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एशियन गेम्स दिल्ली में हॉकी का भारत-पाक फाइनल. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी और बूटा सिंह के ज़रिए टीम को पैगाम पहुंचाया था कि हमने अब तक 7 गोल्ड जीते हैं वो हॉकी गोल्ड के आगे कुछ नहीं हैं. मैच की पूर्व संध्या पर बड़े-बड़े लोग आकर टीम को कह रहे थे – देश की इज्जत दांव पर लगी है. मैच के दिन कई मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों समेत इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, बूटा सिंह मौजूद थे. आमतौर पर शुक्रवार को पाकिस्तान और मंगलवार को भारत के लिए शुभ समझा जाता है. हालांकि भारत ने शुक्रवार को भी मैच जीते हैं लेकिन ये अंधविश्वास दिमाग पर पूरा असर डालता था उन दिनों. पर उस दिन बुधवार था दिल्ली की सर्दियों की खुशनुमा धूप, 1 दिसंबर 1982. ये वो दिन था जब भारत की हॉकी ने क्रिकेट के लिए अपनी जगह छोड़ दी.

मैच से पहले ही माहौल खेल का नहीं युद्ध का सा हो गया था. भारत में टीवी तब तक ब्लैक एंड व्हाईट था लेकिन दिल्ली एशियन खेलों के साथ भारत में पहली बार टीवी रंगीन हुआ था. लोग आकाशवाणी पर हॉकी की कॉमेंट्री चौराहों और चाय की दुकानों पर झुंड बनाकर सुनते थे.



भारत-पाकिस्तान मैच शुरू होता है. मैच से पहले शुभ स्वागतम् और अमिताभ बच्चन की बुलंद आवाज़ में ‘हम इस उत्सव में आप सभी का स्वागत करते हैं…’ की गूंज आज तक कई लोगों के कानों में गूंज रही होगी. शुभंकर अप्पू के साथ मैच से पहले भारत के खिलाड़ियों को राष्ट्रपति से मिलवाया गया. माहौल ऐसा हो गया था कि कोच बलबीर सिंह को भी खिलाड़ियों से कहना पड़ा – इज्जत दांव पर है लड़कों. खेल शुरू होने से पहले ही भारत की टीम सुपर-प्रेशर में थी.

भारत की शुरूआत शानदार हुई. और 4थे ही मिनट में सईद अली स्ट्राकिंग सर्कल में, ज़फर इकबाल के पास गेंद और गोल ! गोल ! गोल भारत 1-0 पाकिस्तान. नेशनल हॉकी स्टेडियम में 27000 दर्शकों की चिंघाड ऐसी थी कि आवाज़ जनपथ और कनॉट प्लेस तक पहुंची.

अगले 6 मिनट तक भारत इस सनसनीखेज़ हॉकी को देखकर पागल की तरह झूमता रहा. 10वें मिनट में हनीफ खान, मंज़ूर और कलीमुल्लाह ने गोल कर दिया और कुछ ही देर में स्कोर हो गया भारत 1-3 पाकिस्तान. इंदिरा गांधी के चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा था. चौथा गोल होते ही प्रधानमंत्री ने मैच देखना छोड़ दिया. प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि 27000 लोगों में से 20000 लोग मैच खत्म होने से पहले ही बाहर आ गए. हाफ टाइम पर स्टेडियम के बाहर और पूरी दिल्ली में मातम सा माहौल था.

भारत कोई इतना खराब नहीं खेला था, कुल 10 पेनल्टी कॉर्नर मिले थे लेकिन एक भी गोल नहीं कर पाए. मैच में 2 गोल ऐसे थे कि जो गोल नहीं थे लेकिन कीवी अंपायर ने पाकिस्तान को गोल दे दिए थे.

उम्मीदों का दबाव कैसे तबाह करता है इसका क्लासिक उदाहरण है ये मैच. मैच से ठीक पहले एस एस सोढी की जगह बीमार राजिंदर सिंह को खिलाया गया. राजिंदर सिंह ने कुछ ही दिनों पहले पाकिस्तान के खिलाफ मैच जिताऊ खेल खेला था. ये सोचकर दवा वगैरह देकर मैदान पर फिट तो छोड़िए बीमार होने के बाद भी उतार दिया गया. कोच बलबीर सिंह जूनियर और मैनेजर बलबीर सिंह सीनीयर के लिए भी लोगों ने ये मैच युद्ध जैसा बना दिया था. एक के बाद एक रणनीतिक गलतियां होती चली गईं.

