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हर कॉलेज बंक में एक खासियत होती है कि मूवी, मॉल्स और मार्केट के अलावा दोस्तों के साथ गुरूद्वारे का चक्कर लग ही जाता है. कई इसकी वजह अपनी श्रद्धा को बताते हैं, तो कई गुरूद्वारे में मिलने वाले लंगर की वजह से श्रद्धा को अपना लेते हैं. अंजाने चेहरों के बीच गुरूद्वारे में मिलने वाली दाल का स्वाद कुछ ऐसा होता ही कि काके दा ढाबा और चड्ढा की रसोई भी फ़ेल हो जाये.
गुरूद्वारे में सिर झुकाने के बाद दीवारों पर लगी इनफार्मेशन स्लेट तो आप सब ने पढ़ी होगी, पर क्या कभी आपको ये जानकारी मिली कि लंगरों का चलन कैसे शुरू हुआ? आज हम आपको इसी लंगर के बारे में बताने जा रहे हैं.

Source: aljareera 
ऐतिहासिक कहानियों के अनुसार, एक बार सिखों के पहले गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए कुछ पैसे दिए, जिसे देकर उन्होंने कहा कि वो बाज़ार से सौदा करके कुछ प्रॉफिट कमा कर लाये. नानक देव जी इन पैसों को लेकर जा ही रहे थे कि उन्होंने कुछ भिखारियों और भूखों को देखा, उन्होंने वो पैसे भूखों को खिलाने में खर्च कर दिए और खाली हाथ घर लौट आये. नानक जी की इस हरकत से उनके पिता बहुत गुस्सा हुए, जिसकी सफ़ाई में नानक देव जी ने कहा कि सच्चा लाभ तो सेवा करने में है.

Source: palungjit
गुरु नानक देव जी द्वारा शुरू किये गए इस सेवा भाव को उनके बाद के सभी 9 गुरुओं ने बनाये रखा और लंगर जारी रहा. एक कहानी के अनुसार, बादशाह अकबर, लंगर से इतने प्रभावित थे कि एक बार वो खुद लंगर खाने पहुंचे और लोगों के बीच में बैठ कर खाना खाया.

सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी ने यहां तक कहा है कि लंगर में खाये बिना आप ईश्वर तक नहीं पहुंच सकते.


Source: valerio
आज लगभग हर गुरुद्वारे में लंगर लगा कर लोगों की सेवा की जाती है, जिसमें लोग अपनी इच्छा से नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं.  


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अमेरिका ने दुनिया के कई देशों में अपनी सेना के दमपर तख्तापलट किया है। यह देश बिना बुलावे के दूसरे देशों में आता है और अपने फायदे के लिए उस देश के प्रमुख को मारकर या कैदकर, उस देश पर कब्जा कर लेता है।



एक बार ऐसा ही कुछ डर भारत की ताकतवर नेता और प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को सताने लगा था।

भारत की खुफियां एजंसियां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को खबर दे चुकी थी कि आप सीआईए की हिट लिस्ट में हैं और कभी भी अमेरिका की सेना भारत में घुसकर आपका तख्तापलट कर सकती हैं। वैसे ऐसा हम नहीं बोल रहे हैं बल्कि खुद 1975 की देशी और विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स बोल रही थी। अपने कुछ ख़ास लोगों से इंदिरा गाँधी ने भी इस डर को जाहिर भी किया था।

तो आइये पढ़ते हैं कि यह पूरा मामला आखिर था क्या – क्यों अमेरिका की सेना तख्ता पलट चाहती थी –

खुद इंदिरा गांधी ने बोला था –
बीबीसी की हिंदी वेबसाइट पर एक बार लेखक रेहान फजल ने लिखा था कि “इंदिरा ने कहा कि वो अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और उन्हें डर है कि कहीं उनकी सरकार का भी सीआईए की मदद से चिली के राष्ट्रपति सालवडोर अयेंदे की तरह तख़्ता न पलट कर दिया जाए। बाद में एक इंटरव्यू में भी इंदिरा ने स्वीकार किया किया कि भारत को एक ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की ज़रूरत थी। यह ट्रीटमेंट बाद में आपातकाल के रूप में सामने आया था।”

तो इस ब्यान से साफ़ हो गया है कि इंदिरा गांधी को जब कोर्ट ने अयोग्य घोषित किया तो पूरे देश में जैसे इंदिरा के खिलाफ विद्रोह तेज हो गया था। यहाँ तक कि भारत के अंदर कुछ राज्यों की तो विधानसभा तक भंग होने लगी थी। लेकिन इंदिरा गांधी को अपनी सीट से इतना प्यार हो गया था कि वह जनता की आवाज तक नहीं सुन रही थीं। 

लोग अब इंदिरा गांधी को उनके पद से हटाना चाहते थे किन्तु इंदिरा गांधी ने कोर्ट का फैसला भी यह बोलकर नकार दिया था कि कोई इनके और इनकी सरकार के खिलाफ साजिश कर रहा है। जब देश के अन्दर सन 1975 में स्थिति बिगड़ने लगी थी तो इस तरह की खबरें आना शुरू हो गयी थीं कि अब अमेरिका भारत के लोगों की आवाज को दम देने के लिए देश में अपनी अमेरिका की सेना भेज रहा है ताकि इंदिरा गांधी का तख्तापलट कर दिया जाये।

