धन, सुख और समृद्धि के लिए आप देवी लक्ष्मी के साथ एक देवता की पूजा करते हैं। इस देवता की पूजा के बिना देवी लक्ष्मी भी कृपा नहीं करती हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह देवता एक चोर हुआ करते थे।
हम जिस देवता की बात कर रहे हैं वह कोई और नहीं रावण के सौतेले भाई कुबेर महाराज हैं जिन्हें देवताओं के धन का खजांची कहा जाता है। जिनकी पत्नी स्वयं धन की देवी लक्ष्मी है उन भगवान विष्णु को भी एक बार कुबेर से कर्ज लेना पड़ा था। इस कर्ज को चुकाने के लिए तिरूपति बालाजी को सोने, चांदी, हीरे मोतियों के गहने चढ़ाए जाते हैं। इस धनवान भगवान की कथा है कि यह भगवान बनने से पहले एक चोर हुआ करते थे।
स्कंद पुराण की कथा के अनुसार कुबेर सोमदत्त दीक्षित नामक ब्राह्मण के पुत्र थे जिनका नाम गुणनिधि था। अपने नाम के विपरीत गुणनिधि में सारे अवगुण भरे थे। बुरी संगत में पड़कर वह चोरी करने लगा। नाराज होकर पिता ने इन्हें घर से निकाल दिया। इसके बाद गुणनिधि और भी गलत काम करने लगा।
गुणनिधि को राजा ने अपने देश से निकाल दिया। भूख प्यास से व्याकुल गुणनिधि किसी अन्य नगर में जा रहा था तभी उसकी नजर एक मंदिर पर गई। गुणनिधि ने भूख मिटाने के लिए मंदिर से प्रसाद चुराने का विचार किया और मौका मिलते ही मंदिर में जा पहुंचा।
मंदिर में जलते दीपक के सामने इन्होंने अपना अंगोछा लटका दिया ताकि पास में सो रहे पुजारी की इन पर नजर न जाए। इसके बाद प्रसाद चुराकर जैसे ही भागने लगा कुछ लोगों की इन पर नजर पड़ गई और गुणनिधि को पकड़ लिया गया। भागम भाग और भूख से गुणनिधि की मृत्यु हो गई।
यमदूत और शिव के दूत दोनों ही गुणनिधि को अपने साथ ले जाने आ पहुंचे। शिव के दूतों को देखकर यमदूत पीछे हट गए और गुणनिधि भगवान शिव के पास लाए गए। भगवान शिव ने कहा कि तुमने बहुत पाप किए हैं लेकिन धन त्रयोदशी के दिन तुमने अपने अंगोछे के ओट से मेरे मंदिर में जल रहे दीपक को बुझने से बचाया है इस पुण्य के प्रभाव से तुम मेरे पार्षद हो गए हो और तुम जो धन के लालच में चोरी किया करते थे इसलिए मैं तुम्हें पूरी दुनिया के धन का अधिपति बनाता हूं आज से तुम कुबेर कहलाओगे। इस तरह चोरी करके भी गुणनिधि कुबेर भगवान बन गए।
सोर्स:अमरउजाला
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