए च्युइंगम चिपकाने का महापर्व चलता रहा. 




1993 से शुरू हुआ था ये सिलसिला. अब तक चलता रहा था. जैसे जैसे इस पर लोड बढ़ता गया. यहां ढेर सारे टूरिस्ट आते गए.







3 नवंबर 2015 को अथॉरिटीज ने ऐलान कर दिया. कि देखो भाई दीवार की ईंटे गल रही हैं इसकी चीनी की वजह से. 10 नवंबर को सफाई शुरू हुई. 130 घंटे चिपक कर चली सफाई. जिसमें 1070 किलो चिपका हुआ च्युइंगम निकला. 







फिर अगले दिन पेरिस अटैक में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए इस पर नए सिरे से च्युइंगम चिपकाना शुरू हो गया.





सोर्स:लल्लनटॉप 
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