 स्थिति वाकई तब खराब थी –
सन 1975 का यह समय भारत के वाकई खराब था।
एक तरह से जैसे तब देश में लोकतंत्र का गला घोट दिया गया था। 25 जून 1975 की मध्यरात्रि से 21 मार्च 1977 के बीच जो आपातकाल का दौर देश ने देखा, वह “आंतरिक अशांति” के कारण अनुच्छेद 352 के अंतर्गत लगाया गया था। इस दौरान लोगों को जेल में इसलिए डाला जा रहा था क्योकि वह सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।

आपातकाल कितनी जल्दी लगाया गया था इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि संविधान बोलता है कि यदि कभी देश में आपातकाल की जरूरत पड़े तो पहले मंत्रिमंडल की बैठक के बाद आपातकाल के निर्णय पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करवाना जरुरी होता है। तब कहीं जाकर देश में आपातकाल लागू किया जा सकता है। लेकिन इंदिरा गांधी ने सन 1975 में देश के अन्दर पहले रेडियो पर आपातकाल की घोषणा कर दी गयी थी और उसके बाद मंत्रिमंडल और राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवाए गये थे।

तो कुलमिलाकर सामने आता है कि उस समय वाकई इंदिरा गांधी अपनी मनमानी पर उतर आई थी और इसी कारण से अमेरिका की सीआईए की लिस्ट में इंदिरा सबसे ऊपर आ गयी थीं।

वह तो बस बोला जा सकता है कि शायद इंदिरा गांधी का अच्छा समय था कि अमेरिका की सेना भारत में तख्तापलट के लिए नहीं आ पाई थीं।






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31 अक्टूबर 1984 की गुलाबी ठंड में लिपटी एक खूबसूरत सुबह थी। आइरिश फिल्म डायरेक्टर पीटर इंदिरा गाधी का एक इंटरव्यू करना चाहते थे। इंदिरा ने उन्हें मुलाकात का समय दे दिया। इंदिरा जी करीब सुबह 9 बजे बाहर निकली। उन्होंने अपने अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को हाथ जोड़ते हुए खुद नमस्ते कहा। लेकिन तभी बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर गोली दाग दी। अगले ही पल बेअंत सिंह ने दो और गोलियाँ इंदिरा जी के पेट में उतार दीं।

 तभी गेट के पास संतरी बूथ पर खड़े सतवंत की स्टेनगन भी इंदिरा गांधी की तरफ घूम गई। उसने एक मिनट के अंदर अपनी स्टेनगन की पूरी मैगजीन इंदिरा जी के सीने में दाग दी। इतनी गोलियों ने आयरन लेडी का शरीर राख कर दिया। बीबीसी ने सबसे पहले खबर दी… प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नहीं रही। गुलाबी खूबसूरत सुबह मनहूस हो चुकी थी। न सिर्फ दिल्ली के लुटियंस जोन के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए।

बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को फौरन हिरासत में ले लिया गया। इंदिरा गांधी को अस्पताल पहुँचाने के इंतजाम किया ही जा रहा था कि  इस बीच उस कमरे से एक बार फिर फायरिंग की आवाज आई जिसमें सुरक्षाकर्मी बेअंत और सतवंत को लेकर गए थे।

 यहां बेअंत ने एक बार फिर हमला करने की कोशिश की थी। उसने अपनी पगड़ी में छिपाए चाकू को बाहर निकाल लिया। बेअंत और सतवंत दोनों ने इस कमरे से भागने की कोशिश की लेकिन जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाकर्मियों ने बेअंत को वहीं ढेर कर दिया। सतवंत को भी 12 गोलियां लगीं लेकिन उसकी सांसें चल रही थीं।

उस सुबह और क्या हुआ हम आपको बताएंगें लेकिन पहले इंदिरा गांधी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें:

1- 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 31 अक्टूबर, 1984 तक अपनी हत्या होने तक देश की प्रधानमंत्री रहीं।

2- इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को हुआ था। वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एकमात्र संतान थीं।

3 – बैंकों का राष्ट्रीयकरण : प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1969 में देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। उस समय कांग्रेस में दो गुट थे इंडिकेट और सिंडिकेट और इंडिकेट की नेता इंदिरा गांधी थीं। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी।

4- इंदिरा का नाम उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था। जबकि उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरु उन्हें प्रियदर्शिनी के नाम बुलाया करते थे।

5- इंदिरा गांधी बचपन से भारत की आजादी के लड़ाई में कूद गई थी और उन्होंने अपने हमउम्र बच्चों के साथ एक वानर सेना बनाई जिसका उद्देश्य देश की आजादी के लिए लड़ रहे क्रांतिकारी एवं आंदोलनकारियों तक गुप्त सूचनाएं पहुंचाना था।