कहा तो ये भी जाता है कि खुद प्रधानमंत्री ने 1-3 होते ही गोलकीपर मीररंजन नेगी को बदलने के लिए कहा था, लेकिन राजीव गांधी ने जवाब दिया कि हम टीम और कोच के फैसलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते. इस मैच की हार का सारा ठीकरा मीर रंजन नेगी के सिर पर ही फूटना था. हुआ ये था कि मैच की शुरूआत से पहले शिष्टाचारवश भारत-पाकिस्तान के सभी खिलाड़ी हंसी-बात कर रहे थे. मीररंजन नेगी को भी ऐसे ही बात करते दिखाया गया. लोगों ने स्कोरलाइन देखकर समझा कि इसने तो मैच फिक्स कर लिया है. मैच के दौरान ही भीड़ ने मां-बहन की गालियां देनी शुरू कर दी.

मैच खत्म हुआ भारत 1-7 पाकिस्तान. ये मैच ही खत्म नहीं हुआ बल्कि इस स्कोरलाइन के साथ भारत की हॉकी भी तबाह हो गई. भारत ने रजत पदक जीता था लेकिन किसी भी खिलाड़ी की देर शाम तक स्टेडियम छोड़ने की हिम्मत नहीं हुई. रात को खेल गांव जाते वक्त जिस कार में मीर रंजन नेगी थे उसे 50 लोगों ने घेर लिया. तब योकिम कार्वाल्हो ने आकर नेगी को बचाय़ा था. कुछ दिन बाद पंडारा रोड पर नेगी अपने कुछ साथियों के साथ एक होटल में खाना खा रहे थे वहां भी लोग जान से मारने के लिए पहुंच गए. कई कई बार नेगी को भागकर जान बचानी पड़ी. और तो और बिजली बोर्ड के कुछ लोगों ने शादी के दिन मीर रंजन नेगी के घर की लाइट काट दी. शादी-समारोह स्कूटरों और कारों की रौशनी में संपन्न हुआ. ‘चक दे इंडिया’ में शाहरूख खान का रोल इन्हीं से प्रेरित था.

एक अखबार ने तो ये भी छाप दिया कि रीता बहुगुणा जोशी के पिता हेमवतीनंदन बहुगुणा और मीर रंजन नेगी रिश्तेदार हैं और बहुगुणा ने राजीव गांधी को बदनाम करने के लिए नेगी को पैसे दिए थे. नेगी और बहुगुणा में इतनी ही रिश्तेदारी थी कि दोनों गढ़वाल के थे.

इस मैच के कुछ ही दिनों बाद भारत ने एसांडा कप के पहले ही मैच में पाकिस्तान को 2-1 से हराया. उन दिनों क्रिकेट की तरह नियमित तौर पर हॉकी के मैच होते थे. लेकिन वो घाव कभी नहीं भरे. इसी दौरान भारत ने पहले क्रिकेट वर्ल्ड कप और फिर बेंसन एंड हेजेज ट्रॉफी जीतकर तहलका मचा दिया. फिर 1987 में क्रिकेट का वर्ल्ड कप भारत में ही आयोजित हो गया. तब तक लोग हॉकी देखना-सुनना भूल चुके थे.

राजिंदर सिंह सीनियर कुछ खुशकिस्मत रहे. हॉकी के सबसे शानदार मैचों में से एक 2003 चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी के मैच में भारत 1-4 से पिछड़ कर 7-4 से जीता था. उस मैच में राजिंदर कोच थे. लेकिन मैच के बाद कहा वो घाव नहीं भरेगा. 2010 हॉकी वर्ल्ड कप दिल्ली के मैच में भी भारत ने पाकिस्तान को हराया.



वो घाव भरा इंचॉन एशियाड 2014 में केरल की चट्टान गोलची श्रीजेश के दमदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने पाकिस्तान को पेनल्टी शूट आउट में हराकर सोना जीता. लेकिन तब तक 32 साल हो चुके थे. एक पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी की जगह ले ली. शायद फिर कभी दिल्ली में एशियाड हो, शायद फिर कभी मैच के लिए ऐसा ही माहौल बने औऱ भारत जीते, शायद तब कहीं जाकर इंडिया फिर दिल देगा हॉकी को.





सोर्स:लल्लनटॉप
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