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दिल्ली. दिल्ली में केजरीवाल की खांसी कम हो गई है. दिल्ली की सड़कों पर बारिश का पानी कम हो गया है. लेकिन एक चीज बढ़ती जा रही है. मलेरिया. आप मलेरिये को हल्के में कतई न लें, क्योंकि 2015 में मलेरिया से साढ़े चार लाख लोग मर गए थे. WHO की माने तो कम से कम 3.2 बिलियन लोगों को मलेरिया का खतरा है. मतलब दुनिया की आधी आबादी की जान मच्छरों के काटने से जा सकती है. इस बीमारी के बारे में पता लगाने वाले भले मानस थे रोनाल्ड रोस, जो पैदा भारत के अलमोड़ा में हुए थे.
source : wikipedia
उनके बचपन से लेकर मलेरिया के मच्छर को ढूंढने तक की कहानी कुछ इस तरह है:

1. रोस के पिताजी इंडियन आर्मी में जनरल थे. आठ साल के होते ही रोस को इंग्लैंड भेज दिया गया. वहां अपनी आंटी के पास रहे.

2. बचपन में इन्हें पोएट्री, म्यूजिक, लिटरेचर और मैथ्स पसंद था, लेकिन जब 17 साल के हुए तो पिताजी ने मेडिकल फील्ड में जाने को कहा. रोस न चाहते हुए भी मेडिसिन की पढ़ाई में लग गए.

3. मेडिकल कोर्स करके 1881 में इंडिया वापस आए. आते ही इंडियन मेडिकल सर्विस ज्वाइन कर ली. यहां आने के बाद वो मलेरिया की स्टडी करने में लग गए.

स्कॉटिश फिजीशियन सर पैट्रिक मेंसन की हाइपोथीसिस को पढ़ा और समझा. यहीं से मलेरिया और मच्छरों के बीच का कनेक्शन ढूंढना शुरू कर दिया.

4. उनकी पोस्टिंग बेंगलौर में कर दी गई. यहां हैजे की जांच करने का काम किया. मलेरिया के केस इतने थे नहीं तो उनकी मलेरिया पर रिसर्च हो नहीं पाई.

थोड़े दिनों बाद वो ऊटी हिल स्टेशन चले गए. एक दिन सिगुर घाट पर रोस ने एक “अजीब पंखों” वाला मच्छर दीवार पर बैठा देखा.

5. ऊटी से आने के बाद खुद रोस को मलेरिया हो गया. इलाज करवाने के लिए सिकंदराबाद लाया गया और दो साल उनकी मलेरिया रिसर्च आगे नहीं बढ़ पाई.

6. जुलाई 1897 में उन्होंने अपनी रिसर्च पर फिर से काम शुरू किया. उन्होंने बीस मच्छरों को एक साथ रखा. हुसैन खान नाम के आदमी को अठन्नी दी और काम पर रख लिया. हुसैन को इन मच्छरों से कटवाया. खून चूस लेने के बाद रोस ने देखा कि इन मच्छरों के पेट से अलग से एक सेल निकली हुई है. ध्यान से देखा तो ये पाया गया कि ये मच्छरों के शरीर की कोई सेल नहीं थी. उनको ऊटी में देखे गए अजीब से मच्छर का ध्यान आया. रिसर्च करने पर पता चला कि वो अजीब से पंख नहीं, बल्कि मलेरिया फ़ैलाने वाले पैरासाइट्स थे.

7. ये डिस्कवरी उसी साल दिसंबर में ब्रिटिश जर्नल ने छापी. अगले साल अगस्त में जाकर रोस ने कन्फर्म कर दिया कि ये मलेरिया वाले पैरासाइट्स मच्छरों की आंतों में ही हैं. इनमें से ज्यादातर अनोफेल्स नाम के पैरासाइट्स हैं.

8. इसके बाद वो इंग्लैंड चले गए, जहां से उन्हें साउथ अफ्रीका भेजा गया. उस समय अफ्रीका में मच्छरों के काटने से एक बुखार फ़ैला हुआ था.

9. फिर रोस ने बारह-तेरह साल बाद मॉरिशस में मलेरिया और मलेरिया रोकने पर साइंटिफिक रिपोर्ट प्रेजेंट की. आगे चलकर रॉयल सोसाइटी ने यह रिपोर्ट पब्लिश की. रोस ने मेडिसिन के फील्ड में बहुत तरक्की की. ट्रॉपिकल मेडिसिन सोसाइटी के प्रेसिडेंट बने. इस पोजीशन पर आने के बाद अलग-अलग देश जाकर मलेरिया के बारे में जानकारी फैलाई. रोकने का इलाज ढूंढा. फर्स्ट वर्ल्ड-वॉर से प्रभावित देशों में मलेरिया को खत्म करने की स्कीमें चलाईं.

10. मलेरिया बीमारी के मच्छर को खोजने, कारण जानने और उस पर लिखने के लिए उन्हें 1902 में नोबेल प्राइज दिया गया.

आदमी जीनियस था तो उससे कई लोग जलते भी थे, लेकिन उनके चाहने वालों की तादाद ज्यादा थी. 1931 में बीवी के मरने के एक साल बाद रोस भी नहीं रहे. 1932 में किसी बीमारी से उनकी मौत हो गई थी.

मलेरिया फैल रहा है तो आप उसकी बेसिक जानकारी भी ले लो. अपने आस-पड़ोसियों को भी बताओ. मलेरिया होने पर सिरदर्द, उलटी या फीवर हो सकता है. एक्सट्रीम केसों में स्किन पीली हो जाती है. कई बार बीमार इंसान कोमा में चला जाता है. मौत भी हो सकती है. यह सब शुरू होता है मच्छर के काटने के दस-पंद्रह दिन बाद. मच्छरों के काटने से मलेरिया के पैरासाइट्स इंसान के ब्लड में मिल जाते हैं. ब्लड से होकर लीवर तक पहुंचते हैं. वहां जाकर ये पैरासाइट्स रीप्रोड्यूस करते हैं.

मलेरिया से बचने के लिए घरों में मच्छर मारने वाली दवाई छिड़कें या मच्छरदानी लगाएं.





सोर्स:लल्लनटॉप 



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