6- इंदिरा गांधी के खिलाफ 1967 के आम चुनावों में कई पूर्व राजे-रजवाड़ों ने सी.राजगोपालाचारी के नेतृत्व में स्वतंत्र पार्टी का गठन लिया था। इनमें से कई कांग्रेस के बागी भी थे। इस कारण इंदिरा ने प्रिवीपर्स समाप्ति का संकल्प ले लिया। 1971 के चुनावों में सफलता के बाद इंदिरा ने संविधान में संशोधन कराया राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति दी।

7- इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया था। इसका जनता ने माकूल जवाब दिया। 1977 में इमरजेंसी हटा ली गई और आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी की सबसे बुरी हार हुई थी।

8- इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई थी जब भारत पाकिस्तान के बीच तीसरे युद्ध ने इतिहास भी बदल दिया। इंदिरा के कुशल नेतृतव में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धुल चटा दिया जबकि पाकिस्तान के पीछे अमेरिका का हाथ था।

9 – फिरोज और इंदिरा गांधी एक साथ आजादी के आन्दोलन में कूदे थे वहां से उनकी नजदीकियां बढ़ी और 1942 में हिंदू रीति-रिवाज से हुई हुई थी फिरोज और इंदिरा की शादी।

10- इंदिरा गांधी के ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए उन्हें जाना जाता है जिसने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को अलग खालिस्तान की मांग करने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों के चंगुल से छुड़वाया था। इस ऑपरेशन में सैकड़ो लोगों की मौत हुई थी, ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उनके अपने ही सुरक्षा कर्मियों ने उनकी गोली मार कर हत्या कर दी थी।

11- सीआईए के रिपोर्ट के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी साल 1981 में पाकिस्तान के सभी परमाणु ठिकानों को नेस्तनाबूद करना चाहती थी।

इंदिरा गाधी को गोली लगने के बाद आनन-फानन एम्स ले जाया गया। तबतक उनका काफी खून बह चुका था। लेकिन इंदिरा गांधी की साँसे अभी भी चल रही थी। उन्हें 88 बोतल खून चढाया गया। किसी के सामने न झुकने वाली इंदिरा गांधी को मौत के आगे झुकना पड़ा। आज उनकी 32वीं पुण्यतिथि है। पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। हमारी तरफ से भी आयरन लेडी स्वर्गीय इंदिरा गांधी को श्रृद्धांजलि…!!!





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15 अगस्त 1947 से पहले भारत और पाकिस्तान के सीमांकन और रियासतों के विलय की घटना इतिहास में अपना मुकाम रखती है। भारत की ओर से सरदार वल्लभ भाई पटेल और पाकिस्तान की ओर से मुहम्मद अली जिन्ना रियासतों को अपने पक्ष में मिलाने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे। इस दौरान कई मौके ऐसे आए जब रियासतों का रुझान कभी भारत, तो कभी पाकिस्तान की तरफ होता रहा। 

कुछ ऐसा ही राजस्थान की रियासतों के साथ भी था, लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल अपने दृढ़ निश्चय से राजस्थान की ज्यादातर रियासतों का विलय भारत में कराने में सफल रहे। सरदार के प्रयासों के बूते ही वर्तमान भारत की तस्वीर उभरी.. 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस के मौके पर पढ़िए रियासतों के विलय के दौरान घटा एक महत्वपूर्ण वाकया..


जोधपुर नरेश को जिन्ना का प्रलोभन


फाइलः मोहम्मद अली जिन्नाPC: Social Media

घटना 1949 के आरंभ की है, तब तक जयपुर, जधपुर को छोड़कर बाकी रियासतें राजस्थान में या तो शामिल हो चुकी थी या हामी भर चुकी थी। बीकानेर और जैसलमेर रियासतें जोधपुर नरेश की 'हां' के इंतजार में थीं, जबकि जोधपुर नरेश महाराज हनुवंत सिंह उस समय जिन्ना के संपर्क में थे। 

मोहम्मद अली जिन्ना ने हनुवंत सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने पर पंजाब-मारवाड़ सूबे का प्रमुख बनाने का प्रलोभन दिया था। जोधपुर से थार के रास्ते लाहौर तक एक रेल लाइन हुआ करती थी, जिससे सिंध और राजस्थान की रियासतों के बीच व्यापार हुआ करता था। जिन्ना ने आजीवन उस रेल लाइन पर जोधपुर के कब्जे का प्रलोभन भी दिया। हनुवंत सिंह लगभग मान गए थे।

उस समय सरदार पटेल जूनागढ़ (तत्कालीन बंबई और वर्तमान में गुजरात) के मुस्लिम राजा को समझा रहे थे। जैसे ही उनके पास सूचना पहुंची, तत्काल सरदार पटेल हेलिकॉप्टर से जोधपुर को रवाना हुए। रास्ते में सिरोही-आबू के पास उनका हेलिकॉप्टर खराब हो गया। ऐसे में एक रात तक स्थानीय साधनों से सफर करते हुए तत्काल जोधपुर पहुंचे। 

 

... और सरदार ने तान दी पिस्टल


PC: Social Media

हनुवंत सिंह सरदार पटेल को जोधपुर के शाही उम्मेद भवन में देख भौंचक्का रह गया, जब बात टेबल तक पहुंची, तो हनुवंत सिंह ने सरदार को धमकाने के उद्देश्य से मेज पर ब्रिटिश पिस्टल रख दी। सरदार ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने वाली सारी तकलीफों के बारे में बताया, पर हनुवंत सिंह नहीं माना। 

उल्टे सरदार पटेल पर राठौड़ों को डराने का आरोप लगाकर आसपास बैठे सामंतों को उकसाने का काम करने लगा। स्थिति ऐसी आ गई कि आखिरकार सरदार ने टेबल पर रखी पिस्टल उठा ली और हनुवंत की तरफ तानकर कहा कि राजस्थान में विलय में हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा। 

सचिव मेनन सहित उपस्थित सभी सामंत डर गए। आखिरकार अपनी ना चलने पर हनुवंत सिंह को हस्ताक्षर करने पड़े। इस प्रकार जोधपुर सहित बीकानेर और जैसलमेर भी राजस्थान में शामिल हो गए। इस घटना के कारण सरदार पटेल ने वृहद राजस्थान के पहले महाराज का पद हनुवंत सिंह को ना देकर उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को दिया। 

रियासतों के विलय के दरम्यान का यह प्रकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल के साहस और जीवटता को रेखांकित करता है। सरदार पटेल न होते, तो भारत के वर्तमान मानचित्र का स्वरुप कुछ और ही होता। 



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भारत ने पाकिस्तान को एक सुपर-मैच में 3-2 से हराकर 5 साल बाद फिर से एशियन चैंपियंस ट्रॉफी जीत ली है. भारत-पाकिस्तान मैच की एक शान होती है और मलेशिया के कुआंटन में आज का मैच भी उस शान पर खरा उतरा. पहले 15 मिनट में बराबर, दूसरे 15 मिनट में भारत, तीसरे 15 मिनट में पाकिस्तान का पलड़ा भारी रहा. 

लग रहा था कि मैच पेनल्टी शूट आउट में जाएगा, स्कोर 2-2 था तभी फाइनल हूटर से कोई 8 मिनट पहले आकाशदीप को 25 गज के पास गेंद मिली, आकाश ने गेंद को पाकिस्तान के सर्कल में खड़े निक्किन को थमाया और निक्किन के सामने कोई नहीं था. भारत 3-2 पाकिस्तान.

आखिरी 8 मिनटों में पाकिस्तान ने ज़ोरदार हमले बोले, एक पेनल्टी कॉर्नर भी मिला लेकिन धड़कनें इतनी तेज़ जा चुकी थीं कि पाकिस्तान के खिलाड़ी गेंद को पेनल्टी कॉर्नर के लिए स्टॉप ही न कर पाए. तब मैच में 6 मिनट बाकी थे. बाद में भारत ने ठंड़ बनाए रखी और खिताब निकाल ले गए.  

मैच का सबसे पहला हमला भी भारत ने ही बोला, जसजीत के शॉट से एक पेनल्टी कॉर्नर बेकार जाने के बाद रूपिंदर पाल सिंह ने पेनल्टी कॉर्नर से ऐसी गोली दागी कि किसी के पास हिलने तक का मौका नहीं था. 

इसके ठीक 5 मिनट बाद रमनदीप के पास को युसूफ आफ्फां ने गोल में डालकर बढ़त को 23वें मिनट में 2-0 कर दिया. और ठीक 3 मिनट बाद पाकिस्तान के मोहम्मद बिलाल ने स्कोर कर मामला 2-1 पर लाकर खड़ा कर दिया.

भारत-पाकिस्तान मैच किसी भी क्षण बदलने के लिए प्रसिद्ध हैं और चाहें दोनों टीमों को एक-दूसरे से लगातार खेलने का मौका न मिले लेकिन आपस में कैसे खेलते हैं ये नहीं भूलतीं. 38वें मिनट में अली शान के गोल से पाकिस्तान मैच 2-2 ला दिया. और भारत के गोल पर पेनल्टी शूट आउट के बादल मंड़राने लगे थे. 

2011 में भी भारत ने पाकिस्तान को पेनल्टी शूट आउट में हराकर ही खिताब जीता था और उस जीत के हीरो थे गोलची पीआर श्रीजेश. पिछले 2 सालों से लगातार शानदार फॉर्म में चल रहे कप्तान श्रीजेश आज चोट की वजह से नहीं खेल पाए. उनकी जगह गोल संभालने की ज़िम्मेदारी थी आकाश चिकते के पास थी. पाकिस्तान पिछली 2 बार से लगातार यह ट्रॉफी जीत रहा था.

भारत पाकिस्तान का आपस में रहता है कि जो लीग राउंड में जीत जाती है वो नॉकआउट में हारने वाली से हार जाती है. भारत ने अबकी बार इस परंपरा को तोड़कर लीग और नॉक आउट दोनों मैच जीते 3-2 से. 

टूर्नामेंट शुरू होने के कोई एक महीने पहले ही कप्तान श्रीजेश ने वादा किया था कि हम पाकिस्तान को हराकर उड़ी शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे. तो वो श्रद्धांजलि लीग मैचों में पाकिस्तान को हराकर दे दी गई थी. आज उससे भी आगे जाकर संदेश टू सोल्ज़र्स या दिवाली का तोहफा था. 

वैसे भारत-पाक मैच में 1-2 रफ टैकल ज़रूर होते हैं लेकिन आज के मैच में दोनों टीमें खेल भावना के साथ खेलीं. एशियन गेम्स के चैंपियन और एशियन चैंपियंस ट्रॉफी के चैंपियन भारत को अब दिसंबर में ऑस्ट्रलिया दौरे पर जाना है.

भारत की जीत की खबर आई ही थी कि उधर स्पेन में भारत ने 4 देशों के जूनियर अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के फाइनल में जर्मनी को 5-2 से हरा दिया. हॉकी के मैदान पर 2-2 पटाखे. जूनियर टीम को दिसंबर में वर्ल्ड कप खेलना है. इस बार वर्ल्ड कप लखनऊ में होगा.





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अहमदाबाद में एक तेल का दीया ऐसा भी है जो पिछले 222 सालों से लगातार जल ही रहा है। इस दीये का नाम है 'दीपकजी'। गोस्वामी हवेली पर नटवर प्रभु और श्यामल जी के वैष्णव मंदिर पर जल रही इस अखंड ज्योति पर सभी समुदाय और जाति के लोगों का विश्वास है।

मंदिर के बारे में कहा जाता है कि गोस्वामी रघुनाथ जी ने 222 साल पहले नटवरप्रभु जी की मूर्ति को अहमदाबाद के हवेली में स्थित मंदिर में स्थापित किया था। बाद में उनके बड़े पुत्र गोपीनाथ जी ने गोस्वामी हवेली में महत्वपूर्ण कर्मकांड और पूजम के लिए एक दीया स्थापित कर दिया था। मंदिर में अनुष्ठान करते हुए गोपीनाथ जी ने तप किया और 'अमृतसंजीवनी' प्राप्त की। इसके बाद दीये में कालिख जमने के बजाय सिंदूर जमा हो गया था। इस सिंदूर का प्रयोग मूर्ति की पूजा के लिए किया जाता है।


गोपीनाथजी के भाई छोटाजी महाराज ने अमृसंजीवनी भेंट कर दी थी क्योंकि उनका कोई वारिस नहीं था। उसी साल एक सामुदायिक मिलन सम्मेलन किया गया था जिसमें भगदड़ के बाद 7 लोगों की मौत हो गई थी। मंदिर के पुजारी गोस्वामी रणछोड़लालजी ने बताया कि प्रार्थना से चमत्कार हुआ था और भगदड़ में मरे सातों लोग वापस जी उठे थे। पुजारी ने बताया कि उसके बाद से लोगों में इस मंदिर के प्रति और आस्था गहरी हो गई। इसके बाद हर गुरुवार को लोगों ने मंदिर के दीये में तेल चढ़ाना शुरू कर दिया। जिसके बाद दीपक कभी नहीं बुझा।





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 ज्यादातर लोग दिवाली के दिन पटाखे जलाना भी पसंद करते हैं लेकिन मेरे हिसाब से तो यह पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचाता ही है साथ ही धन की बरबादी भी साबित होता है।


यूं तो दीपावली का त्यौहार भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है लेकिन इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने का भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली के दिन कुछ विशेष टोटके करने और पूजा के दौरान विशेष सावधानियां बरतने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपनी कृपा बरसाती हैं।



 लेकिन इन सभी के अलावा ज्योतिषीय लिहाज से भी दिवाली के दिन का विशेष महत्व है। ज्योतिष के जानकारों का कहना है करीब 59 वर्षों बाद दिवाली के दिन शुक्र, शनि और गुरु का दृष्टि संयोग बन रहा है जो काफी प्रभावशाली हो सकता है। 





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पहली बार मां के नाम की जर्सी पहन कर उतरी टीम इंडिया के लिए विशाखापट्टनम में कुछ भी बुरा नहीं गुज़रा. धीमी विकेट को सूंघकर धोनी ने तीन स्पिनर खिलाने का फैसला किया और स्पिनरों ने न्यूज़ीलैंड टीम को आधे ओवर भी नहीं खेलने दिए, उससे पहले ही बंडल बांध दिया. न्यूज़ीलैंड की टीम 23.1 ओवर में सिर्फ 79 रन पर ऑल आउट हो गई और 190 रन से हार गई. इस जीत के पटकथा लेखक रहे लेग स्पिनरों की विलुप्त-प्रजाति के भारतीय ध्वजवाहक अमित मिश्रा. मिश्रा के आंकड़े रहे 6-2-18-5.


रोहित शर्मा और विराट कोहली के अर्धशतकों के दम पर भारत ने 270 रन का लक्ष्य दिया था. इन दोनों और फिर धोनी के आउट होने के बाद भारत की पारी में बाउंड्रिज का सूखा पड़ गया लेकिन आखिरी ओवरों में केदार जाधव (39*) और अक्षर पटेल (24) सूखी-टूटी पिच पर जीत के काबिल स्कोर तक खींच ले गए और भारत ने 269-6 पर अपनी पारी खत्म की. जवाब में न्यूज़ीलैंड की बोहनी ही खराब हुई. उमेश यादव वो मिसाइल हैं जो दाएं-बाएं गिरती है लेकिन निशाने पर गिरे तो बैटिंग तबाह.  गुप्टिल को उमेश यादव ने सिर्फ 4 गेंदे खेलने दीं और बोल्ड कर दिया. इसके बाद इस सीरीज में ज़ोरदार फॉर्म में चल रहे लाथम भी 19 के स्कोर पर बुमराह के शिकार बने और फिर मोर्चा संभाला स्पिनर्स ने.

मिस्सी भाई…आखिरकार
तीनों स्पिनरों मिश्रा, अक्षर पटेल और जयंत यादव के संयुक्त आंकड़े रहे 14.1-2-35-8. न्यूज़ीलैंड का स्कोर एक समय 63-2 था लेकिन अमित मिश्रा ने साथियों के साथ मिलकर आखिरी 8 विकेटों का बंडल सिर्फ 16 रन में बांध दिया. मिश्रा ने सीरीज़ के निर्णायक मैच में आज अपनी सारी काबिलियत झोंक दी और सिर्फ 19 गेंदों के भीतर 5 विकेट ले लिए. टेलर धोनी के हाथों कैच, वाटलिंग बोल्ड, नीशम बोल्ड, साउदी स्टम्प और ईश सोढी रहाणे के हाथों कैच. क्लासिक स्पिनर की तरह पांचों विकेट.


 न्यूज़ीलैंड के उल्टे उसी वक्त लगने शुरू हो गए जब स्पिनर एंटन डेविच की जगह पेसर-ऑलराउंडर कोरी एंडरसन को खिलाने का फैसला किया गया.  हालांकि भारत की पारी के दौरान ऐसा नहीं लग रहा था कि भारत पूरी तरह मैच के नियंत्रण में है. रोहित-कोहली ने 79 रन की साझेदारी की फिर कोहली-धोनी ने 71 रन जोड़े. रन आ रहे थे लेकिन मुश्किल थे और कोई भी पार्टनरशिप लंबी नहीं खींच रही थी. धोनी के आउट होते ही मनीष पांडे एक खराब शॉट लगाकर आउट हो गए और फिर कोहली भी इनसाइड-आउट पर छक्का ट्राई करते वक्त कैच दे बैठे. भारत की पारी मंझधार में थी. आखिरी ओवरों में 49वें ओवर में जाकर अक्षर-जाधव बाउंड्री लगा पाए. दोनों ने ऐन वक्त पर 46 रन जोड़े.


न्यूज़ीलैंड की ओर से सिर्फ 3 टॉप ऑर्डर के खिलाड़ी ही 10 का आंकड़ा छू पाए. अक्षर पटेल ने 2 और जयंत यादव ने भी 1 विकेट लिया. आज पहली बार भारत की टीम अपने मां के नाम की जर्सी पहन कर आई थी. वैसे ही दिवाली के आसपास होने वाले मैचों में भारत का रिकॉर्ड शानदार रहा है और आज तो सीरीज़ डिसाइडर में ये भावनात्मक कोण भी लगा हुआ था.


मैन ऑफ द मैच और सीरीज़ मिला लेग-स्पिनरों की विलुप्त प्रजाति के विशेष बॉलर मिस्सी भाई यानी अमित मिश्रा को. सुखद आश्चर्य भी हुआ कि मैन ऑफ द सीरीज़ भी एक गेंदबाज़ को दी गई है. अगर किसी सबसे अच्छे गेंदबाज़ ने सबसे कम मैच खेले हैं तो वो अमित मिश्रा हैं. पिछले 13 सालों से टीम में हैं लेकिन उतने मौके न मिले. बैटिंग भी कर लेते हैं बस फिल्डिंग और रनिंग में थोड़ा लोच है. लेग-स्पिन की विलुप्त प्रजाति के विशेष बॉलर को अब वो मान्यता मिले जिसके वो हकदार हैं. कीवीज़ का भारत की सरज़मीं पर सीरीज़ जीतने का सपना 4 साल टल गया है, अगला दौरा आमतौर पर 4 साल में होता है. 

धोनी को अब वनडे में हम देखेंगे अगले साल और हां, धोनी का विकेट के पीछे करिश्मा आज भी जारी रहा – एक कैच और एक स्टंप. माना जा रहा है कि भारत ये सीरीज़ 4-1 से भी जीत सकता था. दिल्ली में सिर्फ 6 रन से मैच गंवाया और पिछला मैच भी बल्लेबाज़ों ने फेंक दिया. बहुत सारे प्रयोगों के कारण सीरीज़ 3-2 रही नहीं तो सूपड़ा साफ भी किया जा सकता था लेकिन अंत भला तो सब भला.


संक्षिप्त स्कोर
भारत: 269-6, ओवर 50 (रोहित 70, कोहली 65, धोनी 41, बोल्ट 2-52, सोढी 2-66 )
न्यूज़ीलैंड: 79 ऑल आउट, ओवर 23.1 (विलियम्सन 27, लाथम और टेलर 19-19, मिश्रा 5-18, अक्षर 2-9 )ो







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दिवाली पर सभी लोग मां लक्ष्मी और गणेश भगवान की पूजा करते हैं. ताकि घर में हमेशा लक्ष्मी की कृपा बनी रहे. ऐसा माना जाता है कि दिन लक्ष्मी की पूजा करने से देवी प्रसन्न होती है और भक्तों पर कृपा बनाए रखती है. 


इसीलिए इस रात में माता को खुश करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं. इसी बारे में आपको आज कुछ ऐसे उपाय बताएंगे जिन्हें करने से न सिर्फ लक्ष्मी की कृपा होगी बल्कि नकारात्मक चीजों से भी छुटकारा मिलेगा.

 

  •  घर में जहां लक्ष्मी का पूजन करें वहां  दीपक जरूर जलाएं. लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यह दीपक रातभर बुझना नहीं चाहिए.
  • मुख्य दरवाजे के बाहर दोनों ओर दिया जरूर रखें.
  • अगर धन संबंधी समस्याएं ज्यादा आ रही हैं  तो पीपल के पेड़ के नीचे दीपक रखने से छुटकारा मिलेगा. लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि दिया लगाने के बाद उसे पीछे मुड़कर देखना नहीं है.
  •  घर के आस-पास किसी चौराहे पर दिवाली की रात में दिया जरूर जलाएं.
  • घर के आस-पास स्थित मंदिर में भी एक दिया लगाएं. इससे क्लेशों से मुक्ति व मानसिक शांति मिलती है.
  • दिवाली के एक दिन पहले और दिवाली के दिन कूड़े पर दीपक रखना शुभ माना जाता है. 






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दिवाली कुछ ही दिन दूर है. लोगों का उत्साह अपने चरम पर है. लगभग हर घर रोशनी से नहा रहा है. लाइट्स, झालरों और सजावट से हर गली, हर मोहल्ला जगमगा रहा है. चारों तरफ त्योहार की धूम है. हर तरफ उत्साह और उमंग का अपना ही रंग है.  

 
बचपन से ही हम दिवाली मनाने का सिर्फ यही कारण जानते हैं कि रावण का वध करके 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आए थे. उनके स्वागत में इस दिन नगरवासियों ने पूरे नगर को सजाकर दिए की रोशनी से सजा दिया था. तभी से ही दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. 
 
 
लेकिन हम आपको बताते हैं ऐसे कई और भी कारण, जिनकी वजह से दिवाली मनाई जाती है. यही नहीं सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि जैन और सिक्ख समुदाय के लिए भी यह त्योहार बेहद खास है. और तो और रामायण ही नहीं बल्कि महाभारत में भी दिवाली मनाए जाने की वजहें बताई गईं हैं.
 
 
आइए हम बताएं आपको कि ऐसे और भी कई कारण हैं जिसकी वजह से दिवाली मनाई जाती है-
 
- शास्त्रों के अनुसार दिवाली के दिन लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन दिवाली मनाई जाती है. इसी दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके लक्ष्मी जी को बाली की कैद से छुड़ाया था. दिवाली मनाने के पीछे यह भी एक कारण है.
 
- हिंदू धर्म के महान राजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी दिवाली के दिन ही हुआ था. इसलिए भी दिवाली एक ऐतिहासिक त्योहार है.
 
- भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध दिवाली के ही दिन किया था. नरकासुर ने 16,000 महिलाओं को बंदी बना रखा था. भगवान कृष्ण ने उसका वध करके उन महिलाओं को मुक्त कराया था. इसलिए दिवाली के त्योहार को हम कृष्ण के विजय के रूप में मनाते हैं.
 
- कार्तिक अमावस्या के ही दिन पांडव 12 साल के अज्ञातवास के बाद वापस आए थे. पांडवों को मानने वाली प्रजा ने इस दिन दीप जलाकर उनका स्वागत किया था. इसका उल्लेख महाभारत में मिलता है. 
 
- सिक्ख समुदाय के लिए भी यह त्योहार खास महत्व रखता है. इसी दिन छठे सिक्ख गुरु हरगोबिंद को 52 अन्य राजाओं के साथ ग्वालियर फोर्ट में कैद से छोड़ा गया था.
 
- दिवाली का दिन जैन समुदाय के लिए भी खास है. इस दिन जैन गुरु महावीर ने निर्वाण की प्राप्ति की थी इसलिए जैन समुदाय भी दिवाली मनाता है.
 
 
 
 
 
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दीपावली तरक्की, शुभ-लाभ का त्योहार है. कहा जाता है कि अगर पूरे विधि-विधान से पूजा की जाए तो साल भर शुभ समाचार मिलते हैं और तरक्की के रास्ते भी खोलती है.

लेकिन बाजारवाद के दौर में फंसकर लोग पूजा की विधियां भूल गए हैं. आज दीपावली सिर्फ चकाचौंध का त्योहार बनकर रह गया है. हम आपको 10 ऐसी विधियां जिनसे दीपावली की पूजा का आपके लिए रास्ते के लिए तरक्की के रास्ते खोल देगी और साल भर शुभ समाचार मिलते रहेंगे.

 1- मां लक्ष्मी का प्रसाद के बाहर की मिठाईयों के बजाए अगर घर के चावल और साबूदाने से बनीं खीर चढ़ाना चाहिए.

2- धनतेरस से लेकर कार्तिक महीने तक तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाना चाहिए.  कहा जाता है कि यह दिया भगवान विष्णु के नाम से जलता है. इससे घर में धन-संपदा आती है. 

3-दीपावाली की खरीददारी में झाड़ू जरूर खरीदें. इससे दिवाली के दिन पूजा के स्थान साफ करें इसके बाद साल भर इसका इस्तेमाल घर के लिए करना चाहिए.

4-- क्रिस्टल या स्फटिक का श्री यंत्र पूजा स्थल मेें स्थापित करना चाहिए. इसका पंचाभिषेक कर पूजा की जाती है. इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. 

5- लाल धागे में सुपारी लपेटकर लक्ष्मी जी की पूजा होती है. इस सुपारी को धागे सहित लॉकर में रखना चाहिए. मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी.

6- इस दिन सात पीली कौड़ियों का भी पूजन होता है. कई जगहों पर इन कौड़ियों को पूजा स्थल पर खेला भी जाता है. इसको भी तरक्की  का कारक माना जाता है.

7-  निगेटिव एनर्जी की दूर करने के लिए घर के मुख्य द्वार पर अशोक पत्तियों की माला लगाएं.


8- पूजा में दक्षिणवर्ती शंख की भी पूजा करें.

9- शिवलिंग पर केसर चढ़ा जल चढ़ाएं. सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी.

10-  घर के मुख्य द्वार पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और उसमें शुभ लाभ लिखें. इससे आर्थिक बाधाएं दूर हो जाती हैं. 







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हमेंशा से यह कहा जाता है कि मां लक्ष्मी अगर किसी घर में प्रवेश  हो गई तो रातों-रात राजा बना देती हैं और अगर घर से प्रस्थान हो गई तो राजा से रंक बना देती हैं.
 
साथ ही ये भी कहा जाता है कि ज‌िस घर में देवी लक्ष्मी आने वाली होती हैं उस घर के लोगों को दीपावली के द‌िन कुछ संकेतों से यह बता देती हैं क‌ि इस साल उनके घर आने वाली हैं. अगर आपको भी इंतजार है क‌ि देवी लक्ष्मी आपके घर आए तो इन संकेतों पर ध्यान दें.
 
दीपावली के शुभ अवसर पर मां लक्ष्मी को खुश करने के आसान उपाय. जिसे अपनाकर आप अपने घर में सुख-समृद्धि और धन की बारिश होगी.
 
 
दीपावली के दिन सुबह उठ जाएं
शास्त्रों के अनुसार दीपावली पर्व के पावन दिनों में हर व्यक्ति को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति दीपावली के दिन अधिक देर तक सोते रहते हैं उन्हें मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. 
 
 
इस दिन अपने से बड़ों का भूल से भी न करें अनादर
दीपावली के दिन विशेष रूप से अपने माता-पिता और घर के बुजुर्गों का अनादर न करें. अगर आप इनका अनादर करते हैं तो मां लक्ष्मी कुपित होकर आपके घर से प्रस्थान कर देंगी और फिर आपको धन की देवी को मनाने के लिए तरह-तरह के प्रयोग करने पड़ेंगे. 
 
 
घर को साफ रखें
दीपावली के दिन घर में गंदगी, कूड़ा-करकट पड़ा रहने से भी मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं अत: इस दिन घर को एकदम साफ व स्वच्छ रखें.
 
 
झाडू की पूजा जरूर करें
दीपावली के दिन झाडू की पूजा सभी घरों में की जाती है अत: इस दिन नई झाडू खरीदकर लक्ष्मी पूजन में अवश्य रखें.
 
 
झाडू को पैर न लगने दें
दीपावली के दिन या अन्य दिनों में कभी भी झाडू को पैर न लगने दें, इससे भी मां लक्ष्मी की कृपा आपको नहीं मिलेगी.
 
झाडू पर पैर रखना अपशकुन माना जाता है, इसका अर्थ घर की लक्ष्मी को ठोकर मारना है. अगर हम झाडू का आदर करते हैं तो यह महालक्ष्मी की प्रसन्नता का संकेत है.
 
 
नए घर में पुरानी झाडू न रखें
नया घर बनाने के बाद उसमें पुरानी झाडू़ ले जाना अपशकुन माना जाता है एवं यह अशुभ होता है.
 
 
 
नई झाड़ू का उपयोग शनिवार को ही करें
जब भी नई झाडू़ उपयोग में लाएं तो शनिवार को ही उसका उपयोग करें.
 
 
उलटी झाडू़ न रखें 
कभी भी घर में उलटी झाडू़ न रखें इसे अपशकुन माना जाता है.
 
 
अंधेरा होने के बाद घर में झाडू़ न लगाएं
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक अंधेरा होने के बाद घर में झाडू़ लगाना अशुभ होता है. अत: दीपावली के दिन भी अंधेरा होने पूर्व ही घर का कूड़ा-कचरा साफ कर लें
 
 
 
 
 
 